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इन लोगों के लिए जानलेवा हो सकता है फैटी लिवर! कंट्रोल करने में बेहद काम आएंगी ये टिप्‍स

नई दिल्ली : लिवर हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में एक है. लिवर में होने वाली किसी भी परेशानी का असर पूरे शरीर पर पड़ता है. यह भोजन को पचाने के साथ ही हमारे शरीर से टॉक्सिंस (toxins) को बाहर निकालने में भी मदद करता है. खानपान की गलत आदतों की वजह से लिवर पर बुरा प्रभाव पड़ता है. आज के समय में हर उम्र के लोगों को फैटी लिवर (fatty liver) की बीमारी हो रही है. लिवर में फैट जमा होने को ही फैटी लिवर कहा जाता है.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि फैटी लिवर डायबिटीज रोगियों के लिए बहुत खतरनाक है.

लिवर में फैट इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ाता है. इंसुलिन प्रतिरोध एक ऐसी स्थिति है जिसमें कोशिकाएं ब्लड शुगर (cells blood sugar) को अवशोषित नहीं कर पाती हैं जिससे ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है. जैसे-जैसे इंसुलिन प्रतिरोध बढ़ता है, आपकी पैनक्रियास (अग्न्याशय) कड़ी मेहनत कर इसे दूर करने की कोशिश करते हैं. लेकिन धीरे-धीरे यह थकने लगती है जिसके बाद टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ने लगता है. वहीं, डरने वाली बात यह भी है कि एक बार जब किसी को डायबिटीज हो जाता है तो उसे फैटी लिवर विकसित होने का खतरा और भी होता है. वास्तव में टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित 80 प्रतिशत लोग फैटी लिवर से भी पीड़ित होते हैं.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि फैटी लिवर पर हमारा नजरिया पिछले एक दशक में काफी बदल गया है. विज्ञान हमेशा विकसित होता है, वैसे-वैसे हमें हर समय नई चीजें सिखाता है. दशकों तक लिवर में वसा को हानिरहित और निष्क्रिय माना जाता था. लेकिन अब हमें एहसास हुआ है कि नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिसीस (NAFLD) लिवर की सबसे कॉमन क्रॉनिक डिसीस है और इसके प्रभाव काफी गंभीर हो सकते हैं.

फैटी लिवर का मतलब लिवर में अतिरिक्त चर्बी से है. लिवर में सामान्य रूप से कुछ फैट होता है लेकिन एमआरआई स्कैन या लिवर बायोप्सी जैसे उन्नत उपकरणों की जांच में यह पांच से छह प्रतिशत से कम पाया गया है. इससे अधिक फैट फैटी लिवर डिजीज बनाता है जिसे मेडिकल भाषा में नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) कहते हैं. हालांकि लिवर में वसा वाले सभी लोगों को बड़ी समस्याएं नहीं होती हैं लेकिन यह पांच से 10 प्रतिशत मामलों में सूजन (स्टीटोहेपेटाइटिस या नॉन एल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस यानी NASH) का कारण बन सकता है इसके बाद इससे फाइब्रोसिस, सिरोसिस, लिवर फेलियर और दुर्लभ मामलों में लिवर कैंसर भी हो सकता है.

लेकिन लिवर में फैट सिर्फ उस अंग को ही प्रभावित नहीं करता है. चूंकि यह शरीर की अलग-अलग प्रक्रियाओं के कामकाज में अहम भूमिका निभाता है इसलिए लिवर में फैट का जमाव डायबिटीज, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों का जोखिम बढ़ा सकता है.

शरीर से एक्स्ट्रा किलो कम करना इस दिशा में पहला कदम है. शरीर के वजन का पांच से 10 प्रतिशत कम करने से लिवर की स्थिति में काफी हद तक सुधार हो सकता है और कई बार प्रारंभिक अवस्था में स्थिति को पूरी तरह ठीक कर सकता है. इसके लिए स्वस्थ आहार का सेवन और नियमित व्यायाम जरूरी है. इस बीमारी से पीड़ित लोगों को सब्जियां, दाल और बीन्स, साबुत अनाज, नट्स, चिकन और मछली जैसे लीन प्रोटीन से भरपूर आहार खाना चाहिए. जबकि मिठाई, सफेद ब्रेड/ मैदा और तले हुए खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए. शराब NAFLD को खराब कर सकती है और इससे खासतौर पर बचना चाहिए.

डायबिटीज की बीमारियों में पियोग्लिटाजोन दवा प्रभावी है. यह एक एंटी-डायबिटिक दवा है जिसका उपयोग टाइप 2 डायबिटीज में किया जाता है लेकिन वजन बढ़ने जैसे अपने दुष्प्रभावों के कारण इसका व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता है. साइड इफेक्ट को कम करने के लिए पियोग्लिटाजोन की कम खुराक का उपयोग किया जा सकता है. इसके अलावा कई और एंटी-डायबिटिक दवाएं जैसे लिराग्लुटाइड, डुलाग्लुटाइड, सेमाग्लूटाइड) भी वजन घटाने में मदद करती हैं और लिवर की चर्बी को भी कम करती हैं.

अगर कोई डायबिटीज की बीमारी से पीड़ित है और उसे फैटी लिवर की बीमारी भी हो जाती है तो उसे अपनी डाइट पर खास ध्यान देना होगा, साथ ही फिजिकल एक्टिविटी भी करनी होगी. इससे छुटकारा पाने के लिए वजन कम करना और डायबिटीज पर नियंत्रण करना जरूरी है. सही एंटी-डायबिटिक दवा चुनना भी जरूरी है. हालांकि यह सब इलाज और दवाओं का इस्तेमाल किसी डॉक्टर के मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिए.

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