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काबुल की सड़कों पर पसरा सन्नाटा, अमेरिका और भारत फंसे लोगों को निकालने में जुटे

नई दिल्ली। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अफरा-तफरी का माहौल है। चुनिंदा देशों को छोड़कर अमेरिका, भारत और सऊदी अरब समेत अन्य देश या तो अपने दूतावासों को बंद कर अपने लोगों को वहां से निकाल चुके हैं या निकालने का काम जारी है। एफपी न्यूज एजेंसी के अनुसार अमेरिकी सेना युद्धग्रस्त देश से अबतक 3,200 लोगों को निकाल लिया है। वहीं, भारत भी अपने दूतावास के अधिकारियों समेत लगभग 500 लोगों को वापस ला चुका है,जबकि अभी भी कुछ भारतीयों के फंसे होने की संभावना, उन्हें भी वापस लाने का प्रयास किया जा रहा है। सरकारी सूत्रों ने बताया कि भारत ने अपने दूतावास को बंद नहीं किया है और स्थानीय कर्मचारी वहां कांसुलर सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।

तलिबान ने महिलाओं को सरकार में शामिल होने का न्योता दिया है। उन्हें इस्लामिक कानून के तहत अधिकार देने के साथ ही काम करने और पढ़ने की अनुमति देने का भरोसा दिलाया है। तालिबान ने कहा है कि वह किसी दूसरे देश को निशाना बनाने के लिए अपनी जमीन के इस्तेमाल की अनुमति नहीं देगा। इसके अलावा विदेशी सेनाओं के लिए काम करने वाले सैनिकों, अनुवादकों और ठेकेदारों के खिलाफ प्रतिशोध की भावना से काम नहीं करेगा।

तलिबाैन के कब्जे के बाद राजधानी काबुल में वीरानी छाई हुई है। बाजार में सन्नाटा पसरा है, दुकानें और सरकारी प्रतिष्ठान बंद हैं। लोग डरे हुए हैं। सड़कों पर एके-47 और अन्य अत्याधुनिक हथियार लिए तालिबान के लड़ाके पहरा दे रहे हैं। लोगों को डर है कि अमेरिका समर्थित सरकार के दो दशक के शासन काल के दौरान दो आजादी और अधिकार उन्हें मिले थे, तालिबान के राज में वो सब खत्म हो जाएंगे।

अफगानिस्तान में मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले सैकड़ों लोगों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताई है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बेसलेट के प्रवक्ता ने कहा कि रूपर्ट कालविल ने कहा कि हम विशेष रूप से उन हजारों अफगानों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं तो वहां मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे हैं।

काबुल से भारतीय राजदूत और दूतावास में काम करने वाले कर्मचारियों को वायु सेना के मालवाहक विमान ग्लोबमास्टर से वापस लाया गया। भारत से अफगानिस्तान जाने के लिए सबसे सीधा रूट पाकिस्तान होते हुए है, लेकिन वायु सेना का विमान होने के नाते ग्लोबमास्टर ने पाकिस्तानी वायु क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं किया। इसे खाड़ी क्षेत्र से ईरान होते हुए काबुल भेजा गया था और उसी रास्ते से वापस भी लौटा।

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