जीवनशैली

शिफ्ट वर्किंग से 4 साल उम्र घट सकती है

k4रायपुर (एजेंसी)। छत्तीसगढ़ के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय (रविवि) के जीवन विज्ञान (लाइफ साइंस) विभाग ने एक शोध में पाया है कि कभी रात तो कभी सुबह  यानी अलग-अलग शिफ्ट में काम करने वाले लोगों की बायोलॉजिकल क्लॉक की लय बार-बार बदलती रहती है। इसका सीधा असर व्यक्ति के ‘लाइफ स्पैन’ पर पड़ता है और इस कारण उम्र चार साल तक घट सकती है। दक्षिण-पूर्व रेलवे कर्मचारियों पर किए गए शोध में पाया गया है कि शिफ्ट में काम करने वाले लोगों की उम्र लगभग चार साल तक घट सकती है। यहां चल रही कार्यशाला में और भी तरह-तरह के शोध-पत्र पेश किए जा रहे हैं। राजधानी रायपुर स्थित रविवि के लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर ए.के. पति ने इस शोध की जानकारी क्रोनोबायोलॉजी के न्यू ट्रेंड पर आयोजित कार्यशाला में दी। अहमदनगर से आए इंडियन सोसायटी ऑफ क्रोनोबायोलॉजी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. डी.एस. जोशी और जमशेदपुर के डॉ. के.के. शर्मा ने मून और एनिमल बायलॉजिकल क्लॉक की जानकारी दी।  डॉ. जोशी ने बताया कि सोलर सिस्टम व दिन और रात के माध्यम से हमारे शरीर की बायोलॉजिकल क्लॉक (जैविक घड़ी) स्वत: 24 घंटे की अवधि के लिए सेट हो जाती है। लेकिन  जहां दिन और रात का पता नहीं चलता वहां के लोगों की बायोलॉजिकल क्लॉक 24 घंटे से कम या ज्यादा अवधि की होती है। कार्यशाला में डॉ. के.के. शर्मा ने बताया कि हर व्यक्ति की जैविक घड़ी प्रतिदिन 24 घंटों के हिसाब से काम करती है। सुबह के समय ज्यादा तनाव होना और रात होते- होते कम होना जैविक घड़ी की लय की वजह से होता है। इसी तरह सुबह मेलाटॉलिन हार्मोन सक्रिय होता है और रात होने तक नींद आने लगती है।
चूहों का क्लॉक : मां के आने जाने से सेट होता है
कार्यशाला में मदुरई यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एम.के. चंद्रशेखरन के शोध के बारे में डॉ. जोशी ने बताया कि प्रो.चंद्रशेखरन ने खेतों में घूमने वाले चूहों के बच्चे को लैब में लाकर वैसा ही बनावटी वातावरण दिया। बिल की तरह ही सुबह और शाम को बच्चों की मां को उनसे मिलाया जाता रहा। बाद में पाया गया कि दिन-रात का पता न चलने पर बच्चे मां की मौजूदगी और अनुपस्थिति से बायलॉजिकल क्लॉक सेट कर लेते हैं।

कुटुंबसर में क्लॉक : चमगादड़ों की पॉटी से सेट होती है
रविवि के डॉ. ए.के. पति ने बताया कि समुद्र की गहराई या गुफा के अंदर  जहां दिन या रात का पता नहीं चलता  वहां का क्लॉक सिस्टम बेहद रोचक है। हाल ही में शोध में पाया गया कि कुटुंबसर गुफा के भीतर थोड़ा-सा पानी है  सुबह जब चमगादड़ झुंड में बाहर निकलते हैं  तो उनके पॉटी करने की आवाज और इससे पानी में आए बदलाव से मछलियों को समय का आभास हो जाता है। शाम को चमगादड़ों के लौटने की आवाज वक्त के बारे में जानकारी देती है। वहीं जेट लेग इफेक्ट के बारे में डॉ. के.के. शर्मा ने बताया कि भारत और अमेरिका या दूसरे देशों में दिन-रात के समय में अंतर है। खिलाड़ी विदेश जाते हैं  तो उनकी बायोलॉजिकल क्लॉक बदल जाती है। दूसरे देश के समय के मुताबिक हमारे शरीर की क्लॉक हर दिन एक घंटा एडजस्ट करती है। कई बार तुरंत बायो क्लॉक एडजस्ट नहीं करने की वजह से भी खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं।

 

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