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जाकिर नाइक के NGO को क्लिन चिट देने वाले अधिकारी आए जांच के घेरे में

naik_2016926_101124_26_09_2016नई दिल्‍ली। गृह मंत्रालय ने विवादित धर्म प्रचारक जाकिर नाइक की एनजीओ इस्‍लामिक रिसर्च फाउंडेशन को विदेश से फंड जुटाने का लाइसेंस देने वाले चार अधिकारियों की भूमिका की जांच शुरू कर दी है। जाकिर नाइक बांग्‍लादेश में हुए आतंकी हमले के बाद भारत की खुफिया एजेंसियों के राडार पर आया था। इस मामले में गृह मंत्रालय ने चार अधिकारियों को शुरूआती जांच के बाद संस्‍पेंड कर दिया था।

अब इस मामले में इनकी भूमिका की जांच की जाएगी। इन्‍होंने ही नाइक की इस एनजीओ के अकांउट की जांच के बाद लाइसेंस देने की स्‍वीकृति दी थी। हालांकि शुरुआती जांच में यह भी निकलकर आया है कि विदेशी फंड जुटाने की इजाजत आला अधिकारियों से नहीं ली गई थी।

इस बाबत गृहमंत्रालय में एफसीआरए यूनिट के डिप्‍टी सेक्रेट्री लेेवल पर इसकी जांच की जा रही है। इसके अलावा अस्टिेंट डायरेक्‍टर द्वारा इस मामले में की गई ऑब्‍जरवेशन की भी जांच की जाएगी, जो एफसीआरए उल्‍लंघन मामले में एक शिकायत के बाद की गई थी।

एफसीआरए यूनिट नाइक के 2 जून से लेकर 6 जून 2014 के बीच अकाउंट की भी जांच करेगी। इस दौरान उसकी एनजीओ को मिले फंड पर एफसीआरए को संदेह है। इसी दौरान नाइक द्वारा राजीव गांधी चेरिटेबल ट्रस्‍ट को की जाने वाली 50 लाख की फंडिंग पर भी एजेंसी की निगाह है।

एक अंग्रेजी अखबार की खबर के मुताबिक जाकिर नाइक को विदेशों से फंड जुटाने के बाबत दी 19 मार्च 2015 को दी गई जांच रिपोर्ट पर अस्सिटेंट डायरेक्‍टर ने हस्‍ताक्षर किए हैं। इसमें एक नोटिंग में नाइक को इस्‍लाम का प्रचारक कहते हुए लिखा गया है कि उसके द्वारा अन्‍य धार्मिक पुस्‍तकों पर की गई टिप्‍पणी पर कई दूसरे समूहों ने आपत्ति दर्ज कराई थी। हालांकि एफसीआरए आतंकी संगठन अलकायदा, तालिबान और मुंबई में हुए आतंकी हमले से उसकी एनजीओ के संबंधों के बारे में कुछ पता नहीं लगा सकी।

दरअसल इन अफसरों पर आरोप है कि इन्होंने बेहद गंभीर मामले में तथ्यों की जांच किए बिना संस्था का एफसीआरए रीन्यू कर दिया। मामला सामने आते ही गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस मामले में कार्रवाई का निर्देश दिया।

बाद में इन्‍हें लापरवाही बरतने के आरोप में अधिकारियों का निलंबित किया गया है, जिन अधिकारियों का निलंबन हुआ है उन सभी ने जाकिर की संस्था की एफसीआरए फाइल पर सकारात्मक रिपोर्ट दी थी। इस मामले में कड़ी कार्रवाई का फैसला सरकार में शीर्ष स्तर पर लिया गया था। मामला पीएमओ के संज्ञान तक पहुंच गया था। जिसके बाद तीनों अफसरों के खिलाफ कार्रवाई का फैसला लिया गया।

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