सूत्रों के मुताबिक, तीनों सेनाओं में इस मामले से निपटने को लेकर विचार-विमर्श चल रहा है। साथ ही उन परिस्थितियों पर भी विचार किया जा रहा है कि अगर कोई समलैंगिक संबंधों का दोषी सैनिक या अधिकारी सेवा से बर्खास्त किए जाने के बाद कोर्ट मार्शल के खिलाफ कोर्ट जाता है, तो ऐसी स्थिति में उसे फिर से सैन्य सेवा में लिया जा सकता है या नहीं। सूत्रों का कहना है कि इस मुद्दे पर सेनाओं का रक्षा मंत्रालय के साथ बैठक कर मामले का हल निकालने पर विचार किया जा रहा है।
सेना के एक अधिकारी ने बताया कि कुछ पश्चिमी देशों की सेनाओं में समलैंगिक संबंधों को अनुमति मिली हुई है। ठीक इसी तरह हमारी सेनाओं में भी समलैंगिक कर्मियों को खुलेआम सेवा करने की अनुमति देनी चाहिए।
बता दें कि तीनों सेनाओं में समलैंगिकता को लेकर कड़े कानून बनाए गए हैं। इसमें दोषी पाए जाने पर आरोपी का कोर्ट मार्शल कर दिया जाता है। साथ ही सेना के कानून के तहत आरोपी को दो से सात साल की सजा भी सुनाई जा सकती है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर को समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 की वैधानिकता पर फैसला सुनाया था। कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि देश में सबको समानता का अधिकार है। समाज की सोच बदलने की जरूरत है। अपना फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा था, कोई भी अपने व्यक्तित्व से बच नहीं सकता है। समाज में हर किसी को जीने का अधिकार है और समाज हर किसी के लिए बेहतर है।