ज्ञान भंडार

आइये जानें भगवान विष्णु के चौथे अवतार के बारे

नई दिल्ली : हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों में से चौथे अवतार नर-नारायण थे। मान्यता है कि इस अवतार में भगवान विष्णु ने नर और नारायण रूपी जुड़वां संतों के रूप में अवतार लिया था। इसी रूप में उन्होंने बद्रीनाथ तीर्थ में तपस्या की थी।

मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए दो रूपों में अवतार लिया। इस अवतार में वे अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे। उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र और वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। उनका संपूर्ण वेष तपस्वियों के समान था। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर-नारायण के रूप में यह अवतार लिया था।

धर्मशास्त्रों के अनुसार, भगवान नर और नारायण ब्रह्मदेव के प्रपौत्र थे। ये ब्रह्माजी के बेटे धर्म और पुत्रबधु रुचि की संतान थे। ज्ञात हो कि पृथ्वी पर धर्म के प्रसार का श्रेय इन्हीं को जाता है। कहते हैं कि द्वापर युग में नर-नारायण ही श्रीकृष्ण और अर्जुन के रूप में जन्मे। वहीं यह भी कहा जाता है कि भगवान नर-नारायण ने ही अपनी जांघ से स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा उर्वशी को जन्म दिया था…

ब्रह्मा जी के मानस पुत्र धर्म की पत्नी रूचि के गर्भ से श्री हरि ने नर और नारायण नाम के दो महान तपस्वियों के रूप में धरती पर जन्म लिया। इनके जन्म का कारण ही संसार में सुख और शांति का विस्तार करना था।

जन्म के साथ ही उनका धर्म, साधना और भक्ति में ध्यान बढ़ता ही गया। इसके बाद अपनी माता से आज्ञा लेकर वे उत्तराखंड में पवित्र स्थली बदरीवन और केदारवन में तपस्या करने चले गए। उसी बदरीवन में आज बद्रीकाश्रम बना है, जिसे बद्रीनाथ भी कहा जाता है। भगवान विष्णु ने धर्म की महिमा बढ़ाने के लिए अनेक लीलाएं की हैं। इन्हीं में से एक लीला में उन्होंने नर नारायण रूप लिया। इस अवतार को लेकर वे तपस्या, साधना के मार्ग पर ईश्वर के प्रतिरूप को भक्तों के लिए धरती पर जीवंत कर गये।

माना जाता है कि करीब 8 हजार ईसा पूर्व अपनी कई हजार सालों की महान तपस्या से इन दोनों भाइयों ने भगवान शिव को अत्यंत प्रसन्न किया। तब भगवान शिवजी ने उनसे प्रसन्न होकर दर्शन देने के पश्चात वरदान मांगने को कहा। लेकिन, जन लोक कल्याण के लिए नर नारायण ने अपने लिए कुछ नहीं मांगा और शिवजी से विनती की वे इस स्थान में पार्थिव शिवलिंग के रूप में हमेशा रहें। इस पर शिवजी ने उनकी विनती स्वीकार कर ली और आज जिस केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के हम दर्शन करते है, उसी में शिवजी का आज भी वास है।

वहीं इसके आस पास मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया। बाद में इसका दोबारा निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया। इसके बाद राजा भोज ने भी यहां पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। इसके बाद इन दोनों भाइयो ने बदरीवन में जाकर भगवान विष्णु के मंदिर बद्रीनाथ में प्रतिमा की स्थापना की।

देवभूमि उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा में बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है। आज भी इस जगह नर नारायण के नाम के दो पर्वत मौजूद है। मान्यता के अनुसार वे आज भी परमात्मा की तपस्या में लीन हैं।

आपने भी सुना ही होगा कि द्वापर युग में यानि महाभारत काल में श्री कृष्ण को पांडवो में सबसे प्रिय अर्जुन ही थे, लेकिन क्यों? तो इसका उत्तर नर नारायण से ही जुड़ा हुआ है। दरअसल माना जाता है कि पांडवो के घर नर ने ही अर्जुन के रूप में जन्म लिया था जबकि कृष्ण तो नारायण के ही अवतार थे। माना जाता है कि इसी कारण कृष्ण के परम सखा, शिष्य, भाई आदि अर्जुन ही थे।

Related Articles

Back to top button