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वनवास के दौरान चित्रकूट में साढ़े 11 वर्ष बिताये थे राम-सीता और लक्ष्मण

चित्रकूट : प्रमुख तीर्थस्थलों में से चित्रकूट को प्रमुख माना जाता हैं। लोगों में यह मान्यता है कि भगवान श्रीराम, देवी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण सहित चित्रकूट के घने जंगलों में वनवास के दौरान ठहरे थे। यहां के सुंदर प्राकृतिक पर्वत पर कल-कल करते हुए बहते झरने, घने जंगल, चहकते पक्षी, बहती नदियां इस स्थान पर स्थित हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि कामदगिरि भव्य धार्मिक स्थल हैं जहां पर भगवान राम रहा करते थे। इस स्थान पर भरत मिलाप मंदिर भी स्थित है, जहां पर भरत ने श्रीराम से कहा था कि वे अयोध्या वापस लौट चलें। यहां श्रद्धालु इस विश्वास से परिक्रमा की प्रथा का पालन करते हैं कि भगवान राम उनकी भक्ति से खुश होकर उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगे। प्रभु श्रीराम के भाई भरत ने इस स्थान पर पवित्र जल का कुंड बनाकर रखा था जहां परदेस के विभिन्न तीर्थस्थलों से पवित्र जल एकत्रित कर रखा जाता है। यह स्थान बहुत ही छोटा स्थल है जो कि इस नगर से कुछ दूरी पर स्थित है। रामघाट पर स्थित यह भव्य स्थान को कहा जाता है कि सीताजी इस नदी में नहाया करती थीं। यहां की हरियाली भी दर्शनीय है। यह शांत और सुंदर स्थान वास्तव में कुदरत की अमूल्य देन है। नदियों की धाराएं आकाश सुनहरे नीले रंग की तरह लगती हैं। मानो नीले रंग की ओढ़नी ओढ़ी हुई है। रामघाट से 2 किमी दूरी ‍पर स्थित जानकी कुंड तक पहुंचने के दो रास्ते हैं। यहां आप सड़क के रास्ते भी जा सकते हैं या रामघाट से नाव में बैठकर भी पहुंच सकते हैं। प्रभु श्रीराम की स्थली चित्रकूट की महत्ता का वर्णन पुराणों के प्रणेता संत तुलसीदास, वेद व्यास, आदिकवि कालिदास ने अपनी कृतियों में किया है। मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा यह चित्रकूट धाम प्राचीनकाल से ही हमारे देश का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक सांस्कृतिक स्थल रहा है, आज भी चित्रकूट की पग-पग भूमि राम, लक्ष्मण और सीता के चरणों से अंकित है।
चित्रकूट, हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है। यह वही स्थान है जहां कभी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने देवी सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे। दरअसल, चित्रकूट- चित्र+कूट शब्दों के मेल से बना है। संस्कृत में चित्र का अर्थ है अशोक और कूट का अर्थ है शिखर या चोटी। इस संबंध में कहावत है कि चूंकि इस वनक्षेत्र में कभी अशोक के वृक्ष बहुतायत में मिलते थे, इसलिए इसका नाम चित्रकूट पड़ा।

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