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विधि आयोग ने भेजा परामर्श पत्र कहा-महिलाओं को मिले बराबर का अधिकार


नई दिल्ली : हिंदू कानून के तहत पैतृक संपत्ति में समान अंशधारिता के प्रावधान को भी खत्म करने की सिफारिश विधि आयोग ने की है। इसके अलावा जन्म के आधार पर संपत्ति का अधिकार देने वाला प्रावधान भी खत्म करने की बात कही गई है। ‘संयुक्त काश्तकारी’ के बजाय ‘समान काश्तकारी’ का नियम लागू किया जाना चाहिए। विधि आयोग ने तलाक के समय बराबरी का हिस्सा मिलने की सिफारिश करने के साथ ही कहा कि सभी वैयक्तिक एवं धर्मनिरपेक्ष कानूनों में इसी के अनुसार संशोधन होना चाहिए। हालांकि, आयोग ने चेताया कि इसी के साथ, इस सिद्धांत का अर्थ संबंध खत्म होने पर संपत्ति का पूरी तरह से अनिवार्य बराबर बंटवारा नहीं होना चाहिए क्योंकि कई मामलों में इस तरह का नियम किसी एक पक्ष पर अनुचित बोझ डाल सकता है।

आयोग ने कहा कि शादी के बाद पति-पत्नी में से किसी भी पक्ष द्वारा अर्जित सारी संपत्ति को दंपति के बीच एक इकाई माना जाना चाहिए। विधि आयोग ने कहा कि महिलाओं को ब्लैकमेल किए जाने की आशंका के कारण चर्च में स्वीकारोक्ति (कनफेशंस) की परंपरा पर पाबंदी लगाने जैसी मांगें त्वरित प्रतिक्रिया हैं और लोगों को इससे बचना चाहिए। आयोग ने कहा कि स्वीकारोक्ति अपने आप में आपराधिक कृत्य नहीं है। आयोग ने शादीशुदा जोड़ों के लिए तलाक को आसान बनाने और तलाक के समय शादी के बाद हासिल संपत्ति में बराबर का हिस्सा देने की भी बात कही है। उसने बहुविवाह प्रथा खत्म करने की सिफारिश करते हुए कहा कि विवाहेत्तर संबंधों पर कानून बनाकर इसे खत्म किया जाना चाहिए। जून 2016 में विधि आयोग को समान नागरिक संहिता से जुड़े मामलों पर गौर करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2014 के लोकसभा चुनावों के अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता को लेकर वादा किया था। हालांकि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर व्यापक रिपोर्ट देने के बजाय एक परामर्श पत्र पेश किया जिसमें यह बताया गया कि आयोग पर्सनल लॉ में चरणबद्ध तरीके से बदलाव की अनुशंसा कर सकता है। आयोग ने कहा कि इसने समान नागरिक संहिता के बजाय ऐसे कानूनों पर गौर किया जो पक्षपाती हैं। इसमें कहा गया, ‘यह न तो आवश्यक है और न ही इस चरण पर वांछित है।’

विधि आयोग के परामर्श पत्र में कहा गया, समान नागरिक संहिता का मुद्दा व्यापक है और उसके संभावित नतीजे अभी भारत में परखे नहीं गए हैं इसलिए दो वर्षों के दौरान किए गए विस्तृत शोध और तमाम परिचर्चाओं के बाद आयोग ने भारत में पारिवारिक कानून में सुधार को लेकर यह परामर्श पत्र प्रस्तुत किया है। विधि आयोग ने पर्सनल लॉ पर एक परामर्श पत्र जारी किया जो बिना गलती के तलाक, भरण-पोषण और गुजारा भत्ता तथा विवाह के लिए सहमति की उम्र में अनिश्चितता और असमानता के नए आधारों पर चर्चा करता है। समान नागरिक संहिता पर पूर्ण रिपोर्ट देने के बजाय विधि आयोग ने परामर्श पत्र को तरजीह दी क्योंकि समग्र रिपोर्ट पेश करने के लिहाज से उसके पास समय का अभाव था। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी एस चौहान ने पहले कहा था कि समान संहिता की अनुशंसा करने के बजाय, आयोग पर्सनल लॉ में चरणबद्ध तरीके से बदलाव की अनुशंसा कर सकता है।

आयोग ने एक तरह से समान नागरिक संहिता की संकल्पना को ठंडे बस्ते में डाल दिया और विशेष समुदायों को मुहैया कराए गए अपवादों का हवाला दिया। उसने कहा, ज्यादातर देश मतभेद को मान्यता देने की दिशा में बढ़ रहे हैं और केवल मतभेद का मतलब भेदभाव नहीं है, लेकिन यह एक मजबूत लोकतंत्र का परिचायक है। अब समान नागरिक संहिता पर अंतिम रिपोर्ट जारी करने का जिम्मा 22वें विधि आयोग पर होगा। आयोग ने नवंबर, 2016 में एक प्रश्नावली सार्वजनिक की थी और उसे 75,378 प्रतिक्रियाएं मिलीं। लेकिन इनमें से ज्यादातर प्रतिक्रियाएं विशेष रूप से तीन तलाक से संबंधित थीं। तीन तलाक उन विभिन्न मुद्दों में से एक है, जिस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत थी। आयोग ने कहा कि समाज के विशेष समूहों या कमजोर वर्गों को कानून में सुधार की प्रक्रिया के तहत अधिकारविहीन नहीं किया जाना चाहिए।

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