जीवनशैली

प्राणायाम को अमेरिकी मैगजीन ने बताया ‘ब्रीदिंग एक्सरसाइज’

प्राचीन काल से ही भारत में योग को खास महत्व दिया गया है. चाहे भारतीय दर्शन हो या व्यावहारिक जीवन, दोनों में ही योग की खास जगह रही है. वर्तमान में भी विदेश से भी लोग योग सीखने भारत आते हैं. हालांकि, अब ‘साइंटिफिक अमेरिकन’ में छपे एक लेख में योग की पूरी प्रक्रिया को ‘कार्डियक कोहरेंस ब्रीदिंग एक्सरसाइज’ के नए नाम से पेश किया गया है.

प्राणायाम को अमेरिकी मैगजीन ने बताया 'ब्रीदिंग एक्सरसाइज'यह आर्टिकल जैसे ही ट्विटर पर शेयर किया गया, भारतीय अपने मन की बात कहने से नहीं चूके. जर्नल ने लिखा, कार्डियक कोहरेंस ब्रीदिंग एक्सरसाइज हार्टबीट को स्थिर करती है और इसमें चित्त को शांत करने की गजब की क्षमता है. इस आर्टिकल के साथ जो तस्वीर शेयर की गई है, वह असल में प्राणायाम की ही मुद्रा है. ट्विटर पर कई भारतीयों ने सवाल किया कि क्या यह नई एक्सरसाइज भारतीय योग नहीं है?

इस आर्टिकल में सांस लेने संबंधी कई तकनीक पर ध्यान दिया गया है और बताया गया कि ये ब्रीदिंग एक्सरसाइज बेचैनी और अनिद्रा के खिलाफ लड़ने में असरदार कैसे है. इसमें प्राणायाम का भी जिक्र है और श्वसन संबंधी नियमन पर हिंदुओं का नजरिया भी बताया गया है.

प्राणायाम के बारे में आर्टिकल में लिखा गया, ‘प्राणायाम योग श्वसन संबंधी नियंत्रण को लेकर पहला सिद्धांत था जिसे दीर्घायु के लिए एक असरदार तरीका माना जाता था.’

हालांकि, इससे भी ट्विटर पर आलोचना कम नहीं हुई. जहां कुछ लोगों ने इस ‘कल्चर एप्रोप्रिएशन’ का नाम दिया तो कुछ लोगों ने लेख को अज्ञानता से भरा बताया. एक यूजर ने लिखा, हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति से ज्ञान चुराकर इसे नया नाम दीजिए और इस पर अपना दावा कर दीजिए, फिर हमारी परंपराओं को अंधविश्वास कहकर उन पर हमला बोलिए.

यहां तक कि केरल से कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने लिखा, “2500 साल पुरानी प्राणायाम की भारतीय तकनीक के फायदों का विस्तार से वर्णन, 21वीं सदी की वैज्ञानिक भाषा के कलेवर में कार्डियक कोहरेंस ब्रीदिंग! पश्चिमी देशों को अभी कुछ सदियां लग जाएंगी वह सब सीखने में जो हमारे पूर्वज एक जमाने पहले सिखाकर गए हैं. पर हां आप सबका स्वागत है..”

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