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जंगल की फल, सब्जी बेचकर अरबों कमा रहे हैं लोग

नई दिल्ली : वन का वैभव सिर्फ पेड़ों और उनकी लकड़ियों तक ही सीमित नहीं होता। जंगल में और भी बहुत सी चीजें उगती हैं और इनमें से कुछ तो काफी स्वादिष्ट भी होती हैं। फिनलैंड के करेलिया में मशरूम और बेरी की बढ़िया उपज होती है। पैसे भले ही पेड़ों पर न लगते हों लेकिन पेड़, पौधों पर लगने वाली चीजें जैसे बेरी, मशरूम या बादाम की बिक्री यूरोप में सालाना ढाई अरब यूरो से ज्यादा की है। अब जंगलों की इस उपज पर रिसर्चरों की भी नजर है। मकसद है यह पता लगाना कि कौन से जंगल में क्या उपजेगा और कितना। इसके लिए एक खास सिस्टम भी तैयार किया गया है। फिनलैंड के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़े कॉको सालो का कहना है, जानकारी का हमारा सिस्टम काफी फायदेमंद है क्योंकि लोग जानना चाहते हैं कि मशरूम और बेरी इकट्ठा करने के लिए जंगल में कब जाएं, ताकि उन्हें घर पर इस्तेमाल कर सकें या फिर कंपनियों को बेच सकें। फिनलैंड में ये टैक्स फ्री आय का जरिया है। फॉरेस्ट रिसर्च इस्टीट्यूट से ही जुड़े यारी मीना और उनकी टीम बाज़ार को और भी आकर्षक बनाने की कोशिश में है। उनका कहना है, हम जंगल की विशेषताओं और उसकी उपज के बीच के रिश्ते को समझना चाहते हैं, ताकि हम सुझाव दे सकें कि मशरूम और बेरी की उपज को बढ़ाने के लिए जंगल की कैसे देखभाल करनी है। जंगलों से मिलने वाले सामान को जमा करने या खरीदने और बेचने के काम में कुछ परिवार और कंपनियां भी लगी हैं। स्थानीय निवासी माटी कॉन्टूरी का परिवार भी लंबे समय से इस काम में जुटा है। वह आसपास के लोगों से मशरूम और बेरी खरीदते रहे हैं। जंगल से मिले बड़े मशरूम की अच्छी कीमत मिल जाती है। माटी कॉन्टूरी बताते हैं, मेरे लिए ये अतिरिक्त कमाई है। अच्छे सीजन में पांच हजार यूरो तक के मशरूम जमा कर लेता हूं।

जंगल की उपज का कारोबार करने वाली कंपनी अब रिसर्चरों के साथ मिल कर ऐसी तकनीक पर काम कर रही है जो फायदेमंद हो और उन्हें मौसम पर भी निर्भर न रहना पड़े। मशरूम और बेरी की उपज बरसात और तापमान पर निर्भर होती है। इसलिए पहले से ही तैयार रहना होता है। रिसर्चरों की कोशिश है कि जंगल से ले कर ग्राहकों तक के सफर को आसान बनाया जा सके। जमीन मालिक हों, फल जमा करने वाले या फिर छोटे व्यवसाय, इरादा है कि इन सब की बेहतर कमाई हो सके। एक अच्छा तरीका है जंगल से मिलने वाले फलों की वहीं आसपास ही प्रोसेसिंग करना। अगर जंगल से मिलने वाली चीजों को ऑर्गेनिक का दर्जा मिल जाए तो लोगों की उनमें दिलचस्पी और बढ़ेगी। हालांकि फिलहाल यह मुमकिन नहीं है। एक कंपनी है जो बेरी को सुखा कर उसका पाउडर बना लेती है। इसे फिर दही या दूसरी चीजों में मिला कर खाया जा सकता है। इसकी बेहतर लेबलिंग से फायदा हो सकता है। कंपनी के सीईओ कारी कॉलिजॉनन बताते हैं, मौजूदा सर्टिफिकेशन सिस्टम में जंगल से मिलने वाली चीजों पर ऑर्गेनिक का लेबल नहीं लग सकता। इसे बदलने की जरूरत है। इंसान जब से धरती पर है कुदरत का लुत्फ ले रहा है।

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