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छह महीने में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दिलाएं 100 करोड़

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण को एक भूमि मालिक को लगभग 100 करोड़ रुपये की मुआवजा राशि का भुगतान छह सप्ताह में करने का निर्देश दिया है। जिसने 1997 में छलेरा बांगर गांव में 2.18 बीघा (7400 वर्ग मीटर) जमीन खरीदी थी। एक साल पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी जमीन मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया था। हालांकि मुआवजे की राशि कम थी। इसलिए याचिका कर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में केस फाइल किया। प्राधिकरण इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की योजना बना रहा है।

याचिकाकर्ता रेड्डी वीराना ने 1997 में छलेरा बांगर गांव में एक करोड़ रुपये की लागत से दो भूखंड खरीदे थे। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि इसके तुरंत बाद नोएडा प्राधिकरण के कर्मचारियों ने उन्हें जमीन पर कब्जा करने के लिए परेशान करना शुरू कर दिया और बाद में उन्होंने हस्तक्षेप न करने की प्रार्थना के साथ प्राधिकरण के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करते हुए एक दीवानी मुकदमा दायर किया। नोएडा प्राधिकरण ने अदालत में कहा कि भूमि कामर्शियल मॉल में स्थित थी। इसलिए यह बहुत महंगा था और वीराना द्वारा भूमि का कब्जा अवैध था। निचली अदालत ने वीराना के पक्ष में आदेश दिया और प्राधिकरण को जमीन पर कब्जा करने से रोक दिया। प्राधिकरण ने आदेश को जिला न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी, जिसे खारिज कर दिया गया।

स्टे के बाद भी प्राधिकरण ने 2003 में वीराना के स्वामित्व वाली भूमि सहित अन्य भूमि के बड़े भूखंड के विकास के लिए एक निविदा जारी की। 2004 में एक डेवलपर को भूमि आवंटित की गई। प्राधिकरण ने अगले वर्ष भूमि अधिग्रहण के लिए एक अधिसूचना जारी की और 2006 में कब्जा ले लिया गया। वीरना ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिसूचना को चुनौती दी और अंतरिम आदेश के अनुसार 2008 में एक राजस्व निरीक्षक ने साइट का दौरा किया। लेकिन इस भूमि का सीमांकन नहीं किया जा सका क्योकि तब तक भूमि विकसित हो चुकी थाी। हाई कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण अधिकारी को एक महीने की अवधि के भीतर मुआवजे का निर्धारण करने का निर्देश दिया।

नोएडा प्राधिकरण ने हाई कोर्ट के आदेश को 2010 में स्पेशल लीव टू अपील के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे बाद में 2013 में दीवानी अपील में बदल दिया गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 23.94 लाख रुपये के मुआवजे की गणना की गई और नवंबर 2015 में प्राधिकरण की अपील खारिज कर दी गई।

विराना ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से संपर्क किया और अवमानना ​​​​याचिका दायर की। उन्हें 2019 में इलाहाबाद हाईकोर्ट से संपर्क करने के लिए कहा गया था। दो साल बाद हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में आदेश दिया लेकिन सर्किल रेट 1.1 लाख में 50 प्रतिशत काट कर प्राधिकरण को भुगतान करने के लिए कहा। याचिकाकर्ता और नोएडा प्राधिकरण दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने प्राधिकरण से ब्याज के अलावा 1.10 लाख रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से मुआवजे का भुगतान करने को कहा गया।

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