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लॉ कमिशन ने केंद्र सरकार से कहा, बीसीसीआई को आरटीआई कानून के तहत लाया जाए

नई दिल्ली: विधि आयोग ने भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) को ‘‘शासन का अंग’’ बताते हुए बीते 18 अप्रैल को सिफारिश की कि क्रिकेट बोर्ड को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए। आयोग ने कहा कि यह लोक प्राधिकार की परिभाषा में आता है और यह सार्वजनिक जांच से बच नहीं सकता। आयोग ने सिफारिश की है कि बीसीसीआई को ‘‘निजी संस्था’’ माना जाता है, लेकिन इसे जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। आयोग ने कहा कि इसे ‘‘हजारों करोड़ों रुपयों’’ की कर छूट और भूमि अनुदानों के रूप में सरकारों से ‘‘अच्छा खासा वित्तीय लाभ’’ मिला है। उच्चतम न्यायालय ने जुलाई 2016 में आयोग से इस बारे में सिफारिश करने के लिये कहा था कि क्रिकेट बोर्ड को सूचना का अधिकार कानून के तहत लाया जा सकता है या नहीं। पारदर्शिता लाने के लिए मालामाल क्रिकेट बोर्ड को आरटीआई के तहत लाने की लंबे वक्त से मांग होती रही है। विधि मंत्रालय को बुधवार (18 अप्रैल) को सौंपी गई रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है कि बीसीसीआई को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ‘ शासन ’ की परिभाषा के तहत लाया जाना चाहिए।
आयोग ने रिपोर्ट में कहा कि बीसीसीआई के कामकाज का विश्लेषण भी दिखाता है कि सरकार का उसके क्रियाकलापों तथा कामकाज पर नियंत्रण है। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत की विदेश नीति के अनुरूप बीसीसीआई दक्षिण अफ्रीका की रंगभेदी परंपराओं के कारण इस देश के किसी खिलाड़ी को मान्यता नहीं देता और तनावपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संबंधों को देखते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैचों को सरकार की मंजूरी की अनुमति होती है, ये स्थितियां बीसीसीआई को ‘‘शासन का अंग’’ बनाती हैं।
वहीँ बीसीसीआई ने कहा कि विधि आयोग का निष्कर्ष केवल सिफारिशें हैं, उन्होंने कहा कि वह इस मामले में सरकार के फैसले का इंतजार करेंगे। बीसीसीआई के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘‘बीसीसीआई की इस मामले में कोई भूमिका नहीं है, यह विधि आयोग की सिफारिश है और हम इस पर सरकार के फैसले का इंतजार करेंगे। जहां तक हमारी जानकारी है, विधि आयोग की सिफारिशें तब तक बाध्यकारी नहीं हैं जब तक संसद इस पर कोई फैसला न करे, इसलिए हमारे लिए यह इंतजार करो और देखो वाली स्थिति है।

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