अन्तर्राष्ट्रीयदस्तक-विशेष

काश, मेरे मुल्क में भी शांति होती

– मुजून अलमेलहन, यूएन की गुडविल अंबेसडर

मुजून सीरिया के शहर डारा में पली-पढ़ीं। पापा स्कूल टीचर थे। उन्होंने अपने चारों बच्चों (दो बेटे और दो बेटियों) की पढ़ाई को सबसे ज्यादा तवज्जो दी। सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक देश में गृह युद्ध छिड़ गया। सरकार और कट्टर इस्लामी ताकतें एक-दूसरे पर हमले करने लगीं। देखते-देखते डारा शहर तबाही के कगार पर पहुंच गया। स्कूल और सरकारी इमारतों पर बम बरसने लगे। तमाम लोग मारे गए। हर पल खौफ में बीत रहा था। हजारों लोग घर छोड़कर चले गए। तब मजबूरन मुजून के परिवार ने सीरिया छोड़कर जाॅर्डन में शरण लेने का फैसला किया। यह वाकया फरवरी, 2013 का है। मम्मी-पापा ने जरूरी सामान बांधा और चल पड़े जाॅर्डन की ओर। बच्चे भी सदमे में थे। पूरे रास्ते सब शांत रहे। किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा। मन में एक ही बात थी कि किसी तरह सुरक्षित जाॅर्डन पहुंच जाएं। वह आधी रात का वक्त था, जब वे सब जाॅर्डन की सीमा में दाखिल हुए, तो उन्हें जातारी शरणार्थी शिविर में जगह मिली। अचानक जिंदगी बदल गई। शिविर में हजारों लोग पहले से मौजूद थे। खाने-पीने और इलाज लोग सीमित सुविधाओं में गुजारा करना पड़ा। करीब तीन साल जाॅर्डन में गुजारे। इस दौरान कई बार शरणार्थी कैंप बदलने पड़े। वह घोर अनिश्चितता का दौर था। सीरिया में हालात लगातार बदतर होते गए। वापस जाने की उम्मीदें धूमिल पड़ने लगी थीं। मुजून कहती हैं कि जब मुल्क छोड़ा था, तब सोचा था कि कुछ दिनों के बाद हालात सामान्य हो जाएंगे और हम लौट जाएंगे। पर लौटने की उम्मीदें खत्म होती गई।
इस बीच सीरिया छोड़कर जाॅर्डन आने वालों की संख्या बढ़ रही थी। अब शरणार्थियों को रोकने की कवायद शुरू हो गई। एक तरफ मम्मी-पापा भविष्य की आशंकाओं से जूझ रहे थे, तो दूसरी तरफ मुजून शरणार्थी कैंप की बच्चियों की समस्याओं से रूबरू हो रही थी। यहां उनकी मुकाकात ऐसी बच्चियों से हुई, जिनकी पढ़ाई छूट चुकी थी। मां-बाप उनके निकाह की तैयारी कर रहे थे। उन्हें यह बात बड़ी अजीब लगी। उनके पापा तो हमेशा से बेटियों को पढ़ाना चाहते थे। शरणार्थी कैंपों में अस्थायी स्कूल भी चलते थे। मुल्क छोड़ने के बाद भी पापा ने बच्चों की पढ़ाई जारी रखी। वह और उनके भाई-बहन कैंप के अस्थायी स्कूल में पढ़ने लगे। पर वहां कुछ माता-पिता अपनी बेटियों को स्कूल भेजने की बजाय उन्हें घर के कामकाज सिखाते थे। मुझे उन लड़कियों पर बड़ा तरस आता था। मैंने उनके मम्मी-पापा से कहा कि वे उन्हें स्कूल भेेजें। कुछ लोग इस बात पर नाराज भी हो गए। उन्हें लगता था कि बेटियों का पढ़ना-लिखना फिजूल है। पर कुछ लोगों को मेरी बात ठीक भी लगी। मुजून शरणार्थी कैंपों में घूमकर बच्चियों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करने लगीं। यही नहीं, उन्होंने कई लड़कियों का निकाह भी रूकवा दिया। पापा उनके इस काम से बहुत खुश थे। जल्द ही जाॅर्डन के शरणार्थी शिविरों में उनकी चर्चा होने लगी। उन दिनों दुनिया में पाकिस्तान की सामाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई की खूब चर्चा हो रही थी। तभी खबर आई कि मलाला जाॅर्डन के शरणार्थी शिविर में आने वाली हैं। मुजून बताती हैं कि मलाला हमारे शिविर में आई। उनसे मिलना सपने जैसा था। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम बहुत नेक काम कर रही हो।
इसी बीच मुजून के परिवार को कनाडा और स्वीडन में बसने का प्रस्ताव मिला। पर उनके पिता वहां जाने को राजी नहीं हुए। दरअसल, अपने मुल्क को छोड़कर जाॅर्डन में रहना पहले से ही काफी मुश्किल था। अब एक बार फिर किसी नए मुल्क में जाने का ख्याल काफी डराने वाला था। मन में खौफ था कि पता नहीं, नए मुल्क में किस तरह के हालात हों? खासकर बेटियों को लेकर उनके मन में तमाम आशंकाएं थीं। मुजून स्वभाव से काफी निडर थीं। शरणार्थियों के लिए काम कर रही अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनीसेफ के सदस्यों से उनकी मुलाकात हुई। फिर वह यूनीसेफ की टीम के साथ मिलकर बच्चियों की शिक्षा के लिए काम करने लगीं। दूसरी तरफ, सीरिया में हालात सुधरने की उम्मीद लगभग खत्म होने लगी थी। यह बात भी साफ थी कि अब जाॅर्डन में ज्यादा दिन रहना मुमकिन नहीं है। इसलिए मुजून ब्रिटेन में शरण पाने की संभावनाएं तलाशने लगीं। सितंबर, 2015 में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने बीस हजार सीरियाई शरणार्थियों को शरण देने का एलान किया। मुजून ने पापा से बात की। वह ब्रिटेन जाने को राजी हो गए। उनका परिवार जाॅर्डन से लंदन पहुंचने वाला पहला सीरियाई शरणार्थी परिवार था। लंदन में भी उनकी पढ़ाई जारी रही। मुजून पत्रकार बन शरणार्थियों की कहानिया दुनिया तक पहुंचाना चाहती हैं। हाल में संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें अपना गुडविल अंबेसडर बनाया है। वह सबसे कम उम्र की महिला शरणार्थी हैं, जिन्हें यह जिम्मेदारी मिली है। मुजून कहती हैं कि मैं चाहती हूं कि पूरी दुनिया में बेटियों को पढ़ने का मौका मिले। किसी लड़की की कम उम्र में शादी नहीं हो। मुजून कहती हैं, मैं चाहती हूं कि बेटियों को पढ़ने का पूरा मौका मिले। किसी लड़की की कम उम्र में शादी नहीं होनी चाहिए। यह सपना जरूर पूरा होगा।
(प्रस्तुति – मीना त्रिवेदी, संकलन – प्रदीप कुमार सिंह )

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