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गुटनिरपेक्षता के पक्षधर थे जवाहरलाल नेहरू

jawahar lal nehru(पुण्यतिथि : 27 मई पर विशेष)
नई दिल्ली । पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री (1947-1964) थे। जवाहर लाल नेहरू संसदीय सरकार की स्थापना और विदेशी मामलों में ‘गुटनिरपेक्ष’ नीतियों के लिए विख्यात हुए। 193० और 194० के दशक में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से वह एक थे। नेहरू कश्मीरी ब्राण परिवार के थे जो अपनी प्रशासनिक क्षमताओं तथा विद्वत्ता के लिए विख्यात थे और जो 18वीं शताब्दी के आरंभ में इलाहाबाद आ गए थे। उनका जन्म इलाहाबाद में 14 नवंबर 1889 ई. को हुआ। वे पं. मोतीलाल नेहरू और श्रीमती स्वरूप रानी के एकमात्र पुत्र थे। अपने सभी भाई-बहनों में जिनमें दो बहनें थीं जवाहरलाल सबसे बड़े थे। उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई 14 वर्ष की आयु में नेहरू ने घर पर ही कई अंग्रेज अध्यापिकाओं और शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त की। इनमें से सिर्फ़ एक फर्डिनैंड ब्रुक्स का जो आधे आयरिश और आधे बेल्जियन अध्यात्मज्ञानी थे उन पर कुछ प्रभाव पड़ा। जवाहरलाल के एक समादृत भारतीय शिक्षक भी थे जो उन्हें हिंदी और संस्कृत पढ़ाते थे। 15 वर्ष की उम्र में 19०5 में नेहरू एक अग्रणी अंग्रेजी विद्यालय इंग्लैंड के हैरो स्कूल में भेजे गए। हैरो में दाखिल हुए जहां वह दो वर्ष तक रहे। नेहरू का शिक्षा काल किसी तरह से असाधारण नहीं था। हैरो से वह कैब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए जहां उन्होंने तीन वर्ष तक अध्ययन करके प्रकृति विज्ञान में स्नातक उपाधि प्राप्त की। उनके विषय रसायनशास्त्र भूगर्भ विद्या और वनस्पति शास्त्र थे। कैब्रिज छोड़ने के बाद लंदन के इनर टेंपल में दो वर्ष बिताकर उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और उनके अपने ही शब्दों में परीक्षा उत्तीर्ण करने में उन्हें ‘न कीर्ति न अपकीर्ति’ मिली। भारत लौटने के चार वर्ष बाद मार्च 1916 में नेहरू का विवाह कमला कौल के साथ हुआ जो दिल्ली में बसे कश्मीरी परिवार की थीं। उनकी अकेली संतान इंदिरा प्रियदर्शिनी का जन्म 1917 में हुआ; बाद में वह विवाहोपरांत नाम इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनीं तथा एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसकी शीघ्र ही मृत्यु हो गई थी।
सन् 1912 में वे बैरिस्टर बने और उसी वर्ष भारत लौटकर उन्होंने इलाहाबाद में वकालत प्रारंभ की। वकालत में उनकी विशेष रुचि न थी और शीघ्र ही वे भारतीय राजनीति में भाग लेने लगे। 1912 में उन्होंने बांकीपुर (बिहार) में होने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। भारत लौटने के बाद नेहरू ने पहले वकील के रूप में स्थापित होने का प्रयास किया लेकिन अपने पिता के विपरीत उनकी इस पेशे में कोई खास रुची नहीं थी और उन्हें वकालत और वकीलों का साथ दोनों ही नापसंद थे। उस समय वह अपनी पीढ़ी के कई अन्य लोगों की भांति भीतर से एक ऐसे राष्ट्रवादी थे जो अपने देश की आजादी के लिए बेताब हो लेकिन अपने अधिकांश समकालीनों की तरह उसे हासिल करने की ठोस योजनाएं न बना पाया हो। सन् 1916 ई. के लखनऊ अधिवेशन में वे सर्वप्रथम महात्मा गांधी के संपर्क में आए। गांधी उनसे 2० साल बड़े थे। बहरहाल 1929 में कांग्रेस के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन का अध्यक्ष चुने जाने तक नेहरू भारतीय राजनीति में अग्रणी भूमिका में नहीं आ पाए थे। इस अधिवेशन में भारत के राजनीतिक लक्ष्य के रूप में संपूर्ण स्वराज्य की घोषणा की गई। उससे पहले मुख्य लक्ष्य औपनिवेशिक स्थिति की मांग था। सन् 1929 में जब लाहौर अधिवेशन में गांधी ने नेहरू को अध्यक्ष पद के लिए चुना था तब से 35 वर्षों तक 1964 में प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए मृत्यु तक 1962 में चीन से हारने के बावजूद नेहरू अपने देशवासियों के आदर्श बने रहे। देशभर में जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन 14 नवंबर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। नेहरू बच्चों से बेहद प्यार करते थे और यही कारण था कि उन्हें प्यार से चाचा नेहरू बुलाया जाता था।

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