राष्ट्रीय

EWS कोटे पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- गरीबों की मदद करना संवैधानिक दायित्व

नई दिल्ली : सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का बचाव करते हुए केंद्र ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि, उनकी आर्थिक स्थिति के कारण अवसर नहीं मिलने वालों की आकांक्षा को पूरा करना सरकार का कर्तव्य है। 103वें संविधान संशोधन का बचाव करते हुए केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से जोर देकर कहा कि यह अनुच्छेद 46 के तहत किया गया था, जिसमें कहा गया है कि राज्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को विशेष ध्यान से बढ़ावा देगा।

सुनवाई कर रही बेंच, जिसमें जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट, बेला एम त्रिवेदी, और जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं। उन्होंने, ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध करने वाले याचिकाकतार्ओं की दलीलों का हवाला देते हुए कहा कि, यह देखा गया है क्रीमी लेयर से ऊपर ओबीसी के लिए उपलब्ध 50 प्रतिशत खुली सामान्य सीटों का केक का टुकड़ा अब 40 प्रतिशत तक कम हो गया है। ईडब्ल्यूएस कोटा के खिलाफ याचिकाकतार्ओं ने तर्क दिया था कि ईडब्ल्यूएस कोटा सभी मेधावी उम्मीदवारों के लिए खुले मैदान में खा रहा है।

केंद्र के वकील ने तर्क दिया कि इसके तहत प्रदान किया गया आरक्षण अलग था और सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए 50 प्रतिशत कोटा को परेशान किए बिना दिया गया था, और यह कि संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ओबीसी की क्रीमी लेयर किसी भी आरक्षण की हकदार नहीं है और उनके लिए केक का टुकड़ा 50 से घटाकर 40 प्रतिशत कर दिया गया है। इसमें आगे कहा गया है कि खुली श्रेणी में कोई भी इसे बना सकता है और यह उनके लिए आरक्षित है जिनके पास कोई आरक्षण नहीं है। पीठ ने याचिकाकतार्ओं की दलीलों का भी हवाला दिया कि एससी, एसटी और ओबीसी से संबंधित गरीबों को उनकी जाति के कारण इस श्रेणी से बाहर रखा गया है।

वेणुगोपाल ने प्रस्तुत किया कि क्रीमी लेयर को सामान्य श्रेणी की सीटों पर प्रतिस्पर्धा करनी होगी और कहा कि गैर-आरक्षित श्रेणी एक स्वतंत्र श्रेणी है और ईडब्ल्यूएस का फैसला करने के लिए उनमें से वर्गीकरण की अनुमति है। एजी ने जोर देकर कहा कि गरीबों की मदद करना एक संवैधानिक दायित्व है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को आर्थिक स्थिति के कारण अवसर नहीं मिल रहे हैं, उनकी आकांक्षाओं को पूरा करना भी सरकार का कर्तव्य है।

मध्य प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने संविधान संशोधन का समर्थन किया और कहा कि राज्य में ईडब्ल्यूएस कोटा लागू कर दिया गया है। शीर्ष अदालत ने मेहता से ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत आवेदन के आंकड़े उपलब्ध कराने को कहा। लाभार्थी कौन हैं, हम उन आंकड़ों को कुछ राज्यों से चाहेंगे, जेठमलानी से भी यही सवाल पूछे गए थे। सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को भी मामले की सुनवाई जारी रखेगा।

Related Articles

Back to top button