अद्धयात्म

यहां हुआ था श्रीकृष्ण का मुंडन, की थी शिवजी की पूजा

images (36)एजेन्सी/ जयपुर। कभी जयपुर की राजधानी रहा आमेर लगभग पांच हजार साल पुराना नगर है। शास्त्रों में आमेर को अम्बिका वन में बताया गया है। भागवत पुराण में अम्बिका वन व आमेर के अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर का उल्लेख है। 

इस पौराणिक मंदिर में भगवान शिव की जलहरी भूमि 22 फीट गहरी है। मंदिर की विशेषता है कि चौमासे में शिव जलहरी में से भूगर्भ का अथाह जल मंदिर में ऊपर तक भर जाता है। जलमग्न होने पर कुछ मूर्तियों को ऊपर विराजित कर पूजा की जाती है। 

मानसून के बाद मंदिर का जल भूमि में चला जाता है। लेकिन, ऊपर से जल डालें तो वह भूगर्भ में नहीं जाता। चौदह खंभों पर टिके इस प्राचीन मंदिर में अनेक तलघर बने हैं। विभिन्न इतिहासकारों ने आमेर में कभी महाअम्बिका या अम्बरीश नामक राजा के शासन का उल्लेख किया है। 

इस शिवलिंग पर उसी राजा ने अम्बिकेश्वर महादेव का भव्य मंदिर बनवाया था। राजपूताना के इतिहासकार हनुमान शर्मा ने लिखा है, मीणों के 52 ठिकानों की मुख्य राजधानी आमेर को काकिलदेव कछवाहा ने ग्यारहवीं शताब्दी में सूरसिंह व भत्तो मीणा से छीनकर राजधानी बनाया। 

काकिलदेव ने आमेर में हरी थूणी गाडऩे के लिए गड्ढा खुदवाया तब यह शिव मंदिर मिला। महंत गोपालचन्द्र व्यास ने मंदिर में सूचना पट्ट पर लिखा है, पांच हजार साल पुराना अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर धरती से 22 फीट गहरा है। इसे राजा महाअम्बिका ने बनवाया था। 

द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन इस मंदिर में हुआ था। भागवत पुराण के दसवें अध्याय में चौंतीसवें स्कंद में श्रीकृष्ण के अम्बिका वन में आने और अम्बिकेश्वर महादेव की पूजा करने का उल्लेख है। नंद बाबा व ग्वालों के संग श्रीकृष्ण इस वन में आए थे। उन्होंने यहां पूजा कर अजगर के रूप में प्रकटे सुदर्शन का उद्धार किया। 

जयसिंह द्वितीय ने नाहरगढ़ किले को सुदर्शनगढ़ के नाम से बनवाना शुरू कराया था। नाहरसिंह भोमिया के अड़चन डालने पर राजगुरु रत्नाकर पौंडरिक के सुझाव पर किले का नाम नाहरगढ़ रखा गया। 

इसके नीचे पहाड़ी स्थित सुदर्शन की खोल में श्रीकृष्ण के अतिप्रिय कदम्ब के वृक्षों का कदम्ब कुंज आज भी बना हुआ है। नाहरगढ़ मार्ग के चरण मंदिर में श्रीकृष्ण के दाहिने पैर और गायों के पांच खुरों के प्राकृतिक चिह्नों की आज भी पूजा होती है।

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