अद्धयात्म

टेंशन से बुझ रही है दिमाग की बत्ती तो आजमाएं अध्यात्म का यह गुरुमंत्र

bhagya-554753f54cfb6_lभारतीय संस्कृति के विकास में अध्यात्म की मूल अवधारणा अवस्थित है, लेकिन दिनों-दिन संस्कृति के लुप्त होने के आसार शुरू हो गए हैं। इसका एकमात्र कारण है अध्यात्म चेतना का अवरूद्ध होना। 
 
अध्यात्म स्वयं को समझने और जानने की प्रक्रिया है। जब तक व्यक्ति स्वयं को नहीं जान पाता है तब तक व्यक्ति आत्मरमण की प्रक्रिया से नहीं गुजर सकता। बिना आत्मरमण के जीवन का विकास पूर्ण नहीं हो पाता। 
 
इसलिए यह आवश्यक है कि हर व्यक्ति स्वयं को जाने, तभी अध्यात्म चेतना का विकास हो सकता है। अध्यात्म में एक आकर्षण है और इसमें विविध समस्याओं व बीमारियों से त्रस्त लोकजीवन को नया रूप देने की विलक्षण क्षमता विद्यमान है।
 
न होने दें अध्यात्म का अभाव
अध्यात्म राष्ट्र की उच्च सम्पत्ति है, इसलिए इसकी सुरक्षा करना हर अध्यात्म प्रेमी का दायित्व भी है। हर व्यक्ति जीवन में विशिष्टता अर्जित करना चाहता है। इस विशिष्टता को पाने के लिए जीवन में अध्यात्म का होना अति आवश्यक है। 
 
अध्यात्म शक्ति का पुंज है और इसके सामने अनास्था आस्था में बदल जाती है तथा बुद्धिवाद झुक जाता है। जीवन का कोई पक्ष हो अथवा नीति, अध्यात्म के बिना पूर्ण नहीं हो सकती। प्रत्येक व्यक्ति आंतरिक शांति का इच्छुक है, आंतरिक शांति प्रस्फुटित हो सकती है बाह्य विक्षेपों को छोड़कर अध्यात्म के प्रति समर्पित होने से। 
 
समाज में बढ़ रही कटुता, वैमनस्य और अशांति की भावना सामाजिक जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है। यह अस्त व्यस्तता इस बात की परिचायक है कि समाज में अध्यात्मक का अभाव हो रहा है। समाज को सुदृढ़ एवं शांतिमय बनाने के लिए अध्यात्म का प्रयोग अपेक्षित है। 
 
अध्यात्ममय जीवन से ही चरित्र का निर्माण हो सकता है, इस बात में कोई संदेह नहीं किया जा सकता। जहां अध्यात्म होता है, वहां अभय, सरलता, मृदुता और सहिष्णुता की चेतना विकसित हो जाती हैं। जिस जीवन में, समाज में इन गुणों की उपस्थिति हो, वहां किसी वैमनस्यता की बात हो ही नहीं सकती। 
 
आदर्शों को परखने का पैमाना है अध्यात्म
अध्यात्म न उपदेश है और न कोरा आदर्श। अध्यात्म जीवन को आदर्शों की कसौटी पर परखने का पैमाना है। अध्यात्म चेतना से प्रेरित व्यक्तित्व जहां अंर्तमुखी बन जाता है, वहीं साधना का सोपान भी छूने लगता है। इसके लिए आवश्यक है व्यक्ति की अध्यात्म के प्रति गहरी निष्ठा का भाव। 
 
अध्यात्म की एक किरण घृणा और शत्रुता के अधंकार का दूर करने के लिय काफी है पर उस किरण को पाने के लिए तपस्या करनी पड़ती है। बिना तपस्या के अध्यात्म रूपी पारस प्राप्त नहीं किया जा सकता। जिन लोगों ने जीवन में अध्यात्म दीप को प्रज्ज्वलित किया है, उन्होंने संतुलन को साधा है। अध्यात्म संतुलन की प्रक्रिया है। 
 
जब तक व्यक्ति के जीवन में संतुलन नहीं होगा तब तक आत्मविकास की बात गौण ही रहेगी। अध्यात्म जीवन में जहां संतुलन को पैदा कर विविध द्वंद्वों से मुक्ति दिलाता है, वहीं आत्म साक्षात्कार की ओर प्रेरित भी करता है।

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