अद्धयात्म

मुर्दे को प्रसाद के रूप में अघोरी क्यों चढ़ाते हैं मांस और मदिरा ?

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अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं, परन्तु इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं। ये भारत के प्राचीनतम धर्म शैव (शिव साधक) से संबधित हैं। अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है। शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप है। अघोरी हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का विषय रहे हैं।

अघोरियों की दुनिया ही नहीं, उनकी हर बात निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे सब कुछ दे देते हैं। अघोरियों की कई बातें ऐसी हैं जो सुनकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। हम आपको अघोरियों की दुनिया की कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जिनको पढ़कर आपको एहसास होगा कि वे कितनी कठिन साधना करते हैं। साथ ही उन श्मशानों के बारे में भी आज आप जानेंगे, जहां अघोरी मुख्य रूप से अपनी साधना करते हैं। अघोरी मूलत: तीन तरह की साधनाएं करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना। शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैर है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।

शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ (जिस स्थान पर शवों का दाह संस्कार किया जाता है) की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।

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असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। यह स्थान तांत्रिकों के लिए स्वर्ग के समान है। यहां स्थित श्मशान में भारत के विभिन्न स्थानों से तांत्रिक तंत्र सिद्धि प्राप्त करने आते हैं।

हिन्दू धर्म में आज भी किसी 5 साल से कम उम्र के बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों, आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर कर दिया जाता है। पानी में प्रवाहित ये शव डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं। अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी तंत्र सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं।

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