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देवी देवताओं को क्यों चढ़ाते हैं नारियल, जानिए कैसे शुरू हुई ये प्रथा

हिन्दू धर्म भारत का प्रमुख धर्म है इस धर्म में पुरातन समय से कई परम्पराए चली आ रही है जिनका कुछ न कुछ कारण और महत्व है प्राचीन काल में कई प्रथाएं थी जो की अनुचित एवं क्रूर थी जैसे सतीप्रथा या नर बलि की प्राथा प्राचीन काल में देवी देवता को खुश करने के लिए पुरुषो की बलि का प्रचलन था जिसे नर बलि भी कहा जाता है। इसमें साधक अपनी साधना पूरी करने के लिए और अपनी मनोकामनाकी पूर्ती के लिए नर बलि देते थे किन्तु समय के साथ इन प्रथाओ का अंत हो गया है और इसका स्थान अन्य चीजो ने ले लिया है जेसे भगवान को खुश करने के लिए,किसी धार्मिक काम की समाप्ति के उपरांत बलि के स्थान पर नारियल तोडा जाता है या चढ़ाया जाता है।

नारियल क्यों चढाते है इसके पीछे भी एक कारण है इसे नर का प्रतीक माना गया है। इसके ऊपर के बुच को बाल इसके सख्त भाग को खोपड़ी इसके अन्दर के पानी को रक्त की संज्ञा की गई है। नर बलिका प्रचलन किस प्रकार बंद हुआ और उसकी जगह नारियल क्यों चढाते है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है की प्राचीन काल में एक आश्रम के ऋषि ने नर बलि को मानवता का शत्रु मानकर इसे बंदकरने के लिए इसके स्थान पर नारीयल का प्रयोग प्रारम्भ किया जिससे सभी उनका अनुशरण करने लगे और धीरे धीरे सभी ओग नारियल का उपयग करने लगे जिसके कारण नर का स्थान नारियल ने लेलिया और इस प्रथा का अंत हुआ।

नारियल का धर्म की द्रष्टि में महत्वपूर्ण स्थान है इसे श्री फल भी कहा जाता है ऐसा माना जाता है की इसमें त्रिदेवो का वास होता है। इसे चढाने से मनुष्य की मनोकामनाए पूर्ण होती है और उसके जीवन में सुख शांति आती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार नारियल अर्थात श्रीफल विष्णु भगवान् प्रथ्वी पर अपने साथ अपने अवतार के समाय लेकर आये थे इस द्रष्टि से यह काफी शुभ मन जाता है।

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