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सिंहस्थ कुंभ में साधुओं की संगति से हिरण भी बन गया संत

एजेन्सी/ l_deer-1460694175उज्जैन। जी हां…सिंहस्थ में आए साधु-संतों के डेरे में एक हिरण लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इन साधु-संतों की संगत में रहकर वह भी एक प्रकार का संत बन गया है। उपवास रखता है, एक दिन में एक किलो किशमिश खाता है। मराठी भाषा समझता है और संतों के अलावा उसे कोई दूसरा छुए तो मारने दौड़ता है।

मां से बिछड़ गया था

महाराष्ट्र के शूलबंजर गांव के घने जंगलों में अपनी मां से बिछड़ा सात दिन का हिरण (अब संतोषगिरि) भी संन्यासी जीवन अपना चुका है। नागा संन्यासियों के साथ एकादशी का व्रत रखने से लेकर नित्य पूजा और चैतन्य धूनी पर इनकी तप साधना में बैठना ही नित्य कर्म हो गया है। 

जूना अखाड़े का ये संतोषगिरि कोई साधु नहीं, बल्की हिरण है। जो दो साल पहले घने जंगल में कुत्तों का शिकार हो गया था। जूना अखाड़े की 13 मढ़ी के महंत महेंद्रगिरि महाराज के शिष्य महंत नीलगिरि इसे जंगल से घायल अवस्था में पहाड़ी पर बने अपने आश्रम ले आए।

जड़ी-बूटियों से किया इलाज

छह महीने तक इसकी देखभाल कर जड़ी बूटियों से इलाज किया और तभी से यह साथ रहता है। महंत नीलगिरि ने इसका नाम पहले चंद्रसेन रखा था, लेकिन बाद में गुरु ने इसे भी गिरि की उपाधि देते हुए संतोषगिरि नाम रख दिया।

एक दिन में खाता है एक किलो किशमिश

संतोषगिरि के खाने को लेकर कोई ज्यादा नखरे नहीं हैं। फिर भी यह एक दिन में एक किलो किशमिश खा जाता है। महंत ने बताया एकादशी से लेकर अन्य व्रतों पर यह भी एकासना करता है।

मराठी भाषा समझता है

संतोषगिरि की खासीयत है कि वह मराठी भाषा समझता है। महंत नीलगिरि ने बताया कि महाराष्ट्र स्थित आश्रम में सभी गुरुभाई मराठी बोलते हैं। जंगल से लाने के बाद साथ में रहकर इसे भी मराठी का ज्ञान हो गया। हिंदी में बात करो तो कुछ नहीं समझता है। दूसरा कोई हाथ लगाए तो सींग मारता है।

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