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जीवन में यदि महान बनना है तो बड़ों के सामने मौन रहना सीखो : आचार्यश्री

रायपुर : मित्रों यदि जीवन में महान बनना है तो हमेशा बड़ों के सामने मौन रहना चाहिए। बड़ों के पास शांत बैठकर हमेशा सीखना चाहिए। बड़ों के सामने ठीक वैसे ही रहना चाहिए जैसे घर में इमरजेंसी लाइट होती है। इमरजेंसी लाइट एक जगह टंगी रहकर चार्ज होती रहती है और जब लाइट गुल होती है तो काम आती है।मैं जब भी बड़े गुरु महाराजों के पास जाता हूं तो शांत बैठता हूं,लोग कहते हैं कुछ तो बोलो लेकिन मैं इमरजेंसी लाइट की तरह चार्ज होते रहता हूं। ज्ञानियों जैसे लाइट जाने पर इमरजेंसी लाइट काम आती है,ऐसे मित्रों जब हमारे बड़े नहीं रहेंगे तो उनसे प्राप्त ज्ञान हमारे व हमारे माध्यम से दूसरों के जीवन में प्रकाश लाएगा। ये संदेश सोमवार को सन्मति नगर की चतुर्मासिक प्रवचनमाला में आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने दिया।

आचार्यश्री ने कहा कि योग्यता ही योग्य वस्तु को उपलब्ध कराती है। जिनके पास योग्यता नहीं है वे योग्य वस्तु को हासिल नहीं कर सकते हैं। योग्यता नहीं है तो रो सकते हो,बिलख सकते हो लेकिन योग्य वस्तु को पा नहीं सकते हो,यहां तक की योग्य वस्तु की उपलब्धि के परिणाम भी नहीं होंगे। कहां केसर का दूध मिश्री घुला और कहां सड़े-गले फलों से बनी हुई मदिरा है। कड़वी मदिरा को पीने वाला आदमी मिश्री मिश्रित दूध का रसपान कहां से कर पाएगा। पुण्य आत्मा जीव ही दुग्ध का रसपान करते हैं,जिनके पुण्य क्षीण हो गए हैं वह मोह के मद्य को पीते हैं,जो पुण्यात्मा जीव हैं वो वीतराग मार्ग को चुनते हैं।

आचार्यश्री ने कहा कि उत्कृष्ट मार्ग सामने दृष्यमान होने पर भी उत्कृष्ट की प्राप्ति का लक्ष्य पुण्य क्षीण को नहीं हो सकता है। आप स्वयं अनुभव करना कि एक ओर श्री जिनालय है और दूसरी ओर भोग भवन है, बीच में आप खड़े हो,मित्रों स्वयं से निर्णय करना कि आपकी दृष्टि किस ओर जा रही है ? वहीं बोध हो जाएगा कि आपकी चलती है या आपके भीतर की वासना की चलती है ? यदि आप संशय की स्थिति में हो कि कहां जाऊं ? मतलब आपकी चलती नहीं है,वासना की चलती है, आपकी साधना की नहीं चलती है।

आचार्यश्री ने कहा कि जीवन नष्ट होता है,जीवन बदलता है,आत्मन न नष्ट होती है न बदलती है। मुमुक्षुओं आप शिशु थे फिर आपका जीवन बदला,आप किशोर हुए फिर आपका जीवन बदला, युवा हुए कहां-कहां आंखें दौड?े लगी आपकी और आपका जीवन बदल गया, शादी हुई जीवन बदल गया, मित्रों वृद्ध हो जाओगे जीवन बदल जाएगा, इतना ही नहीं अंतिम श्वास निकल जाएगी जीवन बदलेगा, लेकिन आत्मन कभी नहीं बदलेगा। जो योगी हैं वे आज अध्यात्म तत्व में लीन हैं,वे जीवन नहीं जीते हैं,वे आत्मन में जीते हैं। जो जीवन जीते हैं उन्हें सुख दुख के विषय वासनाओं की अनुभूति लेनी पड़ती है। वासनाओं का जीवन होता है, साधना का आत्मन होता है,संसारी इच्छाओं में जीवन जीता है,आत्मन इच्छा शून्य होते हैं।

आचार्यश्री ने कहा कि श्रीमंडप में बैठकर जीवन तो आप समझ चुके हो,अब आत्मन को समझिए। अनादि काल से आप जीवन समझते आए हो,आत्मन समझ जाओगे तो आपके संसार भ्रमण का अंत हो जाएगा। जीवन जीने के लिए प्रपंच रचने पड़ते हैं,आत्मन के लिए प्रपंच शून्य ज्ञायक में होना पड़ता है। जीवन कैसे जिएं ये दुनिया कहना जानती है,आत्मा में रमण कैसे करें इसको महावीर भगवान जानते हैं। जीवन जीने वाले को क्या-क्या नहीं करना पड़ता है,आत्मन में कुछ भी नहीं होता है। योग की मुद्रा में आकर भी यदि जीवन ही जिया तो आत्मन के पास नहीं पहुंच पाओगे। धम्म रसायण ग्रंथ कहता है धर्म जो है उसे आप समझो,पहले रंग नहीं देखो धर्म को देखो। दूध का रंग एक सा होता है, पर आंखडे के पत्त्ते का दूध और गाय के दूध में भेद है,इसलिए धर्म मत सुनो धर्म को समझो।

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