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नीतीश के हाथ से फिसलता ‘गठबंधन’ का फल

पटना से दिलीप कुमार

जिस आइएनडीआइए गठबंधन को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी मेहनत से खड़ा किया, अब वहीं उन्हें ही भाव नहीं दिया जा रहा है। यूं कहना भी गलत न होगा कि उनके हाथ से मेहनत का फल फिसलता दिख रहा है। पटना में हुई पहली बैठक के बाद से ही नीतीश कुमार इसका संयोजक बनने की आस लगाए हैं, जो पूरा नहीं हो रहा है। इससे जदयू में नाराजगी दिख रही है। इस नाराजगी में मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के प्रस्ताव ने आग में घी डालने का काम किया है। इसके साथ ही जदयू और राजद के बीच सब कुछ ठीक नहीं होने की चर्चा सामने आ रही है। इसका कारण लगातार सार्वजनिक कार्यक्रमों में नीतीश के साथ तेजस्वी का नहीं दिखना है। इसमें कई कार्यक्रमों में तो तेजस्वी का नाम तय था। पिछले दिनों दिल्ली में हुई आइएनडीआइए गठबंधन की बैठक से पहले राजधानी पटना में जगह-जगह पोस्टर लगाए गए थे, जिसमें नीतीश कुमार को पीएम पद का प्रत्याशी के रूप में पेश किया गया। जब बैठक हुई तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने का सुझाव दे डाला।

बैठक में पहुंचे लालू प्रसाद यादव की ओर से नीतीश के पक्ष में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई। इससे लग रहा है कि लालू, नीतीश को आगे बढ़ने नहीं देखना चाहते। इसे लेकर महागठबंधन में बहुत अच्छा नहीं चल रहा है। नीतीश कुमार की मजबूरी यह है कि वे अब जाए कहां? मजबूरी में वे गठबंधन में बने हुए हैं। वे साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं। खड़गे को पीएम उम्मीदवार की बात पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने तल्ख टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी कैसे किसी का नाम तय कर देंगी। नीतीश कुमार विपक्षी एकता के सूत्रधार हैं। उन्हें किसी पद की इच्छा नहीं है। देश को भाजपा से मुक्त कराना ही उनका लक्ष्य है। वहीं, जदयू के सचेतक और गोपालपुर विधायक नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल ने इस पर कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि कौन है खड़गे-फड़गे? कोई जानता भी है उन्हें? नीतीश कुमार को सारा देश जानता है। उन्होंने इंडिया गठबंधन को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। क्षेत्रीय दलों के नेताओं की पसंद भी प्रधानमंत्री प्रत्याशी के रूप में नीतीश कुमार ही हैं। इसे लेकर नाराजगी पर नीतीश कुमार सबसे अंत में सामने आए। उन्होंने कहा कि कोई नाराजगी नहीं है। हम तो शुरू से यह कह रहे कि हमारी कोई इच्छा नहीं है। उन्होंने सीट शेयरिंग का काम शीघ्र पूरा करने की बात कही।

जदयू-राजद में आखिर यह दूरी क्यों!
दूसरी ओर जदयू और राजद में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। ऐसी चर्चा आम हो चुकी है। इस बात को बल तब मिल रहा, जब कई पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव नहीं पहुंच रहे हैं। पिछले दिनों दरभंगा मेडिकल कालेज व अस्पताल में हुए कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी को भी पहुंचना था, लेकिन वे नहीं आए। इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है दोनों दलों में खींचतान है। भाजपा नेता सुशील मोदी कह रहे कि जदयू में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। वहीं, भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि जल्द ही जदयू का राजद में विलय हो जाएगा। लालू यादव से एक मुलाकात के बाद गिरिराज सिंह ने इस तरह का बयान दिया। इससे कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गयी हैं। इस पर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारी पार्टी पूरी तरह से एकजुट है। सबकुछ ठीक-ठाक है। कुछ लोग इसी तरह गलत-शलत बोलते रहते हैं, ताकि उन्हें कुछ लाभ हो जाए।

सीटों के बंटवारे का पेंच पड़ेगा भारी
दूसरी ओर, राज्य में लोकसभा सीटों के बंटवारे का पेंच अभी से शुरू हो गया। 40 सीटों में किसे कितनी सीटें मिले, इसे लेकर लगातार दावे किए जा रहे हैं। राज्य में भाजपा को हराने के लिए वामदल ने अपने दावे की सीटें इंडिया गठबंधन को देने की बात कही है। राज्य की 40 में से चार सीटों पर ही भाकपा, माकपा और भाकपा-माले की स्थिति मजबूत है। भाकपा बेगूसराय, माकपा उजियारपुर और माले आरा व काराकट में मजबूत स्थिति में है। 2019 के लोकसभा चुनाव में आरा सीट पर माले उम्मीदवार दूसरे स्थान पर था। बेगूसराय में भाकपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर था। वैसे, भाकपा ने बेगूसराय, मधुबनी और बांका लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव महागठबंधन में रखा है। इसी तरह भाकपा माले ने आरा, जहानाबाद, सिवान, काराकट, वाल्मीकिनगर, पाटलिपुत्र, बक्सर और कटिहार सीट पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा है। माकपा के राज्य सचिव ललन चौधरी का कहना है कि प्रदेश में राजद, जदयू, कांग्रेस और वाम दल पूरी तरह एकजुट होकर भाजपा को हराने का काम करेंगे। प्रत्येक सीट पर संयुक्त उम्मीदवार उतारेंगे। इसके लिए अपने दावे की सीटें भी कुर्बान कर सकते हैं। वैसे, सीट शेयरिंग के मामले में जदयू व राजद की ही चलेगी। वाम दलों व कांग्रेस को दी जाने वाली सीटें वे ही तय करेंगे। जनवरी में लोकसभा सीटों का बंटवारा हो जाने की बात कही जा रही है। सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस भी सतर्क है। इसे लेकर बिहार कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को दिल्ली बुलाया गया। वहीं बिहार की लोकसभा सीटों के समीकरण पर विचार-विमर्श हुआ। बिहार के डेढ़ दर्जन से अधिक नेताओं ने बैठक में हिस्सा लिया था। इसमें सीटों से संबंधित सभी तरह के ब्योरा पर चर्चा होने की बात सामने आ रही है। अब तक के प्रदर्शन-परिणाम से सीख और भविष्य की रणनीतिक पहल की रूपरेखा पर भी बात हुई। सीटों के बंटवारे को लेकर भी विचार-विमर्श किया गया। अब देखना यह है कि सीटों की शेयरिंग कब तक होगी? इसमें पेंच तो अवश्य ही फंसेगा।

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