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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: तलाक की अर्जी लंबित होने पर भी मान्य होगी दूसरी शादी

तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बहुत बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट का कहना है कि यदि दोनों पक्षों के बीच केस वापसी पर समझौता हो गया हो या फिर याचिका लंबित रहते हुए भी दूसरी शादी की गई हो तो वह मान्य है। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह फैसला दिया। कोर्ट का कहना है कि तलाक के खिलाफ दाखिल अपील खारिज होने से पहले दूसरी शादी पर रोक संबंधी प्रावधान तब लागू नहीं होते हैं जब पक्षकारों ने आपस में केस वापस लेने का समझौता कर लिया हो।

हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के खिलाफ दाखिल अपील के लंबित होने के दौरान कोई भी पक्ष दूसरी शादी नहीं कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि हमारा मत है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-15 के तहत तलाक के खिलाफ अपील के लंबित रहने के दौरान शादी पर रोक का प्रावधान तब तक लागू नहीं होता जब तक पक्षकारों ने समझौते के आधार पर केस आगे चलाने का फैसला ना कर लिया हो।

वर्तमान मामले में तलाक की डिक्री के खिलाफ अपील लंबित रहने के दौरान पति ने पहली पत्नी के साथ समझौता करते हुए तलाक वापस लेने की अर्जी वापस दाखिल की और इसी दौरान दूसरी शादी कर ली। जिसके बाद हाईकोर्ट ने उसकी दूसरी शादी को अमान्य करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पति की अर्जी को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।

दरअसल इस मामले में संजीव कुमार (बदला हुआ नाम) की शादी हुई थी। शादी के बाद पत्नी ने तलाक की अर्जी दायर की, 31 अगस्त 2009 को तीस हजारी कोर्ट ने पत्नी के पक्ष में तलाक की डिक्री पारित कर दी थी। संजीव ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। इसी बीच दोनों ने केस वापस लेने का समझौता कर लिया। 15 अक्टूबर 2011 को संजीव ने समझौते के आधार पर अपील वापस लेने की अर्जी दायर की। 28 नवंबर 2011 को हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई और 20 दिसंबर 2011 को इसका निपटारा कर दिया गया। इसी अवधि के दौरान 6 दिसंबर 2011 को संजीव ने दूसरी शादी कर ली। 

शादी के बाद संजीव की दूसरी पत्नी ने अदालत में अर्जी दाखिल करके उनकी शादी को शून्य करार देने के लिए कहा क्योंकि उनकी शादी के दौरान तलाक की अर्जी लंबित थी। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-15 के तहत यह शादी मान्य नहीं है। दूसरी पत्नी की अर्जी को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था। जिसे हाईकोर्ट ने मंजूर करते हुए उनकी शादी को अमान्य करार दिया था। इसके बाद संजीव कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करके हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।

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