![](https://dastaktimes.org/wp-content/uploads/2016/06/brahmacharya_25_06_2016.jpg)
एजेंसी/ किसी भी व्यक्ति को 25 वर्ष तक की उम्र तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का अर्थ है ऊर्जा का संचय करना। इसीलिए वेदों में ब्रह्मचर्य के महत्व को बताया गया है। ब्रह्मचर्य जीवन के पहले 25 साल तक माना गया है। पुराणों में वर्णित है कि ब्रह्मचर्य की सही और संपूर्ण समझ अंत में मोक्ष तक ले जाती है।
यानी ब्रह्मचर्य के दौरान किसी भी तरह से सेक्स से दूर रहने की बात कही गई है। यदि 25 वर्ष की आयु के पहले अपनी शक्ति को बर्बाद करने लगें तो हमारे व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास नहीं हो पाता।
इससे शरीर में कई बीमारियां घर कर लेती हैं। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार शरीर में 25 वर्ष तक की उम्र में वीर्य और रक्तकणों का विकास बहुत तेजी से होता है, उस समय अगर इसे शरीर में संचित किया जाए तो यह काफी स्वास्थ्यप्रद होता है। शरीर को पुष्ट रखता है और कमजोरी नहीं आती।
ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल यौन संयम से ही नहीं है, बल्कि इसका अर्थ अपने खान-पान पर भी नियंत्रण करना है। बहुत से ब्रह्मचारी मांस और बहुत मसालेदार भोजन से भी संयम रखते हैं।
स्वामी विवेकानन्द ब्रह्मचर्य के बारे में कहते थे कि, ‘जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। ब्रह्मचर्य विकारी वासनाओं का नाश कर देता है। ब्रह्मचर्य का पालन व्यक्ति को उन्नत विचारों के उत्तुंग शिखरों पर प्रस्थापित कर देता है। ब्रह्मचर्य सभी अवस्थाओं में विद्यार्थी, गृहस्थी अथवा साधु-संन्यासी के लिए अत्यंत आवश्यक है। सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।’
जैन धर्म में ब्रह्मचर्य जैन श्रावक के पांच महान प्रतिज्ञा में से एक है। जैन मुनि और अर्यिकाओं को दीक्षा लेने के लिए कर्म, विचार और वचन में ब्रह्मचर्य अनिवार्य होता। जैन श्रावक के लिए ब्रह्मचर्य का अर्थ है शुद्धता यानी वह यौन गतिविधियों में भोग को नियंत्रित करने के लिए इंद्रियों पर नियंत्रण का अभ्यास के लिए है। जो अविवाहित हैं, उन जैन श्रावको के लिए, विवाह से पहले यौनाचार से दूर रहना अनिवार्य है।