दस्तक-विशेषसाहित्यस्तम्भ

…आखिर हिंदी वालों की हिंदी से इतनी दूरी क्यों!

उमेश यादव

हमें दुनिया से रूबरू कराने वाली हमारी मात्र भाषा हिंदी है। जन्म के बाद गोद में बच्चा पहला शब्द “माँ” हिंदी में ही बोलता है। उसके बाद से लेकर स्कूली शिक्षा की शुरुआत तक हमारी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का माध्यम हिंदी ही रहती है।

हिंदी भाषी क्षेत्र में तो जीवन पर्यंत लोगों की भावनाओं और विचारों के आदान प्रदान का प्रमुख माध्यम हिंदी ही रहती है। फिर भी मात्र भाषा हिंदी के प्रति हमारी सोच संकुचित होती जा रही है।हिंदी दिवस पर मंचो से बड़े बड़े भाषण व्यक्त किये जाते है। हिंदी को बढ़ावा देने के लिये अनेकों प्रयास पोस्टर बैनरों में नजर आते है पर यह सब प्रयास हर साल मंचो और पोस्टरों तक ही सिमट कर रह जाते है यह धरातल पर कभी नजर नहीं आते है।

लगता है प्यारी हिंदी को हम सब वैसा प्यार नहीं करते जिसकी उसे दरकार है। लेकिन प्यारी हिंदी, हमारी हिंदी का नारा विशेष दिवस पर खूब गूंजता है। मातृभाषा के प्रति विशेष लगाव शायद नारों तक ही सिमट कर रह गया है। यूपी बोर्ड की हाईस्कूल व इंटरमीडिएट 2020 की परीक्षा का परिणाम इस बात की पुष्टि कर रहा है।

बताया जा रहा है कि दोनों परीक्षाओं के करीब आठ लाख परीक्षार्थी सिर्फ इसलिए फेल हो गए हैं, क्योंकि वे हिंदी विषय में उत्तीर्ण की बिंदी नहीं लगा सके हैं। बोर्ड की ओर से जारी हिंदी विषय का यह आंकड़ा शर्मसार करने वाला है, क्योंकि उत्तर प्रदेश हिंदी पट्टी का अहम व देश में आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य है।

मीडिया रिसोर्स की खबरें बताती है कि बोर्ड द्वारा हाईस्कूल व इंटर का विषयवार जारी परिणाम जिसमें इंटर की हिंदी परीक्षा में 1,08,207 व सामान्य हिंदी में 1,61,753 सहित कुल 2,69,960 परीक्षार्थी अनिवार्य प्रश्नपत्र में उत्तीर्ण होने लायक अंक नहीं ला पाए। ऐसे ही हाईस्कूल की हिंदी परीक्षा में 5,27,680 व प्रारंभिक हिंदी में 186 सहित कुल 5,27,866 परीक्षार्थी फेल हुए हैं। दोनों परीक्षाओं में कुल 7,97,826 परीक्षार्थी अनुत्तीर्ण हैं।

ये वे परीक्षार्थी हैं, जो हिम्मत जुटाकर परीक्षा में शामिल हुए थे। हैरत की बात यह भी है कि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार हाईस्कूल में फेल होने वालों की संख्या बढ़ी है, जबकि इंटर के हिंदी विषय में फेल होने वालों का आंकड़ा तेजी से घटा है। वैसे भी इंटर के परीक्षार्थियों को हाईस्कूल की अपेक्षा अधिक परिपक्व माना जाता है। ज्ञात हो कि मातृभाषा में अनुत्तीर्ण होने वालों का इतना खराब परिणाम पहली बार नहीं आया है, बल्कि पिछले साल तो फेल होने वालों की तादाद दस लाख को पार गई थी।

 दोनों परीक्षाओं में मातृभाषा हिंदी की परीक्षा देना अनिवार्य है और इसका असर पूरे परीक्षा परिणाम पर पड़ता है लेकिन, इस विषय पर न शिक्षक गंभीर हैं न परीक्षार्थी और ना ही उनके अभिभावक, इसलिये हर साल हिंदी में फेल होने वालों की तादाद लाखों में रहती है।

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