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विदेशी भाषा को महत्व देने वाले देश अविकसित रह गए

educationलखनऊ। उदारीकरण भाषा, संस्कृति पर्यटन और अन्तत: समाज को भी प्रभावित करता है। जीवन का कोई पक्ष ऐसा नहीं जिस पर वैश्विक परिस्थितियों का कोई न कोई प्रभाव न पड़े। किसी देश के विकास संबंधी अनेक कारण होते हंै। इसमें भाषा का विशेष विशेष महत्व है। राष्ट्रभाषा को महत्व दिए बिना समग्र विकास संभव नहीं होता। ऐसे देश कभी विकसित देशों की श्रेणी में शामिल नहीं हो सकते।

यह बात केन्द्रीय औषधि अनुसंधान के उप निदेशक राजभाषा डॉ. विजय नारायण तिवारी ने कही। वह विद्यान्त हिन्दू पी. जी. कालेज में चल रहे राष्ट्रीय संस्कृत परिसंवाद के अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भाषा है आधार पर विश्व को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक वह जो अपनी भाषा को ही महत्व देते हैं। उनका शिक्षण अपनी भाषा में होता है। ऐसे देश विकसित देशो में शामिल हो चुके हैं।

दूसरे वे देश हैं, जिन्होंने अपनी भाषा को उचित महत्व नहीं दिया। उन्होंने विदेशी भाषा को ऊंचा स्थान दिया। वह देश विकासशील था अविकसित रह गए। ब्रिटेन के उपनिवेश रहे देशों ने अंग्रेजी को वरीयता दी। यहां अंग्रेजी को श्रेष्ठता का प्रतीक मान लिया गया।

इससे पहले लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. प्रमोद श्रीवास्तव ने उदारीकरण में सरकारीकरण के प्रभाव तथा आगरा विश्वविद्यालय के प्रो. लवकुश ने वैश्वीकरण और उदारीकरण में पर्यटन के महत्व पर व्याख्यान दिए।

प्रो. प्रमोद श्रीवास्तव ने कहा उदारीकरण की खूब चर्चा है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि प्रत्येक क्षेत्र में सरकार का नियंत्रण न्यूनतम हुआ है। विश्वविद्यालयों के मामले में उदारीकरण तब होता जब 192० के एक्ट की धारा सात को हटा दिया जाता। लेकिन इसे हटाने की बात तो दूर विश्वविद्यालयों पर सरकार का नियंत्रण बढ़ा है। ऐसे में विश्वविद्यालय यदि विश्वस्तरीय नहीं हो रही है, तो इसकी जिम्मेदारी सरकार पर है। योग्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होगी तो शिक्षा का स्तर सुधारा नहीं जा सकता।

प्रो. लवकुश ने कहा कि पर्यटन से सांस्कृतिक संबंधों का भी विस्तार होता है। भारत में तीर्थाटन, देशाटन और पर्यटन तीन शब्द प्रचलित रहे हैं। चार आश्रमों का इनसे किसी न किसी रूप में संबंध रहा था। इसका मतलब है कि प्राचीन भारत में पर्यटन भी बहुत सुनियोजित था।

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