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पहली बार सिंहस्थ में जैन साध्वी चंदनप्रभा बनेंगी महामंडलेश्वर

एजेंसी/ chandan_prabha1_201652_19256_02_05_2016अभय जैन भैया, उज्जैन। महाकुंभ सिंहस्थ इस बार एक ऐसे पल का साक्षी भी बनेगा, जो इससे पहले कभी नहीं घटा। पहली बार जैन साध्वी रहीं महिला संत का सनातन धर्म में महामंडलेश्वर के रूप में प्रवेश होगा। ये जैन साध्वी हैं चंदनप्रभा गिरी, इनका 12 मई को जूना अखाड़े में पट्टाभिषेक होगा।

तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ की अधिष्ठायक देवी पद्मावती की साधक के रूप में विख्यात चंदनप्रभा पिछले 15 सालों से भले ही पूरी तरह जैन साध्वी नहीं हैं, लेकिन वे गृहस्थ जीवन में भी नहीं लौटी और तप-त्याग के साथ लगातार सेवा में जुटी हैं। उनके कार्यों से प्रभावित होकर पंच दशनाम जूना अखाड़ा के संतों ने महामंडलेश्वर की उपाधि देने का फैसला लिया है। इसके बाद वे महामंडलेश्वर चंदनप्रभानंद गिरी हो जाएंगी। इससे पहले 10 मई को अखिल भारतीय ज्योतिष व जैन यति महासम्मेलन, 11 मई को 1008 जोड़ों से महालक्ष्मी पद्मावती का महापूजन, रथयात्रा, भक्ति संध्या होगी।
 
विश्व का सबसे ऊंचा त्रिशूल किया भेंट
 
साध्वी चंदनप्रभा ने अखाड़े को देश का सबसे ऊंचा त्रिशूल भेंट किया है। इसके ही नीचे मंदिर निर्माण कर 9 मई को मां पद्मावती की 55 इंच मूर्ति की प्रतिमा प्रतिष्ठित होगी।
 
35 साल पहले बनीं जैन साध्वी
 
साध्वी चंदनप्रभा वर्ष 1974 में महज 12 वर्ष की उम्र से ही आध्यात्म के क्षेत्र में आ गईं और दीक्षार्थी वेश में उन्होंने लाढ़नूं राजस्थान में हायर सेकंडरी तक शिक्षा प्राप्त की। वर्ष 1981 में तेरापंथ जैन आचार्य तुलसी से दीक्षा अंगीकार की और वर्ष 1993 तक घोर तपस्या की।
 
असाध्य बीमारी दूर हुई तो बदली शैली
 
साध्वी चंदनप्रभा को वर्ष 1994 में कैंसर हो गया। उनका दावा है कि मां पद्मावती के आशीर्वाद से कैंसर की गांठ गायब हो गई, जिससे डॉक्टर भी आश्चर्य में पड़ गए। साध्वी चंदनप्रभा तेरापंथ समुदाय में दीक्षित हुई थीं, जहां मूर्तिपूजा नहीं की जाती है लेकिन बीमारी दूर होने के बाद उनकी धर्मशैली भी बदल गई। जब गुरु से इसकी आज्ञा नहीं मिली तो वर्ष 1996 में सालावास के जंगल में चली गईं और अन्न्-जल त्याग कर केवल बकरी के दूध के आधार पर तीन साल तक साधना की।
 
16 साल पहले की तीर्थ स्थापना
 
साध्वी चंदनप्रभा ने 12 फरवरी 2000 को जोधपुर में चंदन पार्श्व पद्मावती तीर्थ की स्थापना कर पद्मावतीजी का और फिर प्रभु पार्श्वनाथ का भव्य मंदिर बनवाया। तीर्थ पर 18 साल से कंद-मूल रहित, रात्रि भोजन निषेध के साथ निशुल्क भोजनशाला संचालित हो रही है। वर्तमान में उनके मार्गदर्शन में 108 पार्श्वनाथ भगवान के कमल मंदिर की स्थापना पूर्णता की ओर है जिसकी अगले साल प्रतिष्ठा होने की संभावना है।
 
जैन और सनातन धर्म के बीच बनाएंगी समन्वय
 
नईदुनिया से चर्चा में साध्वीजी ने कहा- जैन आचार-विचार जीवन में रचे-बसे हैं। महामंडलेश्वर बनने के बाद भी वे पार्श्व-पद्मावती की भक्ति करेंगी। उनसे जब पूछा गया कि नदी में स्नान करना जैन धर्म के विपरीत है तो कहा, वे दोनों धर्म के बीच समन्वय बनाएंगी। सेवा लक्ष्य है। मानव सेवा, जीवदया, परमार्थ के कार्यों के लिए कोई धर्म बाधक नहीं बनता। पंथ, संप्रदाय से ऊपर उठकर सेवा के काम करना है। आचार्य तुलसी गुरु थे, हैं और रहेंगे लेकिन अब वे दिव्यलोक में हैं। इसलिए लौकिक जगत में जूना अखाड़े के हरिगिरीजी को गुरु माना है। महामंडलेश्वर बनने से उनके द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों का विस्तार ही होगा।
 
जैन संतों से लिया आशीर्वाद
 
साध्वीजी ने कहा कि सिंहस्थ शुरू होने के पहले वे उज्जैन में विराजित आचार्यश्री रविंद्र सूरिश्वरजी, आचार्यश्री मुक्तिसागर सूरिश्वरजी, मुनि प्रज्ञासागरजी, तेरापंथ मुनि सुबोधकुमार सहित कई जैन संतों के पास पहुंचीं और आशीर्वाद प्राप्त किया। उनके पंडाल में अन्य समुदाय के साथ स्थानीय जैन धर्मावलंबी बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। कार्यक्रम आयोजकों में भी जैन समाज के अनुयायियों की संख्या ज्यादा है।
 
 

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