अद्धयात्म

मृत्यु के समय श्रीकृष्ण जी ने कर्ण को दिए थे ये 3 अनोखे वरदान,जिन्हें नहीं जानते होंगे आप

ये तो सब जानते है कि महाभारत में कर्ण का किरदार कितना महत्वपूर्ण था. जी हां यूँ तो कर्ण कुंती का पुत्र था, लेकिन अपनी माँ द्वारा न अपनाएं जाने के कारण कर्ण को कभी अपने वास्तविक माता पिता का प्यार नहीं मिला. हालांकि अगर महाभारत का इतिहास खोल कर देखा जाए तो उसके अनुसार कर्ण न केवल एक शूरवीर योद्धा थे बल्कि काफी दानवीर भी थे. शायद यही वजह है कि कौरवो की तरफ होने के बावजूद भी भगवान् श्रीकृष्ण के मन में कर्ण के लिए एक खास स्थान था. जी हां एक ऐसा स्थान जो श्रीकृष्ण जी के मन में अर्जुन के लिए भी नहीं था. गौरतलब है कि कर्ण को अपने पिता सूर्य देव से एक वरदान मिला था. इस वरदान के अनुसार उनके पिता ने उन्हें कवच कुण्डल भेंट में दिया था.

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस कवच कुण्डल में इतनी ताकत थी, कि इसके होते हुए कर्ण पर किसी भी अस्त्र शस्त्र का प्रभाव हावी नहीं हो सकता था. यही वजह है कि संसार में कर्ण को कोई भी नुक्सान नहीं पहुंचा सकता था. वही दूसरी तरफ इंद्र देव जो अर्जुन के पिता थे, उन्हें इस बारे में सब कुछ मालूम था. जी हां वो जानते थे कि ये कवच कुण्डल महाभारत के युद्ध में अर्जुन के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है. ऐसे में उन्होंने छल कपट से इस कवच कुण्डल को हासिल करना शुरू कर दिया. वही जब सूर्य देव को इस बात का पता चला तो वो तुरंत कर्ण के पास गए और कर्ण को सुबह अर्घ्य देने से मना कर दिया.

दरअसल कर्ण रोज सुबह प्रात काल में सूर्य देव को जल यानि अर्घ्य देते थे और इस दौरान जो भी व्यक्ति कर्ण से कुछ मांगता था, वो उसे जरूर देते थे. मगर ये सब जानते हुए भी कर्ण प्रात काल में सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए चले गए और इसी दौरान इंद्र देव ब्राह्मण का रूप धारण करके वहां आ गए. जी हां इसके बाद इंद्र देव ने कर्ण से उनका कवच और कुण्डल मांग लिया. बता दे कि कर्ण ने ख़ुशी ख़ुशी इसे इंद्र देव को भेंट में दे दिया. मगर इसके बाद कर्ण की दानवीरता को देख कर इंद्र देव बहुत लज्जित हुए. ऐसे में इंद्र देव ने भी अपना सबसे शक्तिशाली अस्त्र कर्ण को भेंट में दे दिया और उनके सामने ये शर्त भी रख दी कि कर्ण इस अस्त्र का इस्तेमाल केवल एक ही बार कर सकते है.

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि कर्ण ने इस अस्त्र का इस्तेमाल महाभारत के युद्ध में भीम के पुत्र घटोत्क्च पर किया था. मगर आखिर में कर्ण को अर्जुन द्वारा हारना ही पड़ा. गौरतलब है कि कर्ण के लिए श्रीकृष्ण जी के मन में बेहद स्नेह और सम्मान था, इसलिए मृत्यु से पहले उन्होंने कर्ण से तीन वरदान मांगने के लिए कहा था. बता दे कि कर्ण ने पहले वरदान में सब के लिए सही न्याय और सभी को मौका देने की बात कही. जी हां दरअसल कर्ण को अपने जीवन काल में सूत पुत्र होने के कारण अपनी योग्यता दिखाने का उचित मौका नहीं मिल सका था. जिसके कारण उन्होंने ये वरदान माँगा था.

इसके इलावा दूसरे वरदान में कर्ण ने भगवान् श्रीकृष्ण को भविष्य में उनके ही राज्य में अवतार लेने के लिए कहा था. इसके साथ ही तीसरे वरदान में कर्ण ने माँगा था कि उनका अंतिम संस्कार ऐसी जगह पर किया जाए जहाँ कोई पाप न हुआ हो. वो इसलिए क्यूकि तब कलयुग का आरम्भ हो चुका था और इसी वजह से धरती पर कोई भी ऐसी जगह नहीं बची थी, जहाँ पाप न हुआ हो. जिसके तहत श्रीकृष्ण जी ने कर्ण का अंतिम संकर अपने ही हाथो में किया था. अब जाहिर सी बात है कि जिसका अंतिम संस्कार खुद भगवान् श्रीकृष्ण यानि विष्णु जी के हाथो से हुआ हो और उन्ही के हाथो में हुआ हो, उसके सभी पाप अपने आप ही धुल जायेंगे.

यानि अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो कर्ण ने अपने तीसरे वरदान में परोक्ष रूप से अपने लिए मोक्ष मांग लिया था.

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