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अफसरों की ड्रेसिंग पर टिप्पणी और बेवजह पेशी पर बुलाने से बचें जज, सरकार ने बनाई आचार संहिता

नई दिल्ली : सरकारी अधिकारियों को अदालत में व्यक्तिगत तौर पर पेशी से बचाने के लिए केंद्र सरकार एक प्रस्ताव पर विचार कर रही है। इसके तहत जजों के लिए एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर का ड्राफ्ट तैयार किया गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तावित किया गया है। इसके तहत जजों से कहा जाएगा कि वह बेहद अहम मामलों में ही सरकारी अफसरों को निजी तौर पर पेशी के लिए बुलाएं। इसके अलावा अफसरों को नोटिस देते समय यह भी बताएं कि उनकी हाजिरी क्यों जरूरी है। यही नहीं यदि संभव हो तो पेशी के लिए उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का विकल्प देना चाहिए।

सरकार का कहना है कि उसने ऐसा प्रस्ताव इसलिए तैयार किया है ताकि अदालत की अवमानना के मामलों को सीमित किया जा सके। इसके अलावा सरकारी अफसरों के वक्त की बर्बादी को रोकना भी इसका एक मकसद है। उत्तर प्रदेश में हाल ही में एक मामला सामने आया था, जब दो अफसरों के हाई कोर्ट में पेश न हो पाने पर उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की गई थी। इसके तहत हाई कोर्ट ने दो वरिष्ठ अधिकारियों को अरेस्ट करने का ही आदेश दे दिया था। इसी को मद्देनजर सरकार जजों के लिए एसओपी तैयार कर रही है।

सरकार की ओर से तैयार एसओपी का ड्राफ्ट अदालत को सौंपते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट या फिर उच्च न्यायालयों में अहम मामलों में ही तलब करना चाहिए। ऐसा तभी होना चाहिए जब पॉलिसी से जुड़े मामले में उनकी जरूरत हो या फिर अवमानना का ही केस हो। यही नहीं उन्होंने अदालतों में अफसरों को अपमानित किए जाने की घटनाओं का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कई बार सही ड्रेस न पहने होने को वजह बताते हुए अफसरों को अपमानित किया गया। यह गलत है। कोई भी अफसर अदालत का कर्मचारी नहीं है। ऐसे में उनकी ड्रेसिंग पर सवाल नहीं उठाने चाहिए।

एसओपी में जजों को सलाह दी गई है कि वे सरकारी अफसरों की ड्रेसिंग और उनके शैक्षणिक एवं सामाजिक बैकग्राउंड पर टिप्पणी न करें। तुषार मेहता ने कहा कि सरकारी अफसर अदालत के कर्मचारी नहीं होते। इसलिए उनकी ड्रेस को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से दो अफसरों को गिरफ्तार करने का आदेश दिए जाने के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी। वहां चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही केंद्र सरकार से कहा था कि वह जजों के लिए एक एसओपी भी तैयार करे।

दरअसल उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जजों को सुविधाएं मुहैया कराने के आदेश पर अमल न किए जाने पर कोर्ट ने यूपी के वित्त सचिव और विशेष वित्त सचिव की गिरफ्तारी का ही आदेश पारित कर दिया था। इसी मामले के बाद एसओपी तैयार की गई है। इसमें कहा गया है कि सरकारी अफसरों को बेहद जरूरी होने पर ही पेशी के लिए बुलाया जाए।

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