छत्तीसगढ़राज्य

वर्ष में एक बार खुलने वाले माता लिंगेश्वरी गुफा के द्वार 27 सितंबर को खुलेंगा

नारायणपुर : जिले के ग्राम आलोर झाटीबन की पहाड़ी गुफा में स्थित वर्ष में एक बार खुलने वाला माता लिंगेश्वरी मंदिर के पट इस वर्ष 2023 में हिंदू पंचाग के अनुसार भादृपद शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी 27 सितंबर बुधवार को खुलेंगा, यह निर्णय मंदिर सेवा समिति ने लिया है। बैठक में समिति अध्यक्ष अंकालू राम मरकाम, बंसीलाल दीवान, सचिव दुकार सिंह नेताम, सुखदेव मरकाम मानसिंह कोर्राम, फुलदास मरकाम, रामशु कोर्राम, बालनाथ दीवान, राधे मरकाम, अघनु कोर्राम, उजियार कोर्राम, सुकालु मण्डवी, अर्जून कोर्राम आदि मौजूद थे। आपको बता दें श्रद्धालुओं को माता लिंगेश्वरी मेले का इन्तजार रहता है। छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु अपनी मनोकामना लिए माता के दर्शन को पहुंचते हैं। अधिकांश नि:संतान दंपत्ति संतान की प्राप्ति के लिए माता के दर्शन करने आते हैं। खूबसूरत वादियों में लिंग स्वरूप में माता लिंगेश्वरी विराजमान है, जो ग्राम झाटीबन आलोर के पहाड़ों के बीच एक गुफा में माता लिंगेश्वरी विराजमान है।

गौरतलब है कि माँ लिंगेश्वरी सेवा समिति झाटी बन आलोर के अनुसार प्रति वर्ष द्वार बंद करने के दौरान गुफा के अंदर रेत बिछाई जाती है और द्वार खोलने पर बिछी हुई रेत में जो पद चिन्ह जिस दिशा की ओर दिखाई देते हैं वह उस क्षेत्र के विकास, सुख शांति, खुशहाली और भय, आतंक, विवाद आदि को दशार्ते हैं। जैसे गाय, हाथी, शैर के पद चिन्ह क्षेत्र के धन-धान्य और खुशहाली को दशार्ते हैं। वही तेंदुआ, बिल्ली, मनुष्य के पैरों के निशान वाद-विवाद, भय एवं आतंक को दशार्ते हैं। यहां सन्तान प्राप्ति के लिए भक्तों की ओर से खीरा माँ लिंगेश्वरी को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।

पुजारी की ओर से पूजा-अर्चना के बाद संतान चाहने वाली महिला की आंचल में प्रसाद के रूप में उसी खीरा को वापस दिया जाता है। उसी पहाड़ी पर बैठकर पति को अपने नाखूनों से खीरे के दो भाग करना होता है। फिर उसमें से एक भाग पति और दूसरा भाग पत्नी को खाना होता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने वाले दंपती अवश्य संतान सुख को प्राप्त करते हैं।

माँ लिंगेश्वरी मंदिर के पट खुलने के पहले से लेकर पट के बन्द होने तक सभी समाज के लोगों की अलग-अलग जिम्मेदारियां बंटी हुई हैं। यादव समाज मंदिर स्थल में पानी और सामग्री लाकर खीर और आटे का प्रसाद बनाकर चढाते हैं। वहीं माली फूल की व्यवस्था, कुम्हार समाज के द्वारा हंडी, दीया, धूप, आरती की व्यवस्था, अंधकुरी समाज का काम बाजा, मोहरी बजाना होता है। इसी तरह दूसरे समाज को भी अलग अलग जिम्मेदारी दी जाती है। समस्त समाजों के लोगों द्वारा अपने कार्यों का निर्वहन पूरी श्रद्धा पूर्वक किया जाता है, तभी माँ लिंगेश्वरी मेला सम्पूर्ण माना जाता है।

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