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जन्मदिन विशेष: हर भूमिका में ढल जाते हैं नाना पाटेकर

nana-patekar-5686146750f85_lभारतीय सिनेमा में नाना पाटेकर को एक ऐसे बहुआयामी कलाकार के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने नायक,सहनायक,खलनायक और चरित्र भूमिकाओं से दर्शकों को अपना दीवाना बनाया है।नाना पाटेकर के अभिनय में एक विशेषता रही कि वह किसी भी तरह की भूमिका के लिये सदा उपयुक्त रहते हैं।

फिल्म खामोशी में गूंगे की भूमिका हो, परदा और अंगार जैसी फिल्म में मानसिक रूप से विक्षिप्त खलनायक की भूमिका या फिर तिरंगा या क्रांतिवीर जैसी फिल्मों में एक्शन से भरपूर किरदार हो, वह सभी भूमिकाओं में खरे उतरे।

नाना पाटेकर उर्फ विश्वनाथ पाटेकर का जन्म मुंबई मे 01 जनवरी 1951 को एक मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में हुआ। उनके पिता दनकर पाटेकर चित्रकार थे। नाना ने मुंबई के जे.जे स्कूल आफ आर्ट्स से पढ़ाई की।

इस दौरान वह कॉलेज द्धारा आयोजित नाटकों में हिस्सा लिया करते थे । नाटा को स्केचिंग का भी शौक था और वह अपराधियों की पहचान के लिये मुंबई पुलिस को उनकी स्केच बनाकर दिया करते थे।

नाना ने अपने सिने करियर की शुरूआत वर्ष 1978 मे प्रदर्शित फिल्म गमन से की लेकिन इस फिल्म में दर्शकों ने उन्हें नोटिस नहीं किया 1अपने वजूद को तलाशते नाना को फिल्म इंडस्ट्री में लगभग आठ वर्ष संघर्ष करना पड़ा । फिल्मगमन के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली, वह स्वीकार करते चले गये। इस बीच उन्होंने गिद्ध ,भालू और शीला जैसी कई दोयम दर्जे की फिल्मों मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं हुईं। वर्ष 1984 मे प्रदर्शित फिल्म आज की आवाज में बतौर अभिनेता नाना पाटेकर ने राजब्बर के साथ काम किया। यह फिल्म पूरी तरह राजब्बर पर केन्द्रित थी, फिर भी नाना ने अपने सधे हुए अभिनय की छाप दर्शकों पर छोडऩे में कामयाब रहे। हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित नहीं हुईं। नाना को प्रारंभिक सफलता दिलाने में निर्माता-निर्देशक एन. चंद्रा की फिल्मों का बड़ा योगदान रहा। उन्हें पहला बड़ा ब्रेक फिल्म अंकुश (1986) से मिला। इस फिल्म में उन्होंने एक ऐसे बेरोजगार युवक की भूमिका निभायी, जो काम नहीं मिलने पर समाज से नाराज है और उल्टे सीधे रास्ते पर चलता है।

अपने इस किरदार को नाना पाटेकर ने इतनी संजीदगी से निभाया कि दर्शक उस भूमिका को आज भी भूल नहीं पाये हैं। इसी फिल्म से .एन चंद्रा .ने बतौर निर्माता और निर्देशक अपने सिने करियर की शुरूआत की थी। वर्ष 1987 में नाना को एन.चंद्रा की ही फिल्म प्रतिघात में काम करने का अवसर मिला। यूं तो पूरी फिल्म अभिनेत्री सुजाता मेहता पर आधारित थी लेकिन नाना इस फिल्म में एक पागल पुलिस वाले की छोटी सी भूमिका निभाकर अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवा लिया। वर्ष 1989 में प्रदर्शित फिल्म परिन्दा नाना के सिने कैरियर की हिट फिल्मों में शुमार की जाती है विधु विनोद चोपड़ा निर्मित इस फिल्म में उन्होंने मानसिक रूप से विक्षिप्त लेकिन अपराध की दुनिया के बेताज बादशाह की भूमिका निभाई, जो गुस्से में अपनी पत्नी को जिंदा आग में जलाने से भी नहीं हिचकता। अपनी इस भूमिका को नाना सधे हुये अंदाज में निभाकर दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे।

वर्ष 1991 में नाना ने फिल्म निर्देशन में भी कदम रख दिया और प्रहार का निर्देशन और अभिनय भी किया ।इस फिल्म की सबसे दिलचस्प बात यह रही कि उन्होंने अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को ग्लैमर विहीन किरदार देकर दर्शकों के सामने उनकी अभिनय क्षमता का नया रूप रखा । वर्ष 1992 मे प्रदर्शित फिल्म तिरंगा बतौर मुख्य अभिनेता नाना के सिने कैरियर की पहली सुपरहिट फिल्म साबित हुयी । निर्माता -निर्देशक मेहुल कुमार की इस फिल्म में उन्हें संवाद अदायगी के बेताज बादशाह राजकुमार के साथ काम करने का मौका मिला लेकिन नाना ने भी अपनी विशिष्ट संवाद शैली से राजकुमार को अभिनय के मामले में कड़ी टक्कर देते हुये दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।

वर्ष 1996 मे प्रदर्शित फिल्म खामोशी में उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला । इस फिल्म उन्होंने अभिनेत्री मनीषा कोईराला के गूंगे पिता की भूमिका निभाई। यह भूमिका किसी भी अभिनेता के लिये बहुत बड़ी चुनौती थी। बगैर संवाद बोले सिर्फ आंखों और चेहरे के भाव से दर्शकों को सब कुछ बता देना नाना की अभिनय प्रतिभा का ऐसा उदाहरण था ,जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाये ।

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