छत्तीसगढ़राज्य

तुलसी के नाम से है बस्तर में एक पहाड़, डोंगरी में है तुलसी की लाखों झाड़ियां

जगदलपुर : तुलसी का पौधा आंगन में होना बेहद शुभ माना जाता है। इस मामले में बस्तर बड़ा खुशनसीब है, चूंकि यहां तुलसी की चार प्रजातियों के अलावा पूरा एक पहाड़ है। जिसे तुलसी डोंगरी (Tulsi Dongri) कहा जाता है और इस डोंगरी में बन तुलसी की लाखों झाड़ियां हैं।

तुलसी सिर्फ आस्था का प्रतीक ही नहीं, बहुमूल्य वनौषधि भी है। इस बात को बस्तरवासी भी भली-भांति समझते हैं इसलिए उन्होंने तुलसी के सम्मान में एक पहाड़ का नाम तुलसी डोंगरी रखा है। संभागीय मुख्यालय से 80 किमी दूर तुलसी डोंगरी की ऊंचाई 3914 फुट है।

तुलसी डोंगरी (Tulsi Dongri) विभिन्न प्रकार की विभिन्न प्रकार की वन औषधियों तथा रूबी जैसे रत्न के लिए विख्यात है। इसकी ढलान पर बन तुलसी की लाखों झाड़ियां हैं इसलिए डोंगरी का नाम तुलसी डोंगरी रखा गया है। इस पहाड़ के शीर्ष में सर्वे आफ इंडिया का मुनारा है। जिसे कोलेंग, चांदामेटा, पुसपाल, छिंदगुर आदि गांव के लोग देवतुल्य स्थल मानते हुए मिट्टी की कई मूर्तियां रखे हैं और जब तुलसी डोंगरी चढ़ते हैं विराजित मूर्तियों की पूजा अर्चना करते हैं।

बस्तरांचल में तुलसी की चार प्रजातियां हैं। इन्हें क्रमश: वन तुलसी, रुख तुलसी, काली तुलसी और सफेद तुलसी के नाम से पहचाना जाता है। काली और सफेद तुलसी को आमतौर पर लोग श्यामा और राधा तुलसी के नाम से आंगन में रोपते हैं। बन तुलसी का उपयोग विभिन्न दवाइयों में होता है। तुलसी डोंगरी क्षेत्र में बन तुलसी की अधिकता है। ग्रामीण इसके बीजों को संग्रहित कर कोलेंग, पुसपाल, तोंगपाल, दरभा आदि साप्ताहिक बाजारों में बेचते हैं।

छिन्दगुर सरपंच बुदरूराम नाग बताते हैं कि तुलसी को पवित्र मानते हुए उसे सम्मान देने का उदाहरण यहां भी नजर आता है। जब किसी को श्यामा या राधा तुलसी बीज की आवश्कता पड़ती है। तब परिपक्व मंजरियों को तोड़ बीज संग्रह कर दूसरों को देने का अधिकार यहां सिर्फ नाबालिग बेटियों को है। इनके अलावा कोई अन्य तुलसी के पौधों की मंजारियांं तोड़ नहीं सकता।

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