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अमेरिकी संसद में बिल पेश, भारत में कॉल सेंटर की नौकरियों पर खतरा!

वाशिंगटन। अमेरिका में कॉल सेंटर की नौकरी को संरक्षण के लिए संसद में एक विधेयक पेश किया गया है। इससे भारत पर प्रभाव पड़ने की संभावना है। विधयेक में प्रस्ताव किया गया है कि भारत जैसे देशों में कॉल सेंटर के कर्मचारियों को अपने कार्यस्थान की जानकारी देनी होगी। इसके अलावा उन्हें अमेरिकी ग्राहकों की मांग पर उनके कॉल अमेरिका स्थित सर्विस एजेंट को ट्रांसफर करने का अधिकार भी देना होगा।

ओहायो के डेमोक्रेट सीनेटर शेरोड ब्राउन ने विधेयक पेश किया। विधयेक में कॉल सेंटर का काम आउटसोर्स करने वाली कंपनियों की सार्वजनिक सूची बनाने का भी प्रस्ताव है। इसके अलावा इसमें ऐसी कंपनियों को संघीय कांट्रैक्ट न देने को कहा गया है जो अपनी नौकरियां विदेश में नहीं देती हैं। ब्राउन ने कहा कि ऑफशोरिंग (विदेश से संचालन) के चलते अमेरिका में कॉल सेंटर की नौकरियां पर संकट है।

ओहायो और पूरे अमेरिका की ढेर सारी कंपनियां बंद हो गईं और वे भारत या मैक्सिको चली गईं। कम्यूनिकेशंस वर्कर्स ऑफ अमेरिका के अध्ययन के मुताबिक, अमेरिकी कंपनियों के ऑफशोरिंग कॉल सेंटर काम के लिए भारत और फिलीपींस शीर्ष दो गंतव्य हैं।

अमेरिकी कंपनियों ने मिस्र, सऊदी अरब, चीन और मैक्सिको में भी कॉल सेंटर खोले हैं। नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज के अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट उद्योग में भारत करीब 28 अरब डॉलर (18,25,49 करोड़ रुपये)सालाना राजस्व के साथ शीर्ष स्थान पर है।

ग्रीन कार्ड में देरी खत्म करने को रैली

अमेरिका में सैकड़ों भारतीय पेशेवरों ने ग्रीन कार्ड में देरी और इसके लिए प्रति देश का कोटा खत्म करने की मांग को लेकर रैली निकाली। अरकंसास, केंटुकी और ओरेगॉन में सप्ताहांत में रैली निकालकर उन्होंने अमेरिकी सांसदों से इस मामले में समर्थन मांगा। एच-1बी वीजा के जरिये अमेरिका आने वाले भारतीय मौजूदा आव्रजन नीति से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

इस नीति के तहत ग्रीन कार्ड देने के लिए हर देश के लिए सात फीसद का कोटा किया गया है। इसके परिणामस्वरूप कुशल भारतीय अप्रवासियों को ग्रीन कार्ड के लिए 70 वर्षों तक का लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।

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