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शनि देव और सूर्य एक दूसरे के विरोधी क्यों, कारण जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

नई दिल्ली : 19 मई 2023 को शनि जयंती का पर्व है. शनि की देव की कृपा पाने के लिए हिंदू धर्म में इस दिन का खास महत्व है. धार्मिक मान्यता है कि जो इस दिन शनि देव की भक्तिपूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं, जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता.

शनि देव की पूजा से जाने-अनजाने में किए पाप कर्मों के दोष से भी मुक्ति मिल जाती है. शनि देव सूर्य और माता छाया के पुत्र है लेकिन शनि देव और सूर्य एक दूसरे के विरोधी माने जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार इसका संबंध शनि देव के जन्म से जुड़ा है.

स्कंदपुराण की कथा के अनुसार सूर्यकी शादी राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुई थी. संज्ञा सूर्य देव के तेज से परेशान हो चुकी थी. संज्ञा और सूर्य देव की तीन संतान हुई जिनका नामवैवस्वत मनु, यमुना और यमराज हैं. कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ रिश्ता निभाने की कोशिश की, लेकिन संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं. सूर्य देव के तेज को कम करने के लिए संज्ञा ने एक उपाय, सूर्य देव को इस की भनक न हो इसलिए जाने से पहले वह संतान के लालन-पालन और पति की सेवा के लिए उन्होंने तपोबल से अपनी हमशक्ल संवर्णा को उत्पन्न किया, जिसे छाया के नाम से जाना जाता है.

छाया को पारिवारिक जिम्मेदारी सौंपकर संज्ञा पिता दक्ष के घर चली गईं लेकिन पिता ने उनका इस कार्य का समर्थन नहीं किया और वापस उन्हें सूर्यलोक जाने को कहा, लेकिन संज्ञा नहीं मानी और वन में घोड़ी बनकर तपस्या करने लगी. वहीं छाया रूप होने के कारण सवर्णा को सूर्य देव के तेज से कोई परेशानी नहीं हुई और कुछ समय बाद छाया और सूर्य देव के मिलन से शनि देव, भद्रा का जन्म हुआ. जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले थे.

ब्रह्मपुराण के अनुसार छाया पुत्र होने के कारण शनि देव का रंग काला था, जिसके चलते सूर्य देव को उन्हें अपना पुत्र स्वीकार करने से इनकार कर दिया. साथ ही सूर्य देव ने छाया पर भी संदेह किया. उन्होंने छाया पर आरोप लगाया कि शनि देव उनके पुत्र नहीं हो सकते. सूर्य देव के ऐसे कटु वचन सुनकर शनि देव क्रोधित हो उठे और पिता सूर्य देव की ओर देखने लगे. उनकी शक्ति से सूर्य देव काले हो गए . बाद में जब सूर्य देव को गलती का एहसास हुआ तो उन्हें पुन: अपना मूल रुप में प्राप्त हुआ. इस घटना के बाद से शनि और सूर्य देव के रिश्तों में खटास आ गई. ये एक दूसरे के शत्रु माने जाते हैं.

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