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साउथ चाइना सी को लेकर तीसरे विश्वयुद्ध की हद तक जा सकता है चीन!

south-china-seaनई दिल्ली: साउथ चाइना सी पूर्वी एशियाई देशों के बीच दशकों से तनाव का स्रोत बना हुआ है। इन देशों के बीच कलह अब चरम पर पहुंच गई है। विश्लेषकों का मानना है कि साउथ चाइना सी पर विवाद बढ़कर तीसरे विश्वयुद्ध की शक्ल ले सकता है।

 साउथ चाइना सी विवाद पर अमेरिका और चीन के बीच जिस युद्ध की आशंका जताई जा रही है वह आपकी सोच से कहीं आगे का मामला है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि साउथ चाइना सी पर इंटरनैशनल कोर्ट के फैसले के बाद टकराव की आशंका और बढ़ गई है। कई विश्लेषकों का मानना है कि यह कॉन्फ्लिक्ट का दायरा इतना व्यापक होगा कि वह थर्ड वर्ल्ड वॉर का रूप ले सकता है।

 इटरनैशनल कोर्ट ने फैसला दिया है कि साउथ चाइना सी पर चीन का दावा ऐतिहासिक रूप से गलत है। कोर्ट ने वियतनाम के पक्ष में फैसला दिया है। दूसरी तरफ चीन ने इंटरनैशनल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है। गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ASEAN समिट में कहा कि साउथ चाइना सी पर इंटरनैशनल कोर्ट का फैसला बाध्यकारी है और चीन को इसे मानना ही पड़ेगा। हालांकि चीन इस फैसले को मानने के बजाय साउथ चाइना सी में मिलिटरी बेस स्थापित करने में लगा है।

 इंटरनैशनल कोर्ट ने फैसला दिया है कि साउथ चाइना सी पर चीन का दावा ऐतिहासिक रूप से गलत है। कोर्ट ने वियतनाम के पक्ष में फैसला दिया है। दूसरी तरफ चीन ने इंटरनैशनल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है। गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ASEAN समिट में कहा कि साउथ चाइना सी पर इंटरनैशनल कोर्ट का फैसला बाध्यकारी है और चीन को इसे मानना ही पड़ेगा। हालांकि चीन इस फैसले को मानने के बजाय साउथ चाइना सी में मिलिटरी बेस स्थापित करने में लगा है।

 टकराव की बढ़ती आशंका के बीच चीन के पूर्व स्टेट काउंसलर डाइ बिंगओ ने कहा, ‘अमेरिका की धमकी से हम डरने वाले नहीं हैं। यदि अमेरिका सभी 10 एयरक्राफ्ट भी साउथ चाइना सी में भेज देता है तब भी हमें डर नहीं है। कोर्ट का फैसला महज कागज की बर्बादी के सिवा कुछ भी नहीं है। संकट अमेरिका के लिए है न कि चीन डरा हुआ है। यदि अमेरिका ने दुःसाहस किया तो उसे भारी कीमत चुकानी पडे़गी।

 सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद रूस अमेरिका के खिलाफ वाले गुट का नेतृत्व कर रहा था। अब इस भूमिका को चीन निभा रहा है। इसमें उसका साथ रूस भी दे रहा है। साउथ चाइना सी पर भी रूस चीन का समर्थन कर रहा है। दोनों देशों के साथ आने के बाद जाहिर है अमेरिका के लिए एशिया में अपने पैर मजबूती से बनाए रखना आसान नहीं होगा।

इंटरनैशनल कानून क्या कहता है?

1982 के यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी का कहना है कि देशों को अपने समुद्री तटों से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक समुद्री संसाधनों- फिशरिज, ऑइल ऐंड गैस तक पहुंच होगी। इसे खास इकनॉमिक जोन कहा गया। इस संधि को चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स और मलयेशिया सभी ने मंजूर किया है। हालांकि इस संधि को अमेरिका ने मंजूर नहीं किया है। रिपब्लिकन सेनेटर्स ने इसे यह कहते हुए नामंजूर कर दिया था कि इस संधि से समुद्री संचालन में अमेरिकी संप्रभुता को खतरा रहेगा। चीन का कहना है कि उसे एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन के भीतर विदेशी नौसेना और सैनिकों की गतिविधियों की निगरानी करने का हक है। अमेरिका ने इस व्याख्या को खारिज कर दिया। अमेरिका ने कहा कि सभी देशों को समुद्रीमार्गों और उसकी हवाई सीमा में स्वतंत्र रूप से आवाजाही करने का हक है।

साउथ चाइना सी कहां है?

साउथ चाइना सी दक्षिणी-पूर्वी एशिया से प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे तक स्थित है। इसमें करीब 1.4 मिलियन स्क्वेयर एक धरातल है और साथ ही चट्टानों का संग्रह, द्वीप और प्रवाल द्वीप के अलावा छोटे द्वीपों का समूह, पार्सेल द्वीप समूह और स्कारबोरो शोल हैं।

किसका-किसका दावा?

साउथ चाइना सी कई दक्षिणी-पूर्वी एशियन देशों से घिरा है। इनमें चीन, ताइवान, फिलीपीन्स, मलयेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम हैं। ये सभी देश साउथ चाइना सी पर अपने-अपने दावे कर रहे हैं। 1947 में चीन ने एक मैप के जरिए सीमांकन कर दावा पेश किया था। यह सीमांकन काफी व्यापक था और उसने लगभग पूरे इलाके को शामिल कर लिया। इसके बाद कई एशियाई देशों ने चीन के इस कदम से असहमति जताई। वियतनाम, फिलीपीन्स और मलयेशिया ने भी कई द्वीपों पर दावा किया। वियतनाम ने कहा कि उसके पास जो मैप है उसमें पार्सेल और स्प्रैटली आइलैंड्स प्राचीन काल से उसका हिस्सा है। इसी तरह ताइवान ने भी दावा किया।

इसके लिए क्यों मची है मारामारी?

साउथ चाइना सी दुनिया का बेहद अहम व्यापार मार्ग है। इस इलाके से हर साल कम से कम 5 ट्रिलियन डॉलर के कमर्शल गुड्स की आवाजाही होती है। इस इलाके के बारे में कहा जाता है कि यहां तेल और गैस का विशाल भंडार है। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के अनुमान के मुताबिक यहां 11 बिलियन बैरल्स ऑइल और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस संरक्षित है।

कुछ देशों ने मानवनिर्मित द्वीप बनाना शुरू कर दिया या फिर ये द्वीपों को फैलान में लगे हैं। इसके साथ ही ये अपने दावों को भी आक्रामकता से आगे बढ़ा रहे हैं। ये अपने एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन के दायरे को भी बढ़ा रहे हैं। चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स, ताइवान और मलयेशिया ने यहां कार्गो और सर्सिवलांस जेट्स के लिए हवाई पट्टी बनाई है। इसका खुलासा वॉशिंटगन बेस्ड थिंक टैंक सेंटर स्ट्रैटिजिक ऐंड इंटरनैशनल स्टडीज ने सेटलाइट इमेज के जरिए किया है। जितने देश साउथ चाइना सी पर दावा कर रहें उनमें से चीन की यहां की गतिविधि सबसे विवादित है। 2014 से अब तक चीन ने कम से कम सात द्वीप यहां बनाए हैं। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि चीन यहां सबसे व्यापक निर्माण रेत की बड़ी दीवार के जरिए अंजाम दे रहा है।

 

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