अद्धयात्म

सांभर के नमक के साथ जुड़ा है प्राचीन मस्जिद का इतिहास

स्तक टाइम्स/एजेंसी- black-salt-55ded572350c4_lअजमेरी गेट के पास नमक की मंडी में सांभर झील का श्रेष्ठतम किस्म का नमक का कारोबार होता था। नमक के सौदागर सांभर का नमक बैल गाड़ियों से मंडी में लेकर आते। शहर के गली-मोहल्लों और रियासत के गावों में बिणजारे गधों पर लाद कर नमक बेचने जाते।

सवाई रामसिंह द्वितीय के समय नमक कारोबारियों की सुरक्षा के लिए किशनपोल स्थित नमक की मंडी में प्रवेश द्वार का निर्माण करवाया गया। रामसिंह के जमाने में एक आना मण के भाव से नमक बिकता। लोग फेरी वालों से सालभर के उपयोग का नमक खरीद लेते।

नमक की डळी को चक्की में पीसकर घड़े में रखते। उस समय मंडी के कुएं में खारा पानी होने से सवाई रामसिंह ने मंडी में सार्वजनिक नल लगा दिया। सांभर से नमक लाने वाले मुसलमान कारोबारियों ने किशनपोल में मस्जिद बनाई, जो आज सांभरियों की मस्जिद के नाम से मशहूर है।

जयपुर बसने के पहले करीब 90 वर्ग मील की सांभर झील पर मुगल सम्राट बहादुरशाह के नियुक्त नवाब का अधिकार रहा। वर्ष 1709 में जयपुर व मारवाड़ की सेनाओं ने मिलकर सांभर के नवाब पर हमला कर झील पर कब्जा किया। वर्ष 1949 तक जयपुर व मारवाड़ के संयुक्त अधिकार में रही झील की आमदनी को दोनों  रियासतें आधा-आधा बांटती रहीं।

दोनों रियासतों के कोतवाली व अधिकारी सांभर में रहते।  मानसिंह द्वितीय की  नाबालिगी के दौर में सांभर झील के लिए जयपुर व मारवाड़ का शामलात बोर्ड गठित हुआ। जयपुर से मुंशी प्यारे लाल कासलीवाल व जोधपुर से चैन सिंह बोर्ड सदस्य बने।

उस समय सांभर के नामक से जयपुर रियासत को सालाना 40,136 रुपए की आमदनी होती थी। सियाशरण लश्करी के मुताबिक झील पर जयपुर का आधा हिस्सा होने से जयपुर के महाराजा की मृत्यु होने पर कई बुजुर्ग सिर में दाहिने हिस्से के बाल कटवाते।

पर्यटन अधिकारी रहे गुलाब सिंह मीठड़ी ने बताया कि जंगल के वन्य जीवों के शरीर में नमक की कमी को पूरा करने के लिए रियासत की तरफ से जंगल की चट्टानों में नमक डाला जाता, जिसे जानवर चाटते। फागी के पास में रेवतपुरा के जागीरदार रेवत सिंह ने नमक कारोबारियों को एक सौ बीघा जमीन का निशुल्क आवंटन किया। नमक कारोबारी बिणजारों ने कुएं-बावड़ी और तालाबों का निर्माण करवाया।

 

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