डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग का हब बनता भारत
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रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के कार्यकाल में हुए ऐतिहासिक परिवर्तन
–अजय सिंह
एक समय था जब भारत रक्षा उपकरणों के मामले में एक आयातक और क्रेता देश के रूप में ही जाना जाता था लेकिन रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के कुशल विजनरी नेतृत्व में भारत ने डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने की प्रक्रिया तेज कर दी है। भारत रक्षा क्षेत्र में अब एक निर्यातक और विक्रेता देश बनने की दिशा में तेज गति से अग्रसर है। रक्षामंत्री राजनार्थ ंसह ने इस बात पर विशेष ध्यान दिया है कि कैसे विदेशी प्रतिरक्षा कंपनियों के साथ आज भारत संयुक्त अनुसंधान और विकास पर काम करे, भारत को किस तरह डिफेंस मैन्युफैक्र्चंरग हब बनाया जाय। भारत ने अपने डिफेंस सिस्टम की मजबूती के लिए आवश्यक रक्षा साजोसामान को खरीदना और विदेशी कंपनियों को ठेके देना जारी रखा है लेकिन परिवर्तन यह आया है कि भारत अब विदेशी डिफेंस कंपनी की सारी शर्तों को मानते हुए काम करता हो, ऐसा नहीं है। भारत ने अपनी स्वायत्तता और संप्रभुता को इस सेक्टर में पूर्ण प्राथमिकता दिया है।
वर्तमान समय में जिस प्रकार से देश की आंतरिक सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष उपस्थित चुनौतियों की प्रकृति में बदलाव आया है, उसके चलते केंद्र सरकार द्वारा भारतीय सेना और समूचे डिफेंस सेक्टर के आधुनिकीकरण और उसके क्षमता निर्माण पर विशेष बल दिया जा रहा है। लगभग आठ साल पहले तक एक आयातक के तौर पर पहचाना जाने वाला भारत, आज ड्रोनियर-228, 155 एमएम एडवांस्ड टोड आर्टिनरी गन्स (एटीएजी), ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश मिसाइल सिस्टम्स, रडार, सिमुलेटर, माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल्स, आर्मर्ड व्हीकल्स, पिनाका रॉकेट और लॉन्चर, एम्युनिशन, थर्मल इमेजर, बॉडी आर्मर, सिस्टम, लाइन रिप्लेसिएबिल यूनिट्स और एवियॉनिक्स और स्मॉल आम्र्स के भाग और घटकों जैसे बड़े प्लेटफॉम्र्स का निर्यात करता है। दुनिया में एलसीए-तेजस, लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर, एयरक्राफ्ट कैरियर, एमआरओ गतिवधियों की मांग बढ़ रही है। रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने पिछले 5-6 वर्षों के दौरान कई नीतिगत पहल भी की हैं और सुधार किए हैं। पूरी तरह से ऑनलाइन निर्यात की व्यवस्था के साथ रक्षा सौदों में विलंब को कम करने और कारोबारी सुगमता के साथ निर्यात प्रक्रियाओं को सरल और उद्योग के अनुकूल बना दिया गया है।
विभिन्न देशों से प्राप्त निर्यात के अनुरोधों को वास्तविक समय के आधार पर ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से पंजीकृत भारतीय रक्षा निर्यातकों तक पहुंचाया जाता है, ताकि वे निर्यात अवसरों पर प्रतिक्रिया देने में सक्षम हो सकें। भारतीय रक्षा उत्पादों को बढ़ावा देने और भारतीय उद्योग को सहूलियत प्रदान करने के लिए विदेश में स्थित भारतीय मिशनों के साथ नियमित समीक्षा की जाती है। उद्योग संघों की भागीदारी के तहत मित्रवत देशों (एफएफसी) के साथ 40 से अधिक वेबिनार आयोजित की गईं।
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सुरक्षा चुनौतियों ने बढ़ाई भारत में रक्षा क्षेत्र की मुखरता
साइबर वारफेयर, इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी वॉरफेयर, ड्रोन हमले, नार्को आतंकवाद जैसी चुनौतियां बढ़ गई हैं। इसलिए इंडियन आर्मी द्वारा भी खुद को सशक्त करने के प्रयास तेज़ हुए हैं। हाल ही में इस बात की सूचना मिली है कि भारतीय सेना के लिए अमेरिकी एयरोस्पेस बोइंग 6 जंगी अपाचे हेलीकॉप्टर के निर्माण कार्य में लग गई है। बोइंग ने भारतीय सेना को सौंपे जाने वाले अपाचे हेलीकॉप्टर का उत्पादन एरीजोना के मेसा में शुरू किया है। एएच-64 अपाचे दुनिया के सबसे उन्नत बहुउद्देश्यीय लड़ाकू हेलीकाप्टरों में से एक है। एएच-64 की उन्नत तकनीक और प्रमाणित प्रदर्शन, भारतीय सेना की परिचालन तैयारियों और उसकी रक्षा क्षमताओं को और मजबूत बनाने में मदद करेगा। भारतीय सेना के अपाचे की आपूर्ति 2024 तक निर्धारित है। एएच-64ई दुनिया का प्रमुख लड़ाकू हेलीकॉप्टर बना हुआ है, इस आधार पर कहा जा सकता है कि निश्चित तौर पर इससे भारतीय सेना की क्षमता बढ़ेगी।
इससे पहले बोइंग ने 2020 में भारतीय वायु सेना को 22 ई-मॉडल अपाचे की सफल डिलीवरी पूरी की थी। उल्लेखनीय है कि बोइंग भारतीय सेना को कुल छह एएएच-64ई अपाचे हेलीकॉप्टर सौंपेगी। एएएच-64ई अपाचे हेलीकॉप्टर अपने एडवांस टेक्नोलॉजी के लिए जाना जाता है। अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल अमेरिकी सेना बड़े पैमाने पर करती है। उल्लेखनीय है कि भारतीय वायु सेना ने सितंबर 2015 में अमेरिकी सरकार और बोइंग लिमिटेड के साथ 22 अपाचे हेलीकॉप्टरों के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। इसके अलावा, रक्षा मंत्रालय ने 2017 में भारतीय सेना के लिए 4,168 करोड़ रुपये की लागत से छह अपाचे हेलीकॉप्टरों की खरीद को मंजूरी दी थी।
भारतीय सेना के आधुनिकीकरण के लिए किए गए महत्वपूर्ण प्रयास
भारत सरकार द्वारा सशस्त्र बलों के लिए हथियार प्रणालियों के स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए विभिन्न नीतिगत निर्णय लिए गए हैं। इस दिशा में सेना द्वारा माइंस, व्यक्तिगत हथियार और पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों सहित कई नए उपकरण शामिल किए गए हैं। नए स्वदेशी हथियार मिलने से भारतीय सेना की ताकत बढ़ गई है। इन हथियारों में माइंस, पर्सनल वेपंस और लड़ाई में काम आने वाले वाहन हैं। स्वदेश में बने इन हथियारों में ऐंटी पर्सनेल माइंस, आमने सामने लड़ाई के हथियार, इन्फैंट्री के लड़ाकू वाहन शामिल हैं। इनमें एके-203 और एफ-इंसास राइफलों के अलावा नई ऐंटी पर्सनेल माइन ‘निपुण’ भी शामिल है। नए हथियार भारतीय कंपनियों ने विकसित किए हैं। पिछले वर्ष रक्षामंत्री ने नई दिल्ली में भारतीय सेना को स्वदेशी में विकसित उपकरण एवं प्रणालियां सौंपीं थीं। अत्याधुनिक उपकरणों में फ्यूचर इन्फैंट्री सोल्जर, नई पीढ़ी की एंटी-पर्सनल माइन, टैंकों के लिए अपग्रेडेड साइट सिस्टम, उच्च गतिशीलता इन्फैंट्री प्रोटेक्टेड व्हीकल और असॉल्ट बोट्स शामिल हैं।
क्विक रिएक्शन फाइटिंग व्हीकल (मीडियम) पूर्वी लद्दाख में भारतीय सैनिकों की गतिशीलता बढ़ाने के लिए जरूरी पहल है। इन्फैंट्री मोबिलिटी प्रोटेक्टेड व्हीकल के जरिए भी लद्दाख क्षेत्र में सैन्य तंत्र को मजबूती मिली है। मिनी रिमोटली पायलट-एरियल सिस्टम सामरिक स्तर पर भारतीय वायुसेना के विमान और मानवरहित हवाई वाहनों हेरॉन द्वारा सामना की जाने वाली ऑपरेशनल सीमाओं को हटा देता है। यह पैदल सेना बटालियन और मशीनीकृत इकाइयों के स्तर पर निगरानी, पहचान और टोही की प्रतिबंधित क्षमता को हटाकर भारतीय सेना को सशक्त बनाता है।
निपुण माइंस होगी भारतीय सेना के लिए मददगार
निपुण माइंस देश में विकसित बारूदी सुरंग हैं। यह घुसपैठियों और दुश्मन की सेना को आगे बढ़ने से रोकने के लिए पहली सुरक्षा पंक्ति की तरह काम करती हैं। इन्हें ऐंटी पर्सनेल माइंस इसलिए कहा जा रहा है कि इन्हें इंसानों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है। ये आकार में छोटे होते हैं इसलिए बड़ी तादाद में बिछाए जा सकते हैं। एलसीए यानी र्लैंंडग क्राफ्ट असॉल्ट का विकास पैगोंग क्षेत्र की सुरक्षा के लिए किया गया है। ये उन नावों की जगह लेंगे जो अभी पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील में गश्त करती हैं और सीमित क्षमता रखती हैं। एलसीए को गोवा की एक्वेरियस शिप यार्ड लिमिटेड ने बताया है। यह स्पीड में तेज हैं और हर तरह की परेशानी के बावजूद पानी में काम करने की क्षमता रखती हैं। यह नावें एक समय में 35 लड़ाकू सैनिकों को ले जा सकती हैं, बहुत कम समय में झील के किसी भी क्षेत्र तक पहुंच सकती हैं।
फ्यूचर इन्फैंट्री सोल्जर
फ्यूचर इन्फैंट्री सोल्जर को तीन प्राथमिक सब सिस्टम से लैस किया जा रहा है, जिसमें पहला सब सिस्टम दिन और रात के होलोग्राफिक और रिफ्लेक्स साइट के साथ अत्याधुनिक असॉल्ट राइफल है। प्राथमिक हथियार प्रणाली के अलावा सैनिकों को मल्टी-मोड हैंड ग्रेनेड भी दिया जाएगा, जिसे मल्टीपरपज नाइफ के साथ स्वदेशी रूप से खरीदा गया है। सशस्त्र बलों के लिए प्रतिरक्षा उपकरणों के पूंजीगत अधिप्राप्ति के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा समझौतों पर हस्ताक्षर किया गया है। इन उपकरणों में रडार, एयरक्राफ्ट रॉकेट, आर्टलरी गंस, हेलीकॉप्टर, मिसाइल्स, बैलिस्टिक हेलमेट, बुलेटप्रूफ जैकेट, वेपंस, सिम्युलेटर इलेक्ट्रॉनिक फ्यूज और विस्फोटक आदि शामिल है। भारतीय सेना अपने नीतियों के जरिए महिलाओं को सशस्त्र बलों में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है और इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल किए गए हैं। वूमेन सर्विंग पर्सनल को ग्रांट ऑफ परमानेंट कमिशन दिया गया है। सशस्त्र बलों ने नेशनल डिफेंस एकेडमी में महिला उम्मीदवारों की प्रवेश की अनुमति दी है और साथ ही भारतीय सेना ने 2021 से महिला अधिकारियों को पायलट के रूप में सेवा देने के लिए भी अवसर देने शुरू किए हैं।
भारतीय सेना ने रक्षा उत्कृष्टता के लिए नई खोज के द्वारा सामरिक लैन रेडियो की खरीद के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। ‘मेक इन इंडिया’ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखते हुए भारतीय सेना ने 9 जून 2023 को इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस के द्वारा दूसरे खरीद अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। स्वदेशी रूप से विकसित टेक्टिकल लैन रेडियो की खरीद के लिए मेसर्स एस्ट्रोम टेक प्राइवेट लिमिटेड, बैंगलोर, के साथ अनुबंध नई दिल्ली में उप थल सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल एम.वी. सुचिन्द्र कुमार की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए हैं। इस पहल के साथ भारतीय सेना ने अब तक आईडीईएक्स के तहत दो अनुबंधों पर हस्ताक्षर करके अपनी बढ़त बना ली है। आईडीईएक्स को प्रधानमंत्री द्वारा 12 अप्रैल 2018 को डिफेंस एक्सपो इंडिया 2018 के दौरान लॉन्च किया गया था। आईडीईएक्स का उद्देश्य अनुसंधान और विकास संस्थानों, शिक्षाविदों, एमएसएमई सहित उद्योगों, स्टार्टअप, व्यक्तिगत नवप्रवर्तकों को शामिल करके अनुदान वित्त/पोषण और अन्य सहायता प्रदान करके रक्षा और एयरोस्पेस में नवाचारों को बढ़ावा देना, जिन्हें भारतीय रक्षा और एरोस्पेस में भविष्य में शामिल करने की अच्छी संभावना हो, और तकनीकी विकास को प्रोत्साहित करने के लिए एक इकोसिस्टम बनाना है। पिछले चार वर्षों में डिफेंस इनोवेशन ऑर्गेनाइजेशन के तहत आईडीईएएक्स, स्टार्टअप्स और इनोवेटर्स के साथ सही तरह का संपर्क स्थापित करने में एक ‘फ्रंटरनर’ रूप के में उभरा है और डिफेंस स्टार्टअप कम्यूनिटी में पर्याप्त ध्यान आकर्षित कर रहा है।
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थिएटर कमांड बनाने से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, राष्ट्रीय रक्षा रणनीति
थिएटर कमांड बनाने से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, राष्ट्रीय रक्षा रणनीति और उच्च रक्षा संगठन होना आवश्यक है, इसके बाद ही थियेटर कमांड के बारे में सोचना तर्कपूर्ण रहेगा। सेना के पुनर्गठन की बात करें तो मानव संसाधन प्रबंधन, आधुनिकीकरण और प्रौद्योगिकी का समावेश, पुनर्संतुलन और पुनर्गठन तथा संयुक्तता और बेहतर एकीकरण इसके चार प्रमुख पहलू हैं। एनएसएस के साथ एक ऐसे उच्च रक्षा संगठन की भी आवश्यकता है, जो पूरे देश के दृष्टिकोण को प्रभावी करे और उसमें सभी संबंधित मंत्रालयों का प्रतिनिधित्व हो। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में एक शीर्ष स्तरीय रक्षा योजना समिति की स्थापना 2018 में की गई थी, जिसे एनएसएस और एनडीएस तैयार करना था लेकिन अब तक इस पर कोई प्रगति नहीं हो पाई है। भारतीय सेना के आधुनिकीकरण के लिए जरूरी है कि इसके संस्थागत, संगठनात्मक ढांचे को और अधिक तार्किक और परिणाममूलक बनाया जाय और सभी आवश्यक संसाधनों का प्रबंधन करते हुए थियेटर कमांड बनाने की दिशा में बढ़ा जाए।
दुनियाभर के 32 से अधिक देशों के पास अपने सैन्य बलों के बीच बेहतर एकीकरण लाने के लिए पहले से ही किसी न किसी रूप में थिएटर या संयुक्त कमांड है। विशेष रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका थिएटर कमांड सिस्टम को लागू करने वाला पहला देश था, जिसमें वर्तमान में छह भौगोलिक और चार कार्यात्मक कमांड शामिल हैं। रूस ने भी 2008 में अपने रक्षा बलों के पुनर्गठन के साथ शुरुआत की थी और इसके चार थिएटर कमांड हैं। कहा जाता है कि चीन का थिएटर कमांड सिस्टम अमेरिकी मॉडल पर आधारित है और इसमें ‘शांति के समय में पांच भौगोलिक कमांड’ हैं। चाइनीज वेस्टर्न थिएटर कमांड भारतीय सीमा से सटे इलाके को कवर करती है। थियेटर कमांड सिस्टम के पीछे का विचार सशस्त्र बलों की तीन शाखाओं के बीच सहक्रियाशील समन्वय लाना है। इसके अलावा, इसका उद्देश्य सेना, नौसेना, वायु सेना के लिए अलग-अलग कमानों को एक ही कमांडर के नेतृत्व वाली एकीकृत कमान के तहत लाना है। एकीकरण प्रक्रिया अंतत: एक ऑपरेशनल हेड के तहत एक ही कमांड में जुड़े हुए एकीकृत सैन्य संपत्ति की ओर अग्रसर होगी, जो किसी दिए गए स्थिति में उनकी गतिविधियों को निर्देशित करने और नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होंगे।