श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने की सबसे सही विधि
ज्योतिष डेस्क : कई कामनाओं का संबंध मूल आवश्यकता से होता है। इसी इच्छापूर्ति की प्राप्ति के लिए व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार प्रयास करता है। लेकिन भौतिक प्रयत्न से भी फल नहीं मिलने पर आशा ईश्वरीय चमत्कार की ओर जाती है। जिसकी प्राप्ति तभी संभव होती है जब आपेक्षक सविधि कोई अनुष्ठान करता है। इसमें गणेशजी की साधना शीघ्र फलदायी है। इनके अनेक प्रयोग में उनको प्रिय दूर्वा के चढ़ाने की पूजा शीघ्र फलदायी और सरलतम है। इसे गणेशोत्सव के प्रथम शुभ दिन प्रारंभ करना चाहिए। इसे गणेशजी की प्रतिष्ठित प्रतिमा पर करें-
21 दूर्वा लेकर इन नाम मंत्र द्वारा गणेशजी को गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य अर्पण करके एक-एक नाम पर दो-दो दूर्वा चढ़ाना चाहिए। नियमित समय पर करने से जो आप चाहते हैं वह सब प्राप्त होता है। प्रार्थना गणेशजी से निरंतर करते रहने पर वह शीघ्र पूर्ण हो जाती है। इसमें प्रयोग के अतिरिक्त विघ्ननायक पर श्रद्धा व विश्वास रखना चाहिए।
ॐ गणाधिपाय नमः
ॐ उमापुत्राय नमः
ॐ विघ्ननाशनाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ॐ एकदंताय नमः
ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः
ॐ कुमारगुरवे नमः
दूर्वा यानी दूब जैसा कोई अन्य पदार्थ, इस धरा पर हो ही नहीं सकता, जो देव मनुष्य व पशु तीनों को ही प्रिय है। नन्ही दूब के आचमन से देवता, दूब आच्छादित मैदानों पर भ्रमण से मनुष्य और भोजन के रूप में पशु इसको पाकर प्रसन्न रहते हैं। खेल के मैदान, मंदिर, बाग-बगीचे में उगी नन्ही दूब का मखमली हरा गलीचा सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। सबके पांव से रगड़ खाती, विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रहती, देवताओं को प्रिय व मानव के लिए मंगलकारी व आरोग्य प्रदायक है। अनेक युगों से हरी कोमल दूब का मैदान सर्वप्रिय और उद्यानों का आवश्यक अंग रहा है। अथर्ववेद तथा कौटिल्य अर्थशास्त्र में हरी व कोमल दूब का संदर्भ मिलता है। पुराणों में भी नंदन वन का वर्णन मिलता है। पौराणिक संदर्भों से ज्ञात होता है कि क्षीर सागर से उत्पन्न होने के कारण भगवान विष्णु को यह अत्यंत प्रिय रही और क्षीर सागर से जन्म लेने के कारण लक्ष्मी की छोटी बहन कहलाई।
विष्च्यवादि सर्व देवानां, दूर्वे त्वं प्रीतिदायदा।
क्षीरसागर सम्भूते, वंशवृद्धिकारी भव।।
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