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बिहार में भाजपा और जेडीयू ने गठबंधन को मजबूती देकर राजनीतिक दलों में मचाई खलबली

बदले हुए राजनीतिक हालात के बावजूद वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार एनडीए में अपनी शर्तें मनवाने में कामयाब रहे हैं। वर्ष 2014 के लोस चुनाव में जदयू भाजपा से अलग होकर 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे मात्र 2 ही सीटों पर जीत मिली थी। दूसरी ओर एनडीए के घटक दलों के साथ मिलकर भाजपा 30 सीटों पर लड़ी और उसके 22 प्रत्याशी लोकसभा पहुंचे। इसके बावजूद 2019 के चुनाव में बराबर सीटों पर लड़ने का फैसला जदयू के लिए बेहद खास है।

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के बीच सीट शेयरिंग का मामला सुलझ गया है। शुक्रवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की। अमित शाह ने इस मुलाकात के बाद बताया कि बिहार में जेडीयू और बीजेपी ने आगामी 2109 के लोकसभा चुनाव बराबर सीटों पर लड़ने का फैसला किया है। सीटों को दो-तीन दिनों में ऐलान किया जाएगा, जबकि गठबंधन की बाकी सीटें लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) साझा करेंगे। इस बार से पहले तक बिहार में बतौर एनडीए गठबंधन का सहयोगी जदयू हमेशा चुनावी मैदान में भाजपा से प्रत्याशी उतारने के मुकाबले में आगे रहा है। हालांकि, भाजपा का साथ छोड़कर फिर से जुड़ने और लोकसभा सदस्यों की मौजूदा संख्या कम होने के बावजूद मैदान में बराबरी की स्थिति में जाना, राजनीतिक रूप से जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार की बड़ी सियासी जीत मानी जा रही है। माना तो यह जा रहा था कि भाजपा को जदयू से अधिक सीटें मिलेंगी, लेकिन बराबरी की सीटें पाना जदयू के कार्यकर्ताओं के लिए उत्साहित करने वाली है। इस फैसले से बड़ा भाई, छोटा भाई का मामला भी समाप्त हो गया। शाह ने कहा कि तीन-चार दिन से बिहार के लोकसभा के लिए सभी साथियों से चर्चा चल रही थी। नीतीश कुमार के साथ विस्तार से चर्चा के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि जेडीयू और बीजेपी एक साथ मिलकर बराबर सीटों पर लड़ेगी। बाकी जितने भी सहयोगी दल है उन्हें भी सम्मान जनक सीटें मिलेंगी। दो-तीन दिनों में नंबर की घोषणा की जाएगी और इस दौरान उपेंद्र कुशवाहा और रामविलास पासवान भी साथ होंगे। गौरतलब है कि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की 12 जुलाई को सीट बंटवारे पर पहली बार पटना में बातचीत हुई थी। तभी से जदयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी, प्रदेश अध्यक्ष व सांसद बशिष्ठ नारायण सिंह, राष्ट्रीय महासचिव रामचन्द्र प्रसाद सिंह लगातार यह कह रहे थे कि सीटों पर फैसला हो चुका है और जदयू को सम्मानजनक सीटें मिलेंगी। जनता दल (यूनाइटेड), लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) ये तीनों एनडीए के सहयोगी हैं। लेकिन इन घटक दलों में सीटों को लेकर रस्साकशी चल रही है। माना जा रहा है कि नीतीश और शाह के बीच मुलाकात के दौरान बिहार में सीट बंटवारे की संभावनाओं पर मंथन होगा। बिहार में सीट बंटवारे को लेकर एनडीए में खींचतान है। राम विलास पासवान की एलजेपी सात सीटों से कम पर मानने को तैयार नहीं है। इन सबके बीच उपेन्द्र कुशवाहा की आरएलएसपी भी झुकने के मूड में नहीं है। ऐसा कहा जा रहा है की बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीट हैं जिसमे बीजेपी और जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। 4 सीटें रामविलास पासवान की एलजेपी को और बची हुई 2 सीटें उपेन्द्र कुशवाहा की आरएलएसपी को दी जाएंगी। बीजेपी-जेडीयू के बीच सीटों को लेकर हुए समझौते को जेडीयू की राजनीतिक विजय के तौर पर भी देखा जा रहा है, क्योंकि 2014 में बीजेपी ने 29 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से 22 पर उसे जीत मिली थी। वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार आरजेडी और कांग्रेस से अलग होने के बाद सीटों को लेकर अधिक सौदेबाजी की स्थिति में नहीं थे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दोनों पार्टियों को बराबर सीटों पर लड़ने के लिए सहमत करने का श्रेय चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को जाता है, जो पिछले ही महीने जेडीयू में शामिल हुए थे और जो पर्दे के पीछे बीजेपी के शीर्ष नेताओं के साथ बातचीत में शामिल रहे।

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