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सावन का पहला सोमवार आज, सौभाग्य देने वाला शिवप्रिया पार्वती की पूजा का विधान

देवाधिदेव भगवान शंकर की अर्धांगिनी शिवप्रिया पार्वती तीनों लोकों की सौभाग्यरूपा हैं. दक्ष प्रजापति ने सौभाग्यरस का पान किया था; उसके अंश से एक कन्या का जन्म हुआ. सभी लोकों में उस कन्या का सौन्दर्य अत्यधिक था, इसी से इनका नाम ‘सती’ हुआ. रूप में अतिशय माधुर्य और लालित्य होने के कारण ये ‘ललिता’, पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने से ‘पार्वती’ व अत्यन्त गौरवर्ण होने से ‘गौरी’ कहलाईं. त्रैलोक्य सुंदरी इस कन्या का विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ.

हर सोमवार भगवान शिव की पूजा ही नहीं वरन् शिव की अर्द्धांगिनी माता पार्वती की पूजा भी परम फलदायक होती है. शिववामांगी पार्वती सभी स्त्रियों की स्वामिनी हैं. संसार में स्त्रियां विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए, शीघ्र विवाह के लिए, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए व अमंगलों के नाश के लिए शिवप्रिया की ही शरण ग्रहण करती हैं; क्योंकि उनकी पतिभक्ति की कोई समता नहीं है. दाम्पत्यप्रेम का स्रोत भगवान शिव और पार्वती में ही निहित है.

शिवप्रिया पार्वतीजी की जया और विजया नाम की दो सखियां थीं. एक बार मुनि-कन्याओं ने उन दोनों से पूछा कि आप दोनों तो शिवा के साथ सदा निवास करती हैं, आप यह बताएं कि किन उपचारों और मन्त्रों से पूजा करने से वे प्रसन्न होती हैं. पुराणों में बताया गया मां पार्वती की पूजा का सुन्दर विधान यहां दिया जा रहा है-

सौभाग्य देने वाला शिवप्रिया पार्वती की पूजा का विधान

‘विश्व जिनका शरीर है, जो विश्व के मुख, पाद और हस्त स्वरूप तथा मंगलदायक हैं, जिनके मुख पर प्रसन्नता झलकती रहती है, उन पार्वती और परमेश्वर की मैं वन्दना करता हूँ.’

पूजा करते समय ‘गौरी मे प्रीयताम्’ इस मन्त्र को बोलते रहें. शिवप्रिया पार्वती को पंचामृत अथवा केवल दूध से या चंदनमिश्रित जल से स्नान कराएं. कपूर-केसर मिश्रित चंदन व रोली लगाएं व अक्षत चढ़ाएं. मां गौरी की मांग में सिंदूर लगाए क्योंकि पार्वतीजी को सिंदूर बहुत पसन्द है. करवीर का पुष्प पार्वतीजी को बहुत पसन्द है. जपाकुसुम, गुलाब, कनेर, सुगन्धित श्वेतपुष्प, मालती, कमल आदि तरह-तरह के पुष्पों से व बिल्वपत्र से व धूप-दीप से उनकी अर्चना करें. मां को घी से बनी वस्तुओं का नैवेद्य (लड्डू, बर्फी, पुए आदि) व ऋतुफल निवेदित करें. इस प्रकार भक्तिपूर्वक अपनी शक्ति के अनुसार शिवप्रिया पार्वती की पूजा करें. नृत्य से भगवान शंकर, गीत से शिवप्रिया पार्वती और भक्ति से सभी देवता प्रसन्न होते हैं.

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