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जनता के संघर्ष के साथी योगी

यूपी में खींची बड़ी सियासी लाइन

योगी के दबदबे का यह हाल है कि दिल्ली का आलाकमान भी यूपी के बारे में ज्यादा नहीं सोचते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि चाहे बात विधानसभा चुनाव की हो या फिर लोकसभा की, दोनों ही चुनाव योगी अपने दम पर जीतने की कूबत रखते हैं, इसीलिए यूपी की 80 लोकसभा सीटों को लेकर मोदी भी ज्यादा चिंतित नहीं हैं। मोदी और उनकी पूरी टीम को यूपी में योगी के दम पर बड़ी जीत मिलती दिख रही है। राजनीति के जानकार और सर्वे रिपोर्ट तक में यूपी की 80 में से 70 सीटें बीजेपी की झोली में जाते दिख रही हैं। यह योगी का ही चमत्कार है।

मंजू सक्सेना, लखनऊ

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में पिछले डेढ़ वर्ष में काफी बदलाव देखने को मिला है। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ एक बड़ी सियासी ताकत बनकर उभरे हैं जबकि उनसे कुछ छोटे एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और थोड़े बड़े कांग्रेस नेता राहुल गांधी को यूपी की जनता ने हाशिये पर डाल रखा है। योगी के सामने सपा प्रमुख अखिलेश लगातार हार का रिकार्ड बना रहे हैं तो राहुल गांधी की हालत तो इतनी पतली हो गई कि वह अमेठी से लोकसभा चुनाव हारने के बाद केरल पलायन करने को मजबूर हो गए। आज राहुल गांधी वॉयनाड से सांसद हैं और यूपी से दूरी बनाकर चल रहे हैं। योगी के दबदबे का यह हाल है कि दिल्ली का आलाकमान भी यूपी के बारे में ज्यादा नहीं सोचते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि चाहे बात विधान सभा चुनाव की हो या फिर लोकसभा की, दोनों ही चुनाव योगी अपने दम पर जीतने की कूबत रखते हैं, इसीलिए यूपी की 80 लोकसभा सीटों को लेकर मोदी भी ज्यादा चिंतित नहीं हैं। मोदी और उनकी पूरी टीम को यूपी में योगी के दम पर बड़ी जीत मिलती दिख रही है। राजनीति के जानकार और सर्वे रिपोर्ट तक में यूपी की 80 में से 70 सीटें बीजेपी की झोली में जाते दिख रही हैं। यह योगी का ही चमत्कार है।

इसके पीछे है योगी का मुख्यमंत्री के तौर पर किया गया संघर्ष। भले ही 2014 से लेकर 2022 विधान सभा चुनाव से पहले तक यूपी में मोदी का सिक्का चलता था, उनकी छवि जिताऊ नेता की बनी जाती थी, लेकिन पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में जीत का पूरा श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दिया जा रहा है। इसी वजह से योगी की सत्ता की दूसरी पारी में उनकी धमक और हनक भी दिखाई दे रही है। अब उन्हें सत्ता में रहते कठोर से कठोर फैसला लेने के लिए भी दिल्ली की तरफ नहीं देखना पड़ता है। यह सब अचानक नहीं हुआ है, इसके पीछे योगी के साढ़े छह: वर्षों की ‘घोर तपस्या’ का राज छिपा है। योगी यूपी की 24 करोड़ जनता को शांतिपूर्वक जीवन बिताने के लिए हर समय एक्टिव मोड में रहते हैं। उनके काम करने का तरीका भले कुछ दलों के नेताओं को रास नहीं आता हो, परंतु योगी कोई भी निर्णय लेते हुए सियासी नफा-नुकसान के बारे में नहीं सोचते हैं। भले ही योगी को प्रखर हिन्दूवादी नेता समझा जाता हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद वह यूपी की 24 करोड़ जनता में कोई फर्क नहीं करते हैं।

चाहे धर्म की राह हो या सियासत, योगी आदित्यनाथ ने हमेशा जनता के हित को ही सबसे ऊपर रखा। सूबे में साम्प्रदायिक हिंसा और माफियाराज का खात्मा और यूपी की जनता को विकास की योजनाओं से सफलता की राह दिखाना, योगी के शासनकाल में बड़ी-बड़ी इनवेस्टर्स समिट के जरिए बाहरी उद्योगपतियों को यूपी में निवेश के लिए प्रोत्साहित करना, लालफीताशाही पर लगाम, भूमाफियाओं पर शिकंजा कसके उनसे अरबों करोड़ का अवैध जमीनी कब्जा खाली कराना, भूमाफियाओं से सांठगांठ रखने वाले सरकारी कर्मचारियों की नकेल कसना, यह सब योगी जैसा मुख्यमंत्री ही कर सकता है। योगी पर अक्सर मुस्लिम विरोधी होने और एक धर्मगुरु की तरह सरकार चलाने का आरोप लगता रहता है, लेकिन जब जनता के हित में वह जरूरी समझते हैं तो उन साधु-महात्माओं को भी नहीं छोड़ते हैं जो धर्म की आड़ में सरकारी जमीन पर कब्जा करते हैं। इसकी बानगी हाल फिलहाल में जिला आगरा में तब देखने को मिली जब राधास्वामी सत्संग दयालबाग द्वारा अवैध तरीके से कब्जाई गई करीब एक अरब रुपए की जमीन को सत्संगियों से कब्जा मुक्त कराने के लिए योगी के बुलडोजर गरजने लगे।

इसी को लेकर सत्संगियों और क्षेत्रीय ग्रामीण जनता के बीच बवाल भी हुआ था। ग्रामीणों के दर्द को योगी सरकार ने समझा और अवैध अतिक्रमण पर बुलडोजर चलाने के लिए सरकारी अमला वहां पहुंचा तो पुलिस-प्रशासन की टीम पर सत्संग सभा के लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। पथराव में एक पत्रकार समेत करीब 15 पुलिसवाले घायल हो गए। पुलिस के लाठीचार्ज में सत्संग सभा की 64 महिला, पुरुष और बच्चों को चोटे आईं। यह पहला मौका था जब दयालबाग के खेतों, चकरोड पर कब्जा करने के मामले में राधास्वामी सत्संग सभा के खिलाफ 113 साल में पहली बार प्रशासन का बुलडोजर चला था, वर्ना सत्संग सभा ने 1949 से लेकर अब तक हर बार जमीन के विवाद में प्रशासन को उनके खेतों पर भटकने नहीं दिया। पहली बार छह गेटों के टूटने के साथ एक तरफ सत्संगियों का गुरूर टूटा वहीं ग्रामीणों ने राहत की सांस ली।

बताते चलें कि राधास्वामी सत्संग सभा, दयालबाग 1910 में बनी थी। पहली बार आजाद भारत में 1949 में विद्युत नगर का रास्ता बंद करने के मामले में कलेक्ट्रेट में लोगों ने इनके खिलाफ प्रदर्शन किया था। उसके बाद लगातार प्रदर्शन, पथराव, गोलीबारी, मारपीट के मामले होते गए, पर प्रशासन एक बार भी कार्रवाई नहीं कर पाया। पूर्व विधायक विजर्य ंसह राणा ने 1984 में आंदोलन की शुरुआत की, पर सत्संग सभा ने कब्जे नहीं हटाए। पहली बार 23 सितंबर को डीएम भानु चंद्र गोस्वामी के आदेश पर सत्संग सभा के छह गेट ध्वस्त किए गए। यह कार्रवाई उन लोगों के मुंह पर तमाचा था जो माफिया अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी के खिलाफ कार्रवाई के समय कहा करते थे कि योगी सरकार सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई करती है। योगी सरकार ने जिस तरह से राधास्वामी सत्संग वालों से जमीन खाली कराई, वैसे ही अतीक और मुख्तार जैसे माफियाओं से भी खाली कराई गई थी, तब इसे राजनैतिक मुद्दा बना दिया गया था। बहरहाल, योगी आदित्यनाथ इन सब बातों से बेफिक्र जनता के उद्देश्य को पूरा करने के लिए जी-जान से जुटे हुए हैं। हर परिस्थितियों में समान भाव रखने वाले योगी के अनुभव का ही नतीजा है कि कभी माफियाराज और दंगे का पर्याय बने यूपी को ऐसे लोगों से मुक्ति दिलाने और भयमुक्त वातावरण बनाने में उनका कोई सानी नहीं रहा है। योगी की कार्यशैली की चर्चा देश ही नहीं, विदेश तक में होने लगी है। जब विदेशी धरती पर भी कर्हीं ंहसा होती है तो वहां योगी बाबा को बुलाने की बात कही जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब वे सूबे के मुख्यमंत्री बने, तो अपने काम और इरादों से जता दिया कि उनके लिए प्रजा-प्रजा में कोई भेद नहीं है। कोरोना महामारी के समय जिस तरह से योगी ने प्रदेश की जनता का ख्याल रखा, वह किसी प्रेरणा से कम नहीं थी, जब यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव, राहुल गांधी, मायावती, प्रियंका वाड्रा जैसे तमाम नेता कोरोना काल में सोशल मीडिया के माध्यम से जनता को सरकार के खिलाफ भड़काने का काम कर रहे थे, तब योगी जनता की जान बचाने के लिए सड़क पर संघर्ष कर रहे थे। गरीबों के घर अनाज और दवाएं पहुंचाने में लगे थे।

उन्होंने अपने काम से हर मजहब और तबके का दिल जीता। यही कारण रहा कि जनता का विश्वास उन पर बना और वे 2022 में दोबारा प्रचंड बहुमत के साथ जीतकर सत्ता में आए। वे अपने दूसरे कार्यकाल में भी जनता की खुशहाली और विकास के लिए कार्य कर रहे हैं। माफियाओं और असामाजिक तत्वों को दंड देकर आम जनजीवन में भयमुक्त वातावरण बनाने वाले सीएम योगी आज जनता का पूर्ण विश्वास जीतने में सफल रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा के मामले में तो योगी ने यहां तक कह रखा है कि यदि कोई किसी महिला को छेड़ेगा तो अगले चौराहे पर उसका सामना यमराज से हो जायेगा। वह यह कह ही नहीं रहे हैं उनकी पुलिस ऐसा करके भी दिखा रही है। इसकी बानगी तब देखने को मिली जब अम्बेडकर नगर में साइकिल से स्कूल से घर जा रही एक लड़की का दुपट्टा शाहवाज और अरबाज नाम के शोहदों ने खींच लिया, जिससे वह अपना संतुलन खोकर गिर गई और पीछे से एक दोपहिया वाहन ने उसे कुचल दिया। लड़की की मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना से योगी का पारा चढ़ गया, उन्होंने शोहदों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आदेश दिया। परिणाम स्वरूप मुठभेड़ में एक शोहदा मारा गया तो एक अन्य को पैरों में गोली मारकर गिरफ्तार कर लिया गया था।

इसके अलावा भी योगी आदित्यनाथ जब पहली बार सीएम बने थे, तो उन्होंने कई परंपराओं और मिथकों को तोड़ डाला था। सबसे पहला मिथक तो यह कि जो भी सीएम नोएडा जाता है, उसकी कुर्सी चली जाती है। सीएम योगी ने 37 साल पुराना यह मिथक भी सीएम बनने के बाद तोड़ डाला। एक परंपरा यह भी थी कि जो एक बार यूपी का सीएम बन जाता है, वो दोबारा नहीं बनता,लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ ने 2022 का विधानसभा दोबारा प्रचंड बहुमत से जीता और फिर सूबे के मुखिया बने। कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की सियासत में मोदी से बड़ी सियासी लाईन खींचकर अपना परचम फहरा दिया है।

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