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बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा

नई दिल्ली ( दस्तक ब्यूरो) : कर्पूरी ठाकुर की बुधवार को होने वाली 100वीं जन्म जयंती से पहले उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है। जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की मांग की थी। इस ऐलान के बाद जेडीयू ने मोदी सरकार का आभार जताया है। दिवंगत कर्पूरी ठाकुर भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय के पुरोधा और एक प्रेरणादायक शख्सियत थे। वह बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

1977 की जनता लहर में जब जनता पार्टी को भारी जीत मिली तब भी कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। उनके लिए भारत रत्न सम्मान समाज के वंचित वर्ग के उत्थान में कर्पूरी ठाकुर के जीवनभर के योगदान और सामाजिक न्याय के प्रति उनके अथक प्रयासों को श्रद्धांजलि है।कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में हुआ था। उन्होंने पटना से 1940 में मैट्रिक परीक्षा पास की और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। कर्पूरी ठाकुर ने आचार्य नरेंद्र देव के साथ चलना पसंद किया। इसके बाद उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और 1942 में गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। इसके चलते उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। कर्पूरी ठाकुर भारत छोड़ो आन्दोलन में कूद पड़े थे। उन्हें 26 महीने तक जेल में रहना पड़ा। उन्होंने 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।

साल 1945 में जेल से बाहर आने के बाद कर्पूरी ठाकुर धीरे-धीरे समाजवादी आंदोलन का चेहरा बन गए, जिसका मकसद अंग्रेजों से आजादी के साथ-साथ समाज के भीतर पनपे जातीय व सामाजिक भेदभाव को दूर करने का था ताकि दलित, पिछड़े और वंचित को भी एक सम्मान की जिंदगी जीने का हक मिल सके। 1952 में पहली बार बने विधायक : कर्पूरी ठाकुर 1952 में ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीतकर विधायक बने थे। 1967 के बिहार विधानसभा चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी बड़ी ताकत बन कर उभरी थी, जिसका नतीजा था कि बिहार में पहली बार गैर-कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी।

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