सुप्रीम कोर्ट ने एफसीआरए के 2020 संशोधन की वैधता को बरकरार रखा
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन (एफसीआरए) अधिनियम, 2020 की वैधता की पुष्टि की, जिसमें गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) द्वारा धन की प्राप्ति और उपयोग पर नई शर्तें लगाने के प्रावधान हैं। न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर ने एफसीआरए अधिनियम, 2010 में किए गए 2020 के संशोधनों को बरकरार रखा। मामले में विस्तृत निर्णय दिन में बाद में शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम में 2020 में किए गए संशोधनों का बचाव करते हुए, बिना किसी विनियमन के बेलगाम विदेशी योगदान प्राप्त करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। एमएचए ने जोर दिया कि एफसीआरए का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विदेशी योगदान संसदीय संस्थानों, राजनीतिक संघों और शैक्षणिक एवं अन्य स्वैच्छिक संगठनों के साथ-साथ भारत में व्यक्तियों के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले।
याचिकाकर्ताओं ने संशोधनों को चुनौती दी थी, जिसमें नई जोड़ी गई धारा 12 और 17 शामिल हैं, जिसमें कहा गया है कि विदेशी योगदान अनुसूचित बैंक की निर्दिष्ट शाखा में बनाए गए एफसीआरए खाते में जमा किया जाना चाहिए, जिसे बाद में भारतीय स्टेट बैंक, नई दिल्ली शाखा के रूप में अधिसूचित किया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि संशोधन मनमाने और कड़े हैं, जिससे गैर सरकारी संगठनों का कामकाज बेहद मुश्किल हो गया है। गृह मंत्रालय (एमएचए) ने सुप्रीम कोर्ट में दायर 355 पन्नों के एक हलफनामे में कहा कि संसद ने विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम बनाया है, जिसमें देश में कुछ गतिविधियों के लिए विदेशी योगदान पर सख्त नियंत्रण की स्पष्ट विधायी नीति निर्धारित की गई है।
एमएचए ने कहा, “कानून ने राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक किसी भी गतिविधि के लिए और उससे जुड़े या प्रासंगिक मामलों के लिए विदेशी योगदान या विदेशी आतिथ्य की स्वीकृति और उपयोग पर भी रोक लगा दी है।” हलफनामे का निपटारा भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया था, जिन्हें वकील कानू अग्रवाल ने सहायता प्रदान की थी।
इस मामले में आंध्र प्रदेश में शेयर एंड केयर फाउंडेशन के नोएल हार्पर और निगेल मिल्स और तेलंगाना में नेशनल वर्कर्स वेलफेयर ट्रस्ट के जोसेफ लिजी और अन्नाम्मा जोआचिम याचिकाकर्ता हैं।