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जम्मू-कश्मीर में लोकसभा के साथ हो सकता है विधानसभा चुनाव, आरक्षण देने पर भी शुरू हुआ विवाद

नई दिल्ली : इस बात की संभावना बढ़ गई है कि अगले साल यानी 2024 में लोकसभा चुनावों के साथ ही जम्मू और कश्मीर (J&K) में विधानसभा चुनाव भी होंगे। केंद्र सरकार कश्मीरी पंडितों और पीओके प्रवासियों के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए संसद के मानसून सत्र में कानून में बदलाव करने के लिए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एक्ट-2019 में संशोधन लाने की तैयारी कर रही है। इसके तहत विधानसभा की दो सीटें पलायन कर चुके कश्मीरी पंडितों और एक सीट पाक अधिकृत कश्मीर से विस्थापित हुए लोगों के लिए आरक्षित किए जाने का प्रावधान है। हालांकि, ये तीनों सीटें मनोनयन से भरी जाएंगी।

पहले इस बात की संभावना जताई जा रही थी कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव नवंबर 2023 में हो सकते हैं लेकिन अब माना जा रहा है कि अन्य पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के कारण पर्याप्त सुरक्षा कर्मियों की उपलब्धता की वजह से चुनाव आयोग इस साल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने में असहज महसूस कर रहा है। बता दें कि जम्मू-कश्मीर 19 दिसंबर 2018 से राष्ट्रपति शासन के अधीन है। पूर्ववर्ती राज्य में आखिरी विधानसभा चुनाव नवंबर 2014 में हुआ था। हालांकि, 2019 में जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव हुए थे, तब सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए चुनाव आयोग ने केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव निर्धारित नहीं किए थे। इस बीच, केंद्र शासित प्रदेश में पंचायत चुनाव भी होने हैं। संभावना जताई जै रही है कि पंचायत चुनाव दिसंबर में हो सकते हैं।

इस साल के आखिर तक विधानसभा चुनाव नहीं होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि जमीनी स्तर पर, चुनाव आयोग ने अभी तक मतदाता सूची में संशोधन से जुड़ी गतिविधियां शुरू नहीं की हैं। आमतौर पर चुनावी साल में इस प्रक्रिया को कम से कम तीन महीने पहले शुरू कर दिया जाता है। जम्मू-कश्मीर के मामले में सुरक्षा संबंधी चिंता सर्वोपरि रही है, जिसकी समीक्षा केंद्रीय गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर होती रही है। अभी तक दोनों विभागों के बीच इस तरह की कोई मीटिंग भी नहीं हुई है, जबकि आयोग ने अन्य पांच चुनावी राज्यों में अलग-अलग टीमें भेजी हैं।

इसबीच, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने कहा है कि उन्हें कश्मीरी प्रवासियों और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के विस्थापित लोगों को विधानसभा में आरक्षण देने से कोई परेशानी नहीं है, लेकिन जिस तरह से उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की जा रही है, उससे वे असहमत हैं। दोनों दलों ने कहा कि विधानसभा में आरक्षित सीटों के लिए सदस्यों को मनोनीत करने की शक्ति निर्वाचित सरकारके पास होनी चाहिए न कि उपराज्यपाल (एलजी) के पास।

नेकां के प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहा, “ हमें ऐसे समुदायों को आरक्षण देने में कोई समस्या नहीं है जिनका प्रतिनिधित्व नहीं है। उच्च सदन का यही विचार था कि ऐसे सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व हो और इसके मुताबिक, उच्च सदन में पहाड़ी, गुज्जर, कश्मीरी पंडित या किसी अन्य समुदाय के लिए सीटें आरक्षित की गईं। लेकिन इस पुनर्गठन अधिनियम ने उसे भी खत्म कर दिया।” उन्होंने कहा कि दूसरा मुद्दा यह है कि उपराज्यपाल केंद्र द्वारा नियुक्त व्यक्ति हैं और उनके पास विधानसभा में सदस्यों को मनोनीत करने की शक्तियां नहीं हैं।

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