टॉप न्यूज़फीचर्डब्रेकिंगराष्ट्रीय

जरूररतमंद देशों को जरूर दी जायेगी पैरासिटामोल और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन

नई दिल्ली : सरकार ने कोविड-19 से फैले संक्रमण से निपटने में इस्तेमाल होने वाली दवाओं- पैरासिटामोल और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन के निर्यात पर लगी रोक हटाते हुए दोनों को लाइसेंस वाली कैटिगरी में डाल दिया है। भारत सरकार यह संकेत दे चुकी है कि कोरोना से जंग में जिन देशों को मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली इस दवा की जरूरत होगी, उनकी मदद की जाएगी। ऐसे में फार्मा कंपनियों ने इस दवा का प्रॉडक्शन कई गुना करने का फैसला किया है। यह अलग बात है कि मलेरिया के इलाज में काम आने वाली दवा कोविड-19 का संक्रमण दूर करने में कितनी कारगर हैं, इसको लेकर डॉक्टरों और वैज्ञानिकों में मतभेद है। लेकिन, भारत सरकार के इस फैसले से जो संकेत मिले हैं, उन्हें समझते हुए फार्मा कंपनियों ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का प्रॉडक्शन करीब 6 गुणा करने का फैसला किया है। भारत सरकार यह संकेत दे चुकी है कि कोरोना से जंग में जिन देशों को मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली इस दवा की जरूरत होगी, उनकी मदद की जाएगी। आइए जानें कि देश में कौन-कौन सी फार्मा कंपनियां यह दवा बनाती हैं और उनके क्या प्लान हैं। देश में कई कंपनियां इस दवा का प्रॉडक्शन करती हैं।

जायडस कैडिला और इप्का लैबोरेटरीज प्रमुख हैं। कंपनियां मार्च के लिए मासिक प्रॉडक्शन को 4 गुना कर 40 मीट्रिक टन तक कर सकती हैं। साथ ही अगले महीने 5-6 गुना बढ़ाकर 70 मीट्रिक टन तक किया जा सकता है। अगर ये कंपनियां अपनी फुल कपैसिटी पर काम करें तो हर महीने 200 एमजी की 35 करोड़ टैबलेट तैयार की जा सकती हैं। भारत में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन की एक टैबलेट की कॉस्ट 3 रुपये से कम होती है। 7 करोड़ मरीजों को ठीक करने के लिए 10 करोड़ टैबलेट काफी हैं। ऐसे में बाकी प्रॉडक्शन का निर्यात किया जा सकता है। पड़ोसी देशों के साथ-साथ अमेरिका को इसका एक्सपोर्ट किया जा सकता है, जिसे उसकी जरूरत है। कोरोना वायरस संक्रमण पर इस दवा ने असर दिखाया है। यही वजह है कि बार-बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस दवा के लिए भारत की मदद चाहते हैं। भारत इसका बड़ा एक्सपोर्टर है।

Related Articles

Back to top button