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लखवाड़ एचईपी पर स्टे की मांग करने वाली याचिका पर एनजीटी ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया

download (9)राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 28 सितंबर 2015 को उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूडेवीएनएल) द्वारा बनाए जा रहे 300 मेगावाट लखवाड़ बहुउद्देश्यीय परियोजना के निर्माण को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है.

एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, जल संसाधन मंत्रालय और यूजेवीएनएल को नोटिस जारी किया है. यह नोटिस यमुना जीए अभियान के सदस्यों की याचिका पर जारी किया गया.

याचिका के सदस्य भीम सिंह रावत और मनोज कुमार मिश्रा ने अपनी याचिका में उत्तराखंड के देहरादून जिले में लोहारी गांव के नजदीक यमुना नदी पर 40 किलोमीटर के जलाशय के साथ बनाए जा रहे 204 मीटर उंचे उच्च कंक्रीट वाले बांध के निर्माण पर रोक लगाने की मांग की थी.

याचिका के अनुसार, लखवाड़ परियोजना, जो कि लखवाड़ –व्यासी परियोजना का हिस्सा था, को पर्यावरण मूल्यांकन समिति (ईएसी) से पर्यावरण मंजूरी (ईसी) (पर्यावरण क्लीयरेंस) नहीं मिली है.

इसके अलावा उन्होंने तर्क दिया है कि इस परियोजना का ईआईए अधिसूचना के तहत जरूरी पर्यावरण लागतों और उसके प्रभावों का आकलन नहीं किया गया था.

लखवाड़ जल– विद्युत परियोजना (एचईपी) मुद्दा
लखवाड़ परियोजना पहले समग्र परियोजना जिसे लखवाड़– व्यासी परियोजना नाम दिया गया था, का हिस्सा था. समग्र परियोजना को 1986 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से प्रशासनिक मंजूरी मिल गई थी.

इसके बाद दोनों परियोजनाएं अलग हो गई और उन्हें अलग– अलग बनाने की मांग की जाने लगी. परिणास्वरूप, व्यासी एचईपी, लखवाड़ एचईपी के डाउनस्ट्रीम 2×60 मेगावाट रन–ऑफ–द– रिवर पनबिजली परियोजना का ईआईए अधिसूचना के तहत आकलन किया गया और 2007 में इसे पर्यावरण क्लीयरेंस (ईसी) दी गई.

हालांकि लखवाड़ परियोजना को ईआईए अधिसूचना का अनुपालन नहीं करने की वजह से ईएसी ने पर्यावरण क्लीयरेंस (ईसी) नहीं दी थी.

लखवाड़ परियोजना के बारे में
देहरादून जिले में ऊपरी यमुना नदी बेसिन में स्थित गुरुत्वाकर्षण बांध, 300 मेगावाट की लखवाड़ परियोजना, को 3 फरवरी 2014 को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से पर्यावरण क्लीयरेंस दिया गया. यह प्रति वर्ष 612.93 मिलियन इकाई बिजली का उत्पादन करेगा और पेयजल, सिंचाई एवं औद्योगिक उपयोग के लिए जल भी मुहैया कराएगा.

उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश इस परियोजना से उत्पादित पेयजल और सिंचाई जल से लाभान्वित होंगे.
इस परियोजना ने 1986 में उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग से क्लीयरेंस प्राप्त कर लिया था. और 1992 तक इसके निर्माण का काम चला. इसके बाद वित्तीय संकट की वजह से काम रोक दिया गया. बाद में इसे यूजेवीएनएल को हस्तांतरित कर दिया गया.

लखवाड़ परियोजना की लागत करीब 4000 करोड़ रुपयों की है और साल 2019 तक इसके पूरे हो जाने की उम्मीद है.

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