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कोरोना-प्राइवेट लैब और हॉस्पिटलों की लूट खसोट!

डॉ.धीरज फुलमती सिंह

मुबंई: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा कहते रहते है कि आपदा मे भी अवसर छुपा होता है। भारत मे कोरोना आपदा विकराल रूप धारण कर चुका है। इस समय प्राइवेट लैब और प्राइवेट हॉस्पिटलों का तो यह हाल है कि जैसे बिल्ली के भाग, छिकें फूटे। इस कोरोना संकट काल को ये संस्थाएं पैसा कमानें के लिए खुब भूना रही है। इस संकट काल को भी पैसा कमाने के लिए इन्होने अवसर में बदल दिया है। शायद भारत के प्रधानमंत्री की बात को इन्होने कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया है?

मुंबई के पास मुंब्रा में एक शख्स के पिताजी का देहांत कोरोना से हो गया। पूरा परिवार दहशत में आ गया। परिवार के सभी बारह सदस्यों ने थाईरो केयर प्राइवेट लैब मे अपनी कोरोना जांच करवाई तो उसमे से छह लोगों की रिपोर्ट पॉजीटिव आई लेकिन उसी दिन उन लोगों के नमूने थाणे सरकारी अस्पताल ने भी लिये थे जो कि निगेटिव आए थे। अब परिवार पूरी तरह असमंजस में पड गया।

उनकी फिर जांच हुए तो उनकी रिपोर्ट पुन: निगेटिव आई है। बाद मे जब अंदर खाने तहकीकात हुई तो पता चला कि थाईरो केयर लैब ने उनकी कोरोना पॉजीटिव होने की झूठी रिपोर्ट बनाई थी। इस लैब की साठगांठ एक प्राइवेट अस्पताल से थी जिसके यहां कोरोना इलाज का खर्च कम से कम तीन लाख रूपये तक आता है और थायरो केयर लैब का उसमे कमीशन बंधा होता था।

इस कमीशन के फेर में इस प्राइवेट लैब और प्राइवेट हॉस्पिटल की आपस में साठगांठ थी, इस लिए भी झूठी रिपोर्ट बनाकर मरीजों को बहला फुसलाकर और डराकर उस अस्पताल में भर्ती कराया जाता था, ताकि मोटा पैसा बनाया जा सके।

यह तो गनीमत रही कि समय रहते इस प्रकार की कारस्तानियों का पता चला वर्ना न जाने कितने मासूम और अंजाने लोग इस अंजाने-अंजाम को भुगत रहे होते? यह भी गौरतलब है कि झूठी रिपोर्ट बनाकर इलाज के नाम पर कई लोगों को जानबूझकर ख़तरे में डाला जाता रहा है तो उनकी मानसिक और पारिवारिक स्थिति कैसी होती होगी?

महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार

ऐसे समय मरीज के साथ ही खौफ के माहौल में परिवार के सभी लोग जी रहे होते हैं। मुंबई के बांद्रा में भी ऐसा ही भ्रष्टाचार उजागर हुआ था लेकिन महानगर पालिका ने तुरंत कार्यवाही करते हुए उस लैब को सील कर दिया है। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने भी निजी अस्पतालों की मनमानी और इलाज मे लापरवाही बरतने के लिए इनके आड़े हाथों लिया है लेकिन इस बात का भी कुछ असर निजी अस्पतालों पर होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है।

कुछ दिनों पहले ही एक और खबर आई थी कि कोरोना से ग्रसित एक मरीज को मरने के बाद डॉक्टर ने उसके परिवार के द्वारा दबाव और कुछ रुपयों के लालच की वजह से उसकी मृत्यु प्रणाम पत्र में मरीज़ के कोरोना से मरने का कारण दर्ज नहीं किया था ताकि उसकी अंतिम क्रिया उनके धार्मिक रीतिरिवाज से हो सके लेकिन उस डॉक्टर ने सिर्फ चंद रुपयों के लिए किसने मासूम, अंजान और बेगुनाह लोगों की जान जोखिम में डाल दी थी?

प्रतीकात्मक फोटो

इसका इल्म तो उसके कफन-दफन के संस्कार मे शामिल किसी को नहीं रहा होगा लेकिन डाक्टर के गुनाह की किमत वे सब बेचारे भूगत रहे है। धर्म और अर्थ के नाम पर कमाई के लिए ऐसे लोग इस तरह का पाप करने मे जरा भी गुरेज नहीं करते। कोरोना कॉल मे कई लोगों की इंसानियत मर चुकी है।

देश की राजधानी दिल्ली से भी ऐसी बहुत सी शिकायतें आ रही है कि पैसे कमाने की खातिर प्राइवेट लैब और प्राइवेट हास्पीटल की मिली भगत से कई लोगों कि झूठी और मनगढ़ंत रिपोर्ट बनाई जा रही है ताकि कोरोना से पैदा हुए खौफ से धन बटोरा जा सके। देश में कोरोना संकट के समय तो कई प्राइवेट हॉस्पिटल इंसानियत ताक पर रखकर जल्लाद जैसा व्यवहार कर रहे हैं, ऐसा लग रहा है कि ईश्वर ने भारत में कोरोना फैलाकर उनकी मुंह मांगी मुराद पूरी कर दी हो।

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प्रतीकात्मक फोटो

हाल फिलहाल में ऐसा अनुभव हुआ है कि किसी कोरोना मरीज के निजी अस्पताल मे भर्ती होते ही मालिक और डॉक्टर की बांछें खिल जाती है। उनको हर कोरोना मरीज के रूप मे सूटकेस में रखी तीन-चार लाख रुपयों के नोटों की गड्डीयां नजर आने लगती है।

आने वाले समय में तो दिल्ली, मुंबई जैसे कई महानगरों में कोरोना और भी विकराल रूप धारण कर सकता है, तो ऐसे में अगर कोरोना के मरीजों को देखकर इनको नोटों से भरी तिजोरियां नजर आने लगे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। डॉक्टर कभी भगवान होते थे, परन्तु आज ये सिर्फ आम मानव बन कर रह गये हैं।

ऐसा होना संभव भी है क्योंकि कोरोना संकट को रोकने से केंद्र सरकार ने अपना हाथ झटक लिया है और सभी जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर मढ़ कर बड़ी सफाई से सरक गई है। गोया केंद्र सरकार का कोरोना संकट से कोई लेना देना ही न हो? केंद्र सरकार एक मार्गदर्शक की भांति दूर खड़े रह कर बस तमाशा देख रही है। इस संकट से बचने की पूरी कवायद सिर्फ और सिर्फ राज्य सरकारों को करनी है।

कई साल पहले एक फिल्म आई थी, उसमे नायक मरघट पर काम करता है, मरघट पर जब कोई शव दाह के लिए लाया जाता था तो नायक खुश हो जाता था, क्योंकि शव दाह करने से उसको कुछ आमदनी हो जाती थी, उसे दुखी परिवार और लोगो से कोई सरोकार नहीं होता था। निजी लैब और हॉस्पिटलों की करतूत से जब रोज दो-चार होना पड़ रहा है, तो अनायास ही वह मरघट का नायक मुझे याद आ जाता है।

इतिहास गवाह है कि संकट के समय में भारत का प्राइवेट सेक्टर कभी भी देश के साथ खड़ा नजर नहीं आता। हर संकट में यह सेक्टर भोलभाव व तोलमोल कर के सब से पहले अपनी लाभ-हानी देखता है। भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या गरीब है। लॉक डाउन मे बडे-बडों की कमर टूट चुकी है, ऐसे में निजी लैब और हॉस्पिटल की लूट-खसोट को नियंत्रित करने की पहल राज्य सरकारों को ही करनी पड़ेगी अन्यथा लोग इलाज कराने से मरना बेहतर समझेंगे।

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