हलद्वानी : देश में बाघों की संख्या बढ़कर 3,167 हो गई है। यह आंकड़ा बहुत छोटा लग रहा है, लेकिन इसे हासिल करने के लिए सर्वे टीमों को जान जोखिम में डालकर जंगल के राजा की मांद तक में प्रवेश करना पड़ता है। एक बाघ की पहचान के लिए मीलों सफर करना होता है और करोड़ों कैमरा ट्रैप खंगालने पड़ते हैं। इस बार बाघों की संख्या पता करने के लिए देशभर के जंगलों में 32 हजार से अधिक कैमरों से लिए गए 4.70 करोड़ फोटो जांची गईं। इसके अलावा टीमों को मैनुअल सर्वे के लिए भी पिछली गणना के मुकाबले 1,18,453 किलोमीटर अधिक पैदल दूरी नापनी पड़ी। 2018 की गणना में टीमों ने करीब 5.22 लाख किलोमीटर दूरी तय की थी।
देश में हर चार साल बाद बाघों की संख्या के आंकड़े जारी किए जाते हैं। 2022 के आंकड़े रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जारी किए। टीम ने जहां 3,080 बाघ कैमरों से चिह्नित किए, वहीं 87 बाघ पदचिह्न, मल आदि के माध्यम से मैनुअल तरीके से खोजे गए। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की वेबसाइट पर जारी रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में लगाए गए 32,588 कैमरों से 4 करोड़ 70 लाख 81 हजार 881 फोटो खींचीं। 97,399 फोटोग्राफ में 3,080 बाघ पूरी तरह से कैप्चर हो पाए। इस बार कैमरे ज्यादा सफल 2018 की गणना में देशभर में 2,967 बाघ चिह्नित किए गए थे। तब कैमरा ट्रैप के जरिये करीब 82 प्रतिशत (2,461 बाघ) की पहचान की जा सकी थी। जबकि, इस बार 3,167 बाघ में से 3,080 (करीब 97 प्रतिशत) कैमरा ट्रैप से खोजे गए हैं। ऐसे में कैमरों की गणना अधिक सफल रही।
जंगल में जहां बाघ की आवाजाही अधिक होती है उसे उसका कॉरिडोर माना जाता है। इनकी पहचान बाघ के मल, मूत्र या पेड़ों पर बनाए गए निशान से होती है। पेड़ों पर निशान के जरिये ही बाघ अपना क्षेत्र तय करते हैं। ऐसे स्थानों पर कैमरा ट्रैप लगाए जाते हैं।
गणना के दौरान एक ही बाघ अलग-अलग स्थानों पर नजर आ सकता है। इसमें विभेद करने के लिए बाघ के शरीर पर बनी धारियों का सहारा लिया जाता है। हर बाघ के शरीर की धारियां अलग होती हैं। धारियों के पैटर्न की पहचान करने के लिए सॉफ्टवेयर की भी मदद ली जाती है। उनकी मदद से ही पता लगाया जाता है कि अलग-अलग कैमरों में नजर आया बाघ एक ही है या नहीं।