मजदूर दिवस मनाएं या मजबूर दिवस!
बाराबंकी (उमेश यादव/राम सरन मौर्या): कोरोना महामारी ने देश और दुनिया भर के करोड़ों मजदूरों की तरक्की के झूठे दावों की हक़ीक़त को बयां कर दिया।देश और दुनिया में जहाँ हर साल मजदूर दिवस पर मजदूरों की बेहतरी के ढोल पीटे जाते रहे।इस बार मजदूर दिवस से पहले ही मजदूरों के विकासगाथा की सच्चाई सबके सामने जग जाहिर हो गयी।जिन शहरों में अपने सुनहरे भविष्य के सपनें लेकर करोड़ों मजदूरों ने गांवो से पलायन किया था।अब लाचारी के आंसुओं के साथ भूखे प्यासे अपने गांवो की राह तय करते नजर आ रहे है।पलायन करने वाले मजदूरों को अब याद आ रहा है कि जिन शहरों को वह अपने पसीने से चमकाने में लगे रहे। कोरोना की मुसीबत में शहरों से मिली रुसवाई के बाद अब उन्हें गांव का प्यार याद आने लगा जिस मिट्टी में उन्होंने जन्म लिया था। विश्व मजदूर दिवस पर जीवन में ऐसे भयावह दृश्य से रुबरु होने वाले मजबूर मजदूरों को गांव का एक सन्देश उन्हें अब रुला भी रहा है और गांव की मिट्टी में भविष्य को सुरक्षित करने के लिये आमंत्रित भी कर रहा है। तो पढिये गांव का यह सन्देश….
मैं गांव हूँ भाई
मैं वहीं गांव हूँ, जिसपर ये आरोप लगते रहे है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे।
मैं वहीं गांव हूँ,जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है।
मैं वहीं गांव हूँ,जिस पर असभ्यता और जाहिल गवाँर के भी आरोप है। हाँ मैं वहीं गांव हूँ, जिस पर आरोप लगाकर मेरे ही बच्चे मुझे छोड़कर दूर बड़े-बड़े शहरों में चले गए।
जब मेरे बच्चे मुझे छोड़कर जाते हैं, मैं रात भर सिसक-सिसक कर रोता हूँ ,फिर भी मरा नहीं। मन में एक आस लिए आज भी निर्निमेष पलकों से बांट जोहता रहा, शायद मेरे बच्चे आ जाए यह देखने की ललक में सोता भी नहीं हूँ आखिर मैं गांव जो हूँ।
लेकिन हाय!जो जहाँ गया, वहीं का हो गया।
मैं पूछना चाहता हूँ अपने उन सभी बच्चों से क्या मेरी इस दुर्दशा के जिम्मेदार तुम नहीं हो!
अरे मैंने तो तुम्हे कमाने के लिए शहर भेजा था और तुम मुझे छोड़ शहर के ही हो गए।मेरा हक कहाँ है?
क्या तुम्हारी कमाई से मुझे घर,मकान,बड़ा स्कूल, कॉलेज,इंस्टीट्यूट,अस्पताल,आदि बनाने का अधिकार नहीं है!
ये अधिकार मात्र शहर को ही क्यों ! जब सारी कमाई शहर में दे दे रहे हो तो मैं कहाँ जाऊँ!मुझे मेरा हक क्यों नहीं मिलता!
इस कोरोना संकट में सारे मजदूर गाँव भाग रहे हैं,गाड़ी नहीं तो सैकड़ों मील पैदल बीबी और बच्चों के साथ चल दिये आखिर क्यों!जो लोग यह कहकर मुझे छोड़ शहर चले गए थे कि गांव में रहेंगे तो भूख से मर जाएंगे,वो किस आस और विश्वास पर पैदल ही गांव लौटने लगे!मुझे तो लगता है कि निश्चित रूप से उन्हें ये विश्वास है कि गांव पहुँच जाएंगे तो जिन्दगी बच जाएगी,भर पेट भोजन मिल जाएगा, परिवार बच जाएगा।सच तो यही है कि गांव कभी किसी को भूख से नहीं मारता।हाँ मेरे लाल आ जाओ, मैं तुम्हें भूख से नहीं मरने दूँगा।
आओ मुझे फिर से सजाओ,मेरी गोद में फिर से चौपाल लगाओ,मेरे आंगन में चाक के पहिए घुमाओ,मेरे खेतों में अनाज उगाओ,खलिहानों में बैठकर आल्हा गाओ,खुद भी खाओ दुनिया को खिलाओ,महुआ ,पलाश के पत्तों को बीनकर पत्तल बनाओ,गोपाल बनो,गांव के नदी, ताल, तलैया,बाग,बगीचे गुलजार करो,कालिया बाबा की पीस पीस कर प्यार भरी गालियां,रमजान काका के उटपटांग डायलाग, बड़े बुजुर्गों से की जाने वाली अपनेपन वाली खीज और पिटाई और प्यार वाली गाली,दशरथ साहू की आटे की मिठाई, हजामत और मोची की दुकान,भड़भूजे की सोंधी महक,लईया, चना कचरी,होरहा,बूट,खेसारी सब आज भी तुम्हें पुकार रहे है।
मुझे पता है वो तो आ जाएंगे जिन्हें मुझसे प्यार है लेकिन, वो!वो क्यों आएंगे जो शहर की चकाचौंध में विलीन हो गए।वहीं घर मकान बना लिए ,सारे पर्व, त्यौहार,संस्कार वहीं से करते हैं। मुझे बुलाना तो दूर पूछते तक नहीं।लगता है अब मेरा उनपर कोई अधिकार ही नहीं बचा!अरे अधिक नहीं तो कम से कम होली दिवाली में ही आ जाते तो दर्द कम हो जाता मेरा।सारे संस्कारों पर तो मेरा अधिकार होता है न ,कम से कम मुण्डन,जनेऊ,शादी,और अन्त्येष्टि तो मेरी गोद में कर लेते। मैं इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि यह केवल मेरी इच्छा है,यह मेरी आवश्यकता भी है।मेरे गरीब बच्चे जो रोजी रोटी की तलाश में मुझसे दूर चले जाते हैं। उन्हें यहीं रोजगार मिल जाएगा ,फिर कोई महामारी आने पर उन्हें सैकड़ों मील पैदल नहीं भागना पड़ेगा।मैं आत्मनिर्भर बनना चाहता हूँ।मैं अपने बच्चों को शहरों की अपेक्षा उत्तम शिक्षित और संस्कारित कर सकता हूँ,मैं बहुतों को यहीं रोजी रोटी भी दे सकता हूँ।
मैं तनाव भी कम करने का कारगर उपाय हूँ।मैं प्रकृति के गोद में जीने का प्रबन्ध कर सकता हूँ।मैं सब कुछ कर सकता हूँ मेरे लाल!बस तू समय-समय पर आया कर मेरे पास,अपने बीबी बच्चों को मेरी गोद में डाल कर निश्चिंत हो जा,दुनिया की कृत्रिमता को त्याग दें।फ्रीज का नहीं घड़े का पानी पी,त्यौहारों समारोहों में पत्तलों में खाने और कुल्हड़ों में पीने की आदत डाल,अपने मोची के जूते,और दर्जी के सिले कपड़े पर इतराने की आदत डाल,हलवाई की मिठाई,खेतों की हरी सब्जियाँ,फल, फूल,गाय का दूध ,बैलों की खेती पर विश्वास रख कभी संकट में नहीं पड़ेगा।हमेशा खुशहाल जिन्दगी चाहता है तो मेरे लाल मेरी गोद में आकर कुछ दिन खेल लिया कर। तू भी खुश और मैं भी खुश….।