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Bihar : महाबंधन में ‘महाभारत’

पटना से दिलीप कुमार

बिहार में महागठबंधन के बीच भले ही लोकसभा की सीटों का बंटवारा हो गया है, लेकिन अंदरुनी कड़वाहट नहीं गई है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने अपने तरीके से सीटों का बंटवारा किया। जिस तरह चाहा, वैसे गठबंधन के सहयोगियों को टिकट दिया। पहले तो उन्होंने सहयोगियों के साथ सीटों का बंटवारा हुए बिना अपने प्रत्याशियों को टिकट बांटे, फिर पूर्णिया सीट पर पेंच फंसा दिया। इस सीट से अपनी पार्टी जाप का कांग्रेस में विलय करने वाले पप्पू यादव चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके थे। इसके लिए वे पहले लालू प्रसाद से मिले, फिर दिल्ली पहुंच कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय किया। माना जा रहा था कि पूर्णिया सीट को लेकर लालू प्रसाद की हरी झंडी के बाद ही उन्होंने ऐसा किया, लेकिन लालू ने उन्हें ऐसा गच्चा दिया कि वे चारों खाने चित हो गए।

..ताकि दूसरा यादव नेता पनप न पाए

बिहार में सभी सातों चरण में लोकसभा चुनाव होने हैं। यहां की 40 सीटों में अभी 39 पर एनडीए का कब्जा है, एक सीट कांग्रेस के पास है। पिछले चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाने वाले राजद के लालू ने कांग्रेस को महज नौ सीटें दी हैं। इससे ही समझा जा सकता है कि महागठबंधन में क्या चल रहा है? लालू यादव ने महागठबंधन में जिस तरह से पप्पू का पत्ता साफ किया, उससे साफ है कि वे प्रदेश में किसी अन्य यादव नेता को पनपने नहीं देना चाहते हैं। वह जानते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो उनकी पार्टी राजद का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। यही कारण है कि उन्होंने सभी कुछ तय होने के बाद भी पूर्णिया की सीट पर जदयू से आईं बीमा भारती को पार्टी र्का सिंबल सौंप दिया। पप्पू यादव, लालू के विरोध में कुछ कड़ा तो नहीं बोल रहे, लेकिन अंदर ही अंदर वे खफा जरूर हैं। वह कह रहे हैं कि पूर्णिया मेरी मां है और बीमा भारती बेटी। वे पूर्णिया से ही चुनाव लड़ेंगे, मुकाबला भले ही फ्रेंडली हो। पूर्णिया में प्रेस कान्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि उनके पांच संकल्पों में से एक केंद्र में कांग्रेस की सरकार और दूसरा राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना है।

समझना यह है कि लालू क्यों दूसरे यादव नेता को पनपने नहीं देना चाहते? दरअसल, लालू चाहते हैं कि बिहार में ऐसा कोई यादव नेता मजबूत न हो जो आगे चलकर उनके बेटे तेजस्वी के लिए चुनौती बने। लालू की पार्टी राजद का वोट बैंक यादव और मुसलमान हैं। अगर कोई यादव नेता मजबूत हुआ तो उनकी पार्टी की जमीन खिसक जाएगी और आगामी विधानसभा चुनाव में अपने बेटे को सीएम बनाने का सपना भी लालू पूरा नहीं कर पाएंगे। इतना ही नहीं, उनकी पार्टी के अस्तित्व के लिए भी यह खतरा होगा। पहले भी राजद में रह चुके पप्पू यादव को लालू के रवैये के चलते पार्टी छोड़नी पड़ी थी। कोसी-सीमांचल में अपना कद बड़ा कर चुके पप्पू यादव मजबूत होकर उभरें, ऐसा लालू प्रसाद होने नहीं देना चाहते। लालू जानते हैं कि युवा नेता के तौर पर तेजस्वी के सामने किसी अन्य चेहरे को मजबूत करना तेजस्वी के लिए परेशानी बन सकता है।

पप्पू को लालू मधेपुरा या सुपौल से लड़ाना चाह रहे थे, जहां से उनके जीतने की संभावना कम ही थी, लेकिन पप्पू यह चाल अच्छी तरह समझ रहे थे। लालू ने पप्पू को उनकी पार्टी का राजद में विलय करने का आफर भी दिया था। साथ ही मधेपुरा से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव, लेकिन पप्पू अच्छी तरह जानते थे कि ऐसा कर वे अपना वजूद खत्म कर लालू के रहमोकरम पर हो जाएंगे। यही कारण है कि उन्होंने पार्टी का कांग्रेस में विलय किया। बताया जाता है कि पप्पू यादव को राहुल और प्रियंका गांधी ने पूर्णिया से लड़ाने के लिए आश्वस्त किया था, लेकिन लालू प्रसाद ने मामला फंसा दिया है। पहले भी लालू कांग्रेस के साथ इस तरह का खेला कर चुके हैं। बात पिछले चुनाव की है। कीर्ति झा आजाद भाजपा से कांग्रेस में पहुंचे थे। वे दरभंगा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, जहां से सांसद रह चुके थे। इसे लेकर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से उनकी बात भी हो चुकी थी, लेकिन लालू ने ऐसा पेच फंसाया कि उन्हें झारखंड जाकर चुनाव लड़ना पड़ा था।

सिर्फ पप्पू को लेकर ही लालू खतरा महसूस नहीं कर रहे। कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार को भी वे तेजस्वी के लिए खतरा मान रहे हैं। कन्हैया जेएनयू की राजनीति कर पहुंचे हैं। अच्छी जानकारी होने के साथ तेजस्वी के मुकाबले काफी पढ़े-लिखे हैं। तर्कों के साथ अपनी बात रखते हैं। अच्छे वक्ता हैं। तेजस्वी उनके मुकाबले कुछ भी नहीं। भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के बाद दूसरे लोकप्रिय नेता के तौर पर सुने जा रहे थे। पिछला चुनाव उन्होंने अपने गृह जिला बेगूसराय से लड़ा था। इस बार यहां कांग्रेस के टिकट पर लड़ने की तैयारी में थे, लेकिन लालू ने यह सीट वामदलों को दे दी। इस तरह उन्होंने कन्हैया कुमार का भी पत्ता काट दिया। दरअसल, लालू गठबंधन में रहने के साथ ही राज्य में राजनीतिक जमीन साथियों को नहीं देना चाहते। खासतौर से कांग्रेस को वे राज्य में पनपने नहीं देना चाहते। जानते हैं कि अगर कांग्रेस मजबूत हुई तो राजद का पत्ता साफ होगा। तभी तो उन्होंने कांग्रेस के दो नेताओं को एक साथ ठिकाने लगा दिया है। बेगूसराय से कन्हैया की जगह लेफ्ट पार्टी और पूर्णिया में पप्पू यादव की जगह बीमा भारती को टिकट देकर लालू ने कांग्रेस के साथ ‘खेल’ ही किया है। दरसअल, लालू लोकसभा चुनाव से ही आगामी विधानसभा की बिसात बिछाने लगे हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुत सौदेबाजी की स्थिति में न रहे, इसके लिए अभी से उसे कमजोर कर रहे हैं।

राज्य में राजद 26 सीट पर चुनाव लड़ेगी। ये सीटें हैं, अररिया, बांका, बक्सर, गया, गोपालगंज, हाजीपुर, जहानाबाद, जमुई, झंझारपुर, मधेपुरा, सुपौल, नवादा, पाटलिपुत्र, उजियारपुर, सारण, पूर्णिया, शिवहर, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, सिवान, वैशाली, दरभंगा, मधुबनी, मुंगेर, वाल्मीकिनगर और औरंगाबाद। कांग्रेस को जो नौ सीटें दी गई हैं, वे हैं- कटिहार, किशनगंज, पटना साहिब, सासाराम, भागलपुर, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, महाराजगंज व समस्तीपुर। भाकपा माले को काराकाट, आरा, नालंदा व भाकपा को महज एक सीट बेगूसराय दी गई है। माकपा को खगड़िया सीट दी गई है।

एनडीए में पारस को तरजीह नहीं

दूसरी ओर, एनडीए को देखा जाए तो यहां सीटों के बंटवारे को लेकर कोई खींचतान नहीं मची। समझौता भी हुआ और आसानी से सीटें भी बंट गईं, लेकिन पशुपति पारस को एनडीए सीट नहीं मिली। बिहार की 40 में 17 सीटें भाजपा, 16 जदयू, पांच लोजपा (रामविलास) और एक-एक हम और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को दी गईं। एनडीए के सभी सहयोगियों की ओर से अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए गए। बात पशुपति पारस की लोजपा की है तो उन्हें एनडीए में तो जगह नहीं मिली, महागठबंधन से भी बात नहीं बन सकी। पशुपति हाजीपुर से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, जहां से चिराग पासवान लड़ रहे हैं। इस सीट को लेकर दोनों ओर से जमकर जुबानी जंग हुई। भाजपा ने दोनों के बीच समझौता कराने की बहुत कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। अंत में भाजपा ने युवा चिराग को चुना, जिनके पास उनका वोट बैंक है।

भाजपा ने अपने हिस्से के 17 संसदीय क्षेत्रों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। बक्सर, सासाराम (सुरक्षित) और मुजफ्फरपुर के निवर्तमान सांसद क्रमश: अश्विनी चौबे, छेदी पासवान और अजय निषाद का टिकट काट दिया गया है। तीनों सीटों पर नए चेहरे मैदान में हैं। आशंकाओं को दरकिनार करते हुए पार्टी ने राधामोहर्न ंसह, आरर्के ंसह, रविशंकर प्रसाद और रामकृपाल यादव को इस बार भी अवसर दिया है। नवादा में भूमिहार समाज से विवेक ठाकुर प्रत्याशी बनाए गए हैं, जो राज्यसभा के सदस्य हैं। इस सीट पर पिछली बार लोजपा के चंदर्न ंसह जीते थे। इस बार नवादा सीट लोजपा को नहीं दी गई। उसका एक सीट कम किया गया है। भाजपा ने टिकट बंटवारे में सामाजिक समीकरणों के साथ अनुभवी चेहरों को प्राथमिकता दी है। बिहार से भाजपा कोटे के केंद्रीय मंत्रियों में अश्विनी चौबे का टिकट काटा गया है। इसके अलावा रेणु देवी का टिकट भी भाजपा ने काटा है। वह शिवहर से सांसद हैं। यह सीट बंटवारे में जदयू के पास चली गई है। मुजफ्फरपुर से राज भूषण निषाद प्रत्याशी बनाए गए हैं। पिछली बार वे महागठबंधन में विकासशील इंसान पार्टी के प्रत्याशी थे और भाजपा के अजय निषाद से हार गए थे। बाद में वे भाजपा में आ गए।

लालू का रोहिणी दांव

लालू प्रसाद यादव ने सारण सीट को लेकर रोहिणी आचार्य दांव खेला है। रोहिणी लालू की वह बेटी हैं, जिन्होंने अपनी किडनी देकर पिता की जान बचाई। लालू को जब परिवारवाद पर घेरा जा रहा, तब भी उन्होंने रोहिणी का चुनाव इसलिए किया ताकि इस सीट को जीता जा सके, क्योंकि यह सीट लालू यादव की कर्मभूमि रही है। सारण में उनकी राजनीतिक विरासत और प्रतिष्ठा बचाने के लिए बेटी रोहिणी ही सबसे उपयुक्त हैं। इस सीट से राबड़ी देवी और लालू के समधी चंद्रिका राय पिछले दो चुनावों में क्रमश: भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी से हार चुके हैं। ऐसे में इस बार सारण की लड़ाई लालू के राजनीतिक वजूद और साख का सवाल बन चुकी है। लालू को मोदी लहर रोकने के साथ छपरा सीट से सांसद व भाजपा प्रत्याशी राजीव प्रताप रूड़ी के खिलाफ ऐसा उम्मीदवार चाहिए था, जो तुरुप का पत्ता साबित हो। रोहिणी इस पर पूरी तरह फिट बैठती हैं। पिता के लिए उनकी किडनी दान करने से महिलाओं के साथ आम जनता में उनके प्रति इज्जत है। इस सहानुभूति का फायदा लालू चुनाव में उठाना चाहते हैं। इसके साथ ही रोहिणी अक्सर ट्वीटर (एक्स) पर अपनी राजनीतिक टिप्पणियों को लेकर चर्चा में रहती हैं। रोहिणी महिला वोटरों के साथ घुल-मिल सकती हैं। छपरा में राजीव प्रताप रूड़ी भाजपा के मजबूत उम्मीदवार हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र में काम भी अच्छा किया है।

लालू की सात बेटियों में अकेली मीसा ही राजनीति में हैं। अब रोहिणी भी राजनीति में आएंगी। लालू की बाकी बेटियां उस तरह से ऐक्टिव नहीं रहतीं, जिनती रोहिणी। वे विरोधियों पर लगातार राजनीतिक टिप्पणियां करती रहती हैं। हाल में महागठबंधन टूटने में उनके ट्वीट का भी अहम योगदान था। रूड़ी ने कभी लालू यादव को नहीं हराया है। ऐसे में उनकी बेटी को हराना आसान नहीं होगा। इस सीट पर यादवों की अच्छी आबादी है। इसके बाद क्षत्रियों की संख्या है। पिछले चुनाव में 16.61 लाख मतदाताओं में करीब चार लाख यादव, साढ़े तीन लाख तक राजपूत, करीब तीन लाख वैश्य और सवा दो लाख मुस्लिम के अलावा दलित व अन्य जातियों के वोटर थे। यादव व मुस्लिम मिलकर लालू को मजबूत बनाते हैं। अन्य जातियों की महिला मतदाताओं को रोहिणी अपनी तरफ करने में सफल होंगी तो जीत मुश्किल नहीं है। वैसे, रोहिणी की घोषणा के बाद से बयानबाजी शुरू हो गई है। उप मुख्यमंत्री एवं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने लालू पर अपनी पुत्री रोहिणी आचार्य से किडनी दान में लेने के बाद सारण से टिकट देने का आरोप लगाया। उन्होंने लालू पर पैसे लेकर टिकट बेचने का भी आरोप लगाया। इस बयान पर राजद प्रवक्ता प्रियंका भारती ने कहा कि सम्राट चौधरी ने मातृशक्ति को गाली दी है।

…तो पप्पू बिगाड़ेंगे इंडिया गठबंधन का खेल

धोखा मिलने के बाद पप्पू यादव बिफरे हुए हैं। उन्होंने पूर्णिया से निर्दलीय नामांकन किया है। अब कांग्रेस के लिए संकट खड़ा हो गया है कि वह पप्पू पर किस तरह कार्रवाई करे। कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में किया था। पूर्णिया से उनका टिकट पक्का माना जा रहा था। इसी आश्वासन के साथ उन्होंने ऐसा किया था, लेकिन लालू प्रसाद यादव में इस तरह टांग अड़ाई कि उनका पत्ता साफ हो गया। लालू यादव ने यहां से जदयू से आईं बीमा भारती को टिकट दे दिया। पप्पू यादव के नामांकन पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने कहा कि पार्टी की ओर से उन्हें इस तरह का निर्देश नहीं दिया गया था, इस पर उचित कार्रवाई की जाएगी। नामांकन के बाद पप्पू यादव ने इसके लिए राजद को जिम्मेवार ठहराते हुए लालू प्रसाद यादव व तेजस्वी यादव पर दगा करने का आरोप लगाया। कहा कि उनके राजनीतिक जीवन को खत्म करने की साजिश रची गई थी, जो ध्वस्त हो गया। पप्पू यादव ने कहा कि ठगा महसूस कर रहा हूं। जनता का आदेश है पूर्णिया से लड़ूं। अंत समय तक इंतजार करते रहे कि कांग्रेस का टिकट मिल जाएगा, लेकिन नहीं मिला। इसलिए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन जरूर किया है, लेकिन राहुल गांधी व प्रियंका गांधी का आशीर्वाद प्राप्त है। वे प्रदेश में कांग्रेस व इंंडिया गठबंधन को जिताने का प्रयास करेंगे। नामांकन जुलूस में बड़ी संख्या में पप्पू के समर्थक कांग्रेस का झंडा भी लिए थे। उनके नामांकन में जिस तरह से भीड़ उमड़ी, वह बताती है कि उनका इस सीट पर कितना प्रभाव है। वैसे भी पप्पू यहां से तीन बार सांसदी का चुनाव जीत चुके हैं। 1991,1996 में लगातार जीत के साथ 1999 में भी उन्हें जीत मिली थी। इसमें दो बार वे निर्दलीय जीते हैं। एक बार 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर जरूर चुनाव लड़े, लेकिन सपा की यहां जमीनी पकड़ नहीं के बराबर थी। उन्होंने अपने दम पर जीत हासिल की थी।

पप्पू यादव जिस सीमांचल से आते हैं, वहां यादवों व मुस्लिमों की अच्छी आबादी है। अल्पसंख्यक बाहुल्य इस इलाके में राजद का मुस्लिम व यादव (माय) समीकरण उनके वोट का आधार है। पप्पू यादव के निर्दलीय उतरने से राजद के लिए पूर्णिया सीट मुश्किल में फंस गई है। इसका प्रभाव सीमांचल की अन्य सीटों पर भी पड़ेगा। इधर, इलाके में ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम का अच्छा आधार है। बीते विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी से चार विधायक जीते थे। बाद में तीन राजद में शामिल हो गए थे। इससे ओवैसी राजद से खार खाए हैं। इसी के चलते पहले उन्होंने राज्य की 40 में से 16 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन बाद में सिर्फ किशनगंज से लड़ने की बात कही। कहा जा रहा कि लालू के प्रयास से ओवैसी ने ऐसा किया है तो इसका फायदा राजद प्रत्याशी बीमा भारती को मिलेगा, लेकिन क्षेत्र में पप्पू की पकड़ यादवों के साथ मुसलमानों में भी है। कांग्रेस के कुछ आधार वोट बैंक भी पप्पू को मिल सकते हैं। जीत की उलझी राजनीतिक गणित को देखते हुए ही अपने प्रत्याशी बीमा के नामांकन में खुद तेजस्वी यादव पहुंचे थे। इसी से समझा जा सकता है कि राजद इस सीट पर पप्पू के खड़े होने से कितनी डरी है। बहरहाल, पप्पू ने इस सीट पर इंडिया गठबंधन का पूरा समीकरण गड़बड़ा दिया है।

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